इतना स्वार्थी भी न बनो – डॉ ऋतु अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

 आज सुबह-सुबह ही घर में बड़ा हंगामा हो गया। जितना आदेश और पूर्वी परिवार के लिए करते, उतना ही उन्हें सुनाया जाता। न जाने क्यों पूरा परिवार इतना स्वार्थी हो चुका था कि आदेश और पूर्वी के तन-मन-धन से पूर्णतया सहयोग करने के बाद भी परिवार की अपेक्षाएँ तुष्ट ही नहीं होती थीं। आदेश को समझ ही नहीं आ रहा था कि किस प्रकार परिवार को खुश रख सके। इसके लिए वह कभी-कभी पूर्वी के साथ अन्याय भी कर जाता था, जिसका उसे भान था पर पूर्वी कभी इस बात की शिक़ायत नहीं करती थी। वह समझती थी कि परिवार को बाँधे रखने के लिए कभी-कभी कुछ ज्यादतियाँ सहन करनी पड़ती हैं।

          पर आज तो हद ही हो गई।

           आदेश के बड़े भैया-भाभी तकरीबन दस दिनों के लिए उन सभी के साथ छुट्टियाँ बिताने के लिए हैदराबाद से आए हुए थे। पूर्वी भाग-भाग कर सबको नाश्ता परोस रही थी। नज़दीक ही रहने वाली ननद भी अपने परिवार के साथ अपने बड़े भैया-भाभी से मिलने आई हुई थी। जो ननद कभी पूर्वी के जन्मदिन पर एक छोटा सा उपहार भी नहीं लाती थी, वह आज बड़ी उमंग से बैग भरकर लाए हुए उपहार एक-एक करके बड़ी भाभी को थमा रही थी। पूरा परिवार वहाँ एकत्रित था तो पूर्वी भी वहीं खड़ी हो गई और उपहार देखने लगी।

            “ऐसे क्या देख रही हो छोटी भाभी? क्या तुम्हें भी कुछ चाहिए?” कहकर ननद रानी ठहाका लगाकर हँस पड़ी।

पूर्वी का चेहरा अपमान से लाल हो गया और आँखों में आसू झिलमिला उठे। आदेश के सिवा किसी को भी पूर्वी के आँसू नहीं दिखाई दिए। दिखते भी कैसे भला? साल दो साल में एक बार दर्शन देने वाले बड़े भैया-भाभी के लाए हुए महंगे उपहारों और चाशनी में लिपटी मीठी-मीठी बातों ने सब की आँखों पर पट्टी जो बाँध दी थी।

             सबको नाश्ता परोसने के बाद जब पूर्वी को अकेले ही नाश्ता करते देखा तो आलोक ने माँ से पूछा,” माँ! क्या सब नाश्ता कर चुके हैं? क्या कोई भी पूर्वी के साथ देने के लिए नहीं रुका?

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        “अरे! तो इसमें क्या हो गया? पूर्वी रोज़ भी तो अकेले ही नाश्ता करती है।” माँ ने झट से जवाब दिया।

          ” माँ! रोज़ की बात अलग है। रोज़ केवल हम सब होते हैं। मैं और पिताजी नाश्ता करके ऑफिस चले जाते हैं, आपको डायबिटीज है इसलिए पूर्वी आपको पहले नाश्ता परोस देती है पर आज तो बड़ी भाभी और कामना थे तो वे लोग पूर्वी के साथ नाश्ता कर लेते।” आलोक ने कहा तो वंदना देवी भड़क गईं,”यह क्या बात हुई? पूर्वी तो रोज़ ही अकेले नाश्ता करती है। बड़ी बहू केवल दस दिनों के लिए आई है, कामना इस घर की बेटी है जो सुबह आई थी और शाम को चली जाएगी तो कामना और बड़ी बहू तो मेहमान हैं और क्या अब मेहमान नाश्ते के लिए इंतज़ार करेंगे?”

           “पर माँ——-।” आलोक कुछ कहना चाह रहा था पर पूर्वी ने उसे आँख के इशारे से कुछ भी कहने से मना कर दिया। पूर्वी अकेले ही सारा काम निपटा कर अपने कमरे में चली गई। अभी दोपहर के भोजन में दो-तीन घंटे का समय था तो पूर्वी ने सोचा कि थोड़ी देर आराम कर लेती हूँ। कामना और बड़ी बहू अंजलि माँ के कमरे में बातचीत कर रहे थे तो पूर्वी ने उन्हें डिस्टर्ब करना ठीक नहीं समझा।

            पूर्वी के लेटते ही कामना और अंजलि वहाँ आ गए तो पूर्वी उठकर बैठ गई।

       “क्या बात है पूर्वी! तुम्हारा कमरा तुमने बहुत सुंदर सजा रखा है। मुझे यह कमरा शुरू से ही बेहद पसंद था। देखो तो कामना! पार्क फेसिंग कमरा और तुमने तो इसकी बालकनी में कितने खूबसूरत पौधे लगा रखे हैं, मन करता है कि जब तक यहाँ हूँ, इसी कमरे में ही रहूँ। क्यों कामना! तुम क्या कहती हो?” अंजलि की बात सुनकर पूर्वी चौंक-सी पड़ी। वह कुछ बोलती, इससे पहले ही कामना बोल पड़ी,” बिल्कुल बड़ी भाभी! आप इस घर की बड़ी बहू हैं, इस घर के सबसे बड़े और सुंदर कमरे पर आपका अधिकार सबसे पहले है। फिर पूर्वी भाभी तो यहॉ पर हमेशा ही रहेंगी पर आप कुछ दिनों के लिए आई हैं इसलिए आपको जहाँ अच्छा लगे आप वहाँ रहिए।” कहकर कामना ने बिना पूछे ही अंजलि का सूटकेस लाकर उसके कपड़े वार्डरोब में जमाना शुरू कर दिया।

           हमेशा चुप और शांत रहने वाली पूर्वी ने खड़े होकर कामना का हाथ पकड़ लिया और अपनी अलमारी बंद करते हुए बोली,”दीदी! आप और भाभी यहाँ मेहमान हैं, ऐसा माँजी का कहना है तो आप लोगों के लिए मेहमानों वाला कमरा मैंने तैयार कर दिया है, आप अपना सामान वहाँ रखिए। यह मेरा कमरा है तो इस कमरे में मेरा ही सामान रहेगा और इसे मैं ही इस्तेमाल 

करूँगी।* पूर्वी के इतना कहते ही अंजलि काम कामना ने उसे भला-बुरा कहना शुरू कर दिया।

          शोरगुल सुनकर वंदना जी, आलोक और तमाम लोग वहाँ आ गए। सारी बात सुनकर वंदना जी पूर्वी को डाँटने लगीं,”पूर्वी!तुझे ज़रा भी शर्म नहीं है। अपनी जेठानी और ननद से कोई ऐसे बात करता है भला और बड़ी बहू तो कुछ दिनों में चली जाएगी। अगर तब तक वह यहाँ रह लेगी तो क्या हो गया? तू तो बड़ी स्वार्थी है।”

             “जी! मैं स्वार्थी हूँ। जो रात-दिन आप लोगों की सेवा करती हूँ, इस घर का ख़्याल रखती हूँ, मेहमानों की आवभगत करती हूँ पर मेरा स्वार्थ मेरे अपनों के लिए है पर आप लोग तो अपने स्वार्थ के लिए दूसरों का आत्मसम्मान, भावनाएँ सब कुचल कर रख देते हैं। हम पूरा साल इस परिवार का ध्यान रखते हैं, सारे खर्चे उठाते हैं

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पर यह हमारा कर्तव्य है और बड़ी भाभी को चंद हज़ार रुपए के उपहार ले आती हैं तो वह बढ़िया बहू का तमगा पाती हैं। जितने दिन यहाँ रहती हैं, एक पानी का गिलास तक नहीं उठाती, वह अच्छी हैं और कामना दीदी कभी मेरा या मेरे बच्चों का हाल-चाल तक नहीं लेती और बड़ी बहू के आते ही जी-हजूरी करने चली आती हैं। माफ़ कीजिएगा माँजी! आप जैसे स्वार्थी लोगों के कारण ही मुझे भी स्वार्थी बनना पड़ रहा है।” पूर्वी ने वर्षों से मन में दबे गुबार को बाहर निकाल दिया।

         “देख रहा है आलोक! तेरी बीवी कितना बहुत कुछ बोल रही है।”वंदना जी ने आलोक को उकसाने का प्रयास किया।

            “वह बिल्कुल सही कह रही है माँ! इस स्वार्थी संसार ने ही उसे यह सब सिखाया है। आप अभी भी सँभल जाओ वरना मजबूरन मुझे भी बड़े भैया की तरह अपना तबादला किसी और शहर में करवाना पड़ेगा।” आलोक ने शांत स्वर में उत्तर दिया।

       “कामना की माँ! अब भी अपनी आँखें खोलो वरना तुम लोग अपने स्वार्थ के चलते इस सरल पूर्वी को भी स्वार्थी बनाकर छोड़ोगे।” आलोक के पिता निशांत जी ने कहा तो अंजलि,वंदना और कामना चुपचाप कमरे से बाहर चले गए।

 

स्वरचित 

डॉ ऋतु अग्रवाल

मेरठ, उत्तर प्रदेश

 

दोस्तों! अक्सर ऐसा ही होता है जो बहू, परिवार के लिए सब कुछ करती है, उसे ही बुरा बना दिया जाता है।

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