असलियत कुछ और है – शुभ्रा बैनर्जी  : Moral Stories in Hindi

रीना की सासू मां ने चहकते हुए कहा”बहू,ओ बहू !!!खुशखबरी है।तुम्हारे बड़े भांजे की शादी पक्की हो गई।रजनी(बड़ी ननद)ने अभी बताया।दामाद जी ने सबसे पहले हमें ही खुशखबरी दी है।अच्छे से तैयारी कर लेना।मुझे जल्दी ही ले जाएगी आकर।शादी के नियम नहीं जानती ना वो।अमित को बोलना,बहू के लिए सोना तो देना ही पड़ेगा।”

रीना मां की बात सुनकर खुश हुई।बहुत दिनों से बड़ी दीदी बहू ढूंढ़ रही थी,अब जाकर मिली।अमित के नौकरी से आते ही रीना ने यह खुशखबरी दी,तो अमित भी बहुत खुश हुए।ननिहाल का लाड़ला और सबसे पहला नवासा था।मामा और मौसी का लाड़ला।रीना की शादी के वक्त बहुत छोटा था।

अमित मां के साथ जाकर उपहार के विषय में विचार-विमर्श करने लगे।रीना को अलग ही चिंता सता रही थी।बड़ी ननद की आर्थिक स्थिति उन लोगों से बहुत अच्छी थी।ननदोई कस्टम विभाग में अधिकारी थे।अपनी आर्थिक संपन्नता का प्रदर्शन बहुत अच्छे से करतीं वो,जब भी आतीं।उनके परिवार को उपहार भी सर्वोत्तम देना पड़ता था। सासू मां अक्सर बड़ी बेटी के आने की खबर सुन कहतीं”बहू,घर की सफाई अच्छे से कर लेना।रजनी के घर चाटने से भी धूल नहीं मिलती।खाना भी उच्च कोटि का बनवाया करतीं थीं वे।

दो साल पहले ही ससुर जी के देहावसान में रजनी दीदी के आने पर अपनी कमतर आर्थिक स्थिति का आभास अच्छी तरह से हो गया था रीना को।घर में मृत्यु उपरांत माने जाने वाले नियमों के बीच,ननदोई जी बिसलरी की बोतलें खरीद कर लाने थे।संस्कारों को रूढ़िवादिता बताकर व्यंग कसने में कोई कोताही नहीं की उन्होंने।

श्राद्ध के कार्यक्रम में भी कमी ही निकालते रहे। आधुनिक शैली के जीवन यापन के आदी ननद -ननदोई और उनका बेटा उन दिनों असहज ही रहे।घर का पहला नवासा,जिसके जनेऊ में मामा के द्वारा यथासंभव उपहार देने पर भी,संतोष नहीं हुआ,उसकी शादी में जाने के पहले रीना को अपने और बच्चों के लिए पहले वैसे कपड़े भी सिलवाने पड़ेंगें।शहर में पॉश कॉलोनी में रहते हैं,ऊंचे लोगों से संबंध है।ऐसे में इकलौते भाई की सामान्य आर्थिक हालत,कहीं मजाक ना बन जाए।

अपनी दुविधा अमित को बताई रीना ने”आप अपने लिए भी दो -चार अच्छे कुर्ता -पायजामा ले लो।दोनों बच्चों(बेटा-बेटी) के लिए भी वहां पहनने लायक कपड़े लेना होगा।मेरे लिए और मां के लिए साड़ियां भी लेनी पड़ेगी।अच्छा,सुमित (ननद के बेटे)की बहू के आशीर्वाद में एक सैट दे दें क्या?”अमित ने मजाक उड़ाते हुए कहा”अरे बाप रे!इतनी लंबी लिस्ट वो भी इस महीने।

असंभव है रीना।या तो हम खुद के लिए इतना सब ले लें,या सुमित की बहू के लिए।सैट तो नहीं ले पाऊंगा, सिर्फ एक अच्छा सा हार सोच रहा हूं खरीद लूं।बाकी का ननिहाल का नेंग का सामान भी तो देना है।एक -एक जोड़ी कपड़े सब के लिए ले लेतें हैं।सुमित के लिए एक अच्छा सा सूट और अंगूठी।ठीक है ना?”

रीना पति की विवशता समझती थी।ननद की आर्थिक स्थिति को देखते हुए उसने जोड़-तोड़ कर तैयारी कर ही ली।यहां तो ननद के आने की खबर सुनते ही स्टेशन पर गाड़ी (भाड़े)लेकर पहले पापा अब अमित तैयार रहते थे।भोपाल रात को पहुंचेगी ट्रेन।मां को पहले ही अमित पहुंचा आए थे।शादी के पांच दिन पहले ही अमित,रीना और बच्चों के साथ बहन के घर पहुंचे।देर रात को स्टेशन पर पहुंच कर रीना इधर उधर देखने लगी,

तो अमित ने कहा”अरे ,शादी का घर है।सारा दिन काम में लगे रहते होंगे,इस समय सो रहे होंगें।ऑटो में चले चलते हैं।”रीना ने कुछ नहीं कहा।स्टेशन से घर पहुंचने में बहुत समय लग गया।घर में पहुंचते ही उनका कमरा दिखा दिया ननद ने।सुबह उठकर कहीं ऐसा नहीं लग रहा था कि शादी का घर है।

ननद की ससुराल से गिनकर चार लोग ही आए थे।ना तो घर में रसोइया लगा था,और ना ही कुछ विशिष्ट पकवान बन रहे थे।लड़की वाले यहीं आने वाले थे,तो उनके देखभाल की जिम्मेदारी अमित ने ले ली।बड़ी ही सादगी से शादी होगी,ऐसा ननदोई जी का आदेश था। अवांछित खर्चों से उन्हें परहेज था।

शादी वाले दिन हॉल में पहुंच कर लगा ही नहीं,कि किसी अधिकारी के बेटे की शादी हो रही है। गिने-चुने मेहमान,और चेहरे में दिखावटी हंसी लिए मेजबान।कौन आया नहीं आया,किसी को इससे मतलब नहीं था।स्वागत के लिए भी मेन गेट पर खड़े रहने की तकलीफ़ नहीं उठाई किसी ने।रीना अचंभे से सासू मां की ओर देख बोली”मां,तुम्हारा और हमारा तो परिचय भी नहीं करवाया।

एक ही मामा है,शादी के मंडप में उनकी कोई भूमिका ही नहीं।इतना पैसा है,और ऐसी शादी कर रहें हैं ये लोग!पीने के लिए पैकेट में पानी।बाबा के समय तो बिसलेरी खरीद कर लाते थे,अब अपने ही बेटे की शादी में इतनी कंजूसी।हमारे द्वारा दिए उपहार को अच्छे से देखा भी नहीं,रजनी दीदी ने।मैं तो कम गहने पहन कर शर्मिंदा हो रही थी,दीदी ने तो कुछ भी नहीं पहना।हमारे यहां आकर ये जो हमेशा हमें नीचा दिखाते थे,आज इनकी महानता साबित हो गई।पूरे रिश्तेदारों को भी नहीं बुलाया।आपने कुछ नहीं कहा क्यों?”

सासू मां ने दुखी और संयमित होकर कहा”बहू,हम छोटी जगह में रहतें हैं,पर दिखावा नहीं करते।जो है उसे मिल-बांटकर खाने में सुख समझते हैं।रजनी के ससुराल वालों के पास पैसा तो बहुत था,पर मन साफ नहीं था।दुख तो इस बात का है कि मेरी अपनी बेटी भी ढल गई वैसे ही।

नियम कहकर जब-जब मैंने कुछ समझाया तो दामाद जी ने ढकोसला कह दिया।उनकी सोसायटी में शायद यही कल्चर है।ज्यादा बात नहीं,ज्यादा हंसी नहीं और ज्यादा मेलजोल नहीं।तुम लोगों ने जो भी प्रेम वश दिया,वह सामर्थ्य से भी अधिक था,अब इन्हें नहीं कदर तो ना सही।मैं बेटी -दामाद को ज्ञान क्यों दूं?”

रीना आश्चर्य से मां को देखने लगी। उन्होंने आगे धीरे से कहा”दिखावे की जिंदगी जीते हैं ये लोग। अपनापन है ही नहीं।मेहमानों को कार्ड दे दिया,जिसे आना हो आए,ना आना हो ना आए।मैं भी अब तुम लोगों के साथ ही वापस चलूंगी।इनके दिखावे से तंग आ चुकी हूं।हम बहुत सुखी हैं बहू,जितना है उतने में संतोष भी है,और रिश्तों की कदर भी करते हैं।ऐसे दिखावे की जिंदगी इन्हीं को मुबारक।मुझे भी अपने बेटी -दामाद से ऐसी उम्मीद नहीं थी।हम कल ही चलेंगे।अमित से कह देना,मैं भी आ रही हूं।”

रीना ऐसे पैसे वाले लोगों को देखकर इतना सीख ही चुकी थी,कि दिखावे की जिंदगी में मन की शांति नहीं,और ना ही सुख है।छोटे जगह के,कम पैसे वाले हम लोग ही ठीक हैं,जो वास्तविकता में जीते हैं।

शुभ्रा बैनर्जी

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