मम्मी आज सब्जी बहुत अच्छी बनी है।
अच्छा… और ले लो।
गौरी ने राजन को और सब्जी देने के लिए हाथ बढ़ाया ही था.. कि पड़ोस से आते हुये शोर ने उसके हाथ कुछ सेकंड के लिए थाम लिये।
क्या हुआ हमेशा शांत रहने वाले यादव जी के घर में यह शोर कैसा?वह मन ही मन अपने आप से पूछ बैठी।
गौरी के पड़ोस में महेश जी अकेले ही रहा थे। उनका परिवार पास स्थित गांव में रहा करता था। शहर में पढ़ने के लिए वो अपने दो बेटों को ले आये थे। उनकी पत्नी और दो बेटियां गांव में ही रहती थी।बस एक या दो बार उनकी पत्नी और बेटी शहर आये थे।
शोर बढता देख गौरी ने अपने पति राघव से कहा.. आइये चल कर देखते हैं क्या हुआ उनके दोनो बच्चे तो बहुत सीधे है।
वहाँ पहुँच गए देखा तो यादव जी लकड़ी के मोटे से डंडे से अपने छोटे बेटे शिव दत्त की पिटाई कर रहे हैं और वह रोते हुए बस यही कहे जा रहा था गलती कोई करे और पिटाई किसी की। मैं चुप ही इसी में भलाई है।
गौरी और राघव के किसी तरह दोनों को शांत करा दिया और वापस घर लौट आयी।
सुबह पिता के काम पर चले जाने के बाद गौरी ने शिव दत्त से कई बार कल के झगड़े की वजह जाननी चाही पर शिव दत्त ने कुछ नहीं बताया वह बस एक ही रट लगाये था कि हमारे पिता पिता कहलाने लायक नहीं है। इनकी वजह से हमारी अम्मा ने गांव में गुस्से में अपना सर तक फोड़ लिया था चाची अम्मा ने अपनी कसम दयी है, काहू से कुछ ना कहियों । बात क्या है यह भेद बना ही रहा तथा बेटे की नजरों में पिता लिए सिर्फ और सिर्फ़ नफरत ही शेष थी। कुछ दिनो के बाद समाचार मिला कि उन्होंने अपनी कम उम्र की बेटी का विवाह कर दिया।
विवाह के बाद शिव दत्त की बहन और मां दोनों शहर आयी, आते ही बहन को अस्पताल में भर्ती करा दिया गया दो तीन दिन के बाद वह अस्पताल से घर वापस आ गयी। गौरी उसे देखने गयी। अचानक क्या हुआ इसको.. अभी महीने भर पहले ही शादी हुई थी? इसकी इतनी कम उम्र में शादी क्यों कर दी आप लोगों ने.. ऐसे कई सारे प्रश्न वह यादव जी की पत्नी से पूछ बैठी.. गौरी के सरल और स्नेही स्वाभाव के फलस्वरूप यादव जी पत्नी ने जो कुछ भी बताया।
वह सब बहुत ही अविश्वसनीय और निन्दनीय था।
सामाजिक बदनामी और पारिवारिक प्रतिष्ठा के नाम पर, एक मां ने अपने राक्षस पति की काली करतूतों को छिपा लिया था। दरअसल उनकी बेटी की जल्दबाजी में शादी उसके अपने ही पिता के पाप पर पर्दा डालने के लिए करनी पड़ी थी। वो लोग उस बच्ची का गर्भपात कराने के लिए ही उसे शहर लाये थे और इसी वजह से वह अस्पताल में भर्ती भी हुई थी।
गौरी यह सब सुन कर सन्न हो गयी थी। उसके मन में बार बार, यही प्रश्न रही उठ रहा क्या पारिवारिक प्रतिष्ठा मर्यादा को बनाये रखने की सारी जिम्मेदारी स्त्रियों की है.. वो भी इस कीमत पर? बहुत दुखद व निंदनीय है, ऐसी सोच और विचारधारा।
सुधा शर्मा
कानपुर