रोज की तरह आज फिर स्कूल से मिनी को घर लाते समय वो हाथ छुड़ाकर आनंद बेकरी के बाहर शीशे से चिपट कर खड़ी हो गई और केक , पेस्ट्री को बाहर से ही ललचाई नज़रों से तकने लगी ।पता था ये सब “मां की ममता की परिधि” के वश में नहीं इसलिए जिद भी नहीं करती थी मगर हर रोज उसकी आंखों में केक के लिए अतृप्त , अटूट चाह का ज्वार देख के भी वो अनदेखा करने को विवश थी।
एक हफ्ते पहले से ही मालकिन के इकलौते बेटे की बर्थडे पार्टी के चहल पहल ,चर्चे शुरू हो गए थे घर में। पिछले साल तो वो यहां काम नहीं करती थी मगर मालकिन इतना चाट मसाला छिड़क कर वो किस्से बताती–
“पता है तुझे पहले तो रात में बारह बजे दोस्तों की पूरी पलटन केक ,बुके, स्नैक्स लेकर हुड़दंग करते,हो हल्ला करते, बैल पे बैल बजाते हुए ऐसे धावा बोलते हैं मानो बर्थडे पर नहीं बार्डर पर अटैक करने आएं हों।हमारी पूरी बिल्डिंग उठकर बाहर आ जाती जैसे भूकंप आ गया हो। और फिर केक , स्नैक्स , ड्रिंक्स म्यूजिक ,डांस का दौर सुबह पांच छै बजे तक चलता फिर कुछ यहीं लुढ़क जाते और कुछ अपने घर ।हम भी सुबह जाके सो पाते ,रात का बिखराव समेटते ही दिन निकल जाता और फिर शाम को फार्मल पार्टी।
क्या बताऊं!! कितने स्नैक्स बाहर से आते ,कितने घर में बनते और डिनर का भी यही हाल और केक का तो पूछ ही मत जो आ रहा है केक लटकाता चला आरहा है।असलमें लड़के लोगों को गिफ्ट विफ्ट की कोई शोशापंती नहीं होती ना ,बुके शुके ले जाने की नजाकत तो उनको तो केक ही सूझता या चाकलेट।पिछली बार तो मेरे फ्रिज में जगह ही नहीं बची ,इधर उधर बांट के खत्म किए बाबा !!”
और तब मिनी की कांच के आर-पार केक को देखकर तृषित आंखों की तरलता सोनी की आंखों में तैर गई । और साथ ही एक बड़ा सपना ,एक सुखद एहसास भी पलने लगा उसकी आंखों में इस बार तो केक का बड़ा हिस्सा या लगभग पूरा केक ही उसको बाबा के बर्थडे पर मिलेगा ही ।
अब तो मालकिन से ज्यादा वो उसके बर्थडे का बेसब्री से इंतजार करने लगी ।उसने अपना केक का– केक सा ही– “शबनमी मखमली” सपना धीरे-धीरे अपने पति और मिनी के आंखों में भी प्रत्यारोपित कर दिया।अब मिनी की आंखें आनंद बेकरी के शीशे पर ताक झांक ना करके अपनी सपनीली उम्मीदों के इंतजार से चमक रहीं होतीं।रोज सुबह उठकर वो उल्टी गिनती गिनने लगती– “आज से बर्थडे में पांच दिन””आज से चार दिन”बचे
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आज तो सोनी के कदमों में नदी सा प्रवाह था ,वह चल नहीं उड़ रही थी मानो।आज आ गया वो चिर प्रतीक्षित दिन!!जा के अधीरता से बेल बजाई, कोई आहट नहीं , फिर एक बार !! कोई सुगबुगाहट नहीं ।।अब बार बार बजा भी तो नहीं सकती , कहीं घुड़क दें और उसके स्वप्निल दिन की खुमारी उतर जाए ।अरे हां!! मालकिन ने बताया तो था कि रात को बारह बजे ध्रुवल के दोस्त आते हैं और फिर सबको सोते सोते सुबह हो जाती है ।ओह !!तो ये बात है !! वहीं चबूतरे पर बैठ गेट खुलने का इंतजार करने लगी।
करीब घंटे भर बाद फिर एक बार बैल बजाई ,अब की आंखें मलती मालकिन ने एहसान कर गेट खोल ही दिया और आज तो सोनी को देख आंखें पूरी ही खुल गई !!प्रैस की हुई नीली रंग पर लाल बूटों वाली रेशमी साड़ी , पाउडर बिंदी , लिपस्टिक नई चप्पल यानि की “पार्टी रेडी” हंस पड़ी रीमा उसे देख ।सोनी ने भी खुश होकर बाबा के जन्मदिन की मुबारकबाद दी ।
घर के अंदर का हाल देखकर तो वो सकते में आ गई ।सारा उत्साह काफूर हो गया ।पूरा ड्राइंगरुम केक के डिब्बे, बोतलों,जूठी प्लेटों, गिलासों, पिज्जा के खाली डिब्बों से कचरे के डिब्बे सा फैला था।
अपनी साड़ी को पूरे सुरक्षा चक्र में रखते हुए साफ सफाई की ,बर्तन के टोकरे धोए। मालकिन के साथ स्नैक्स तैयार किए, डेकोरेशन कराई।बिना किसी शिकन के सारा दिन भाग भाग के काम करती रही ।
शाम होते होते ड्राइंगरुम लकदक करने लगा था । मालकिन ने बड़ी सी ट्राली पर केक सजा दिया ।सोनी की आंखें फैल गई !!इतना बड़ा केकककक !! वाऊऊऊऊ और उसमें से अपने हिस्से का “अनुमान कर अनुपात की कल्पना” से ही उसकी रोमावली स्पंदित हो गई।
अरेएएएए बस इतना ही नहीं !!
अभी तो पिक्चर बाकी थी!!
बाबा के दोस्त आना शुरू हो गए थे और उनमें से हर दूसरे फ्रैंड के हाथ में केक का डिब्बा होता जिसे वो साइड टेबिल पे रखते जा रहे थे और सोनी गिनती जा रही सात आठ ,बारह उसका दिल मानो उछल के बाहरआ रहा था ।पिछली बार तो मालकिन ने कहा था चार पांच दोस्त केक लाए थे और फिर भी अगले दिन फ्रिज में जगह नहीं बची और इधर उधर बांटना पड़ा।अब की तो घर के अलावा बारह केककक!!
हो सकता है मुझे पूरा केक का डिब्बा ही दें दें या फिर दो भी!!
उसकी खुशी ,उसकी कल्पना,उसकी रोमांच का कोई ओर छोर नहीं था।मन में सैकड़ों मयूर नाच रहे थे और कल्पना आसमानों में विचरण कर रही थी, आंखों में सपनों का चलचित्र चल रहा था और धड़कनों में म्यूजिक सिस्टम तभी अचानक “हैप्पी बर्थडे टू यू “की ध्वनि से तंद्रा भंग हुई और वह भी समवेत स्वर में “हैप्पी बर्थडे टू यू” कहते हुए ताली बजाने लगी।
केक काटकर ध्रुवल ने पहले मम्मी को फिर पापा को खिलाया , फिर उन्होंने भी उसे खिलाया ।सोनी भावाभिभूत हो रही थी ,कितना संस्कारी परिवार है , आपसी प्यार है।
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तभी अचानक सभी दोस्तों ने केक पर धावा बोल दिया और जिसके हाथ में जितना केक आया ,उतना लेकर ध्रुवल के मुंह पर धाप !!धाप!! छपाक!!
सोनी को जैसे कोई करेंट लगा हो गया हो,यह अप्रत्याशित नजारा उसके लिए किसी सदमे से कम नहीं था।
मगर अभी तो पिक्चर बाकी थी
जो दोस्त अपने साथ केक का गिफ्ट लाया था , डिब्बा टेबल से उठाया और बिना एक टुकड़ा खाए और किसी को खिलाए पूरे का पूरा डिब्बा ध्रुवल के मुंहपर छाप दिया। सोनी की सुनहरी कल्पनाएं आसमान से सीधे जमीन पर धड़ाम
तब दूसरे दोस्त ने भी अपना डिब्बा खोला और मुंह पर चिपका दिया , कोई कोई उसी के मुंह से केक ऊंगली में ले के चाट भी रहे थे। और बाकी का केक ध्रुवल अपने मुंह से उतार पोंछ कर वहीं जमीन पर फेंकता जा रहा था जो पैरों में आ रहा था।
थोड़ी देर पहले नाचते उसके मन मयूर के किसी ने पंख नोच लिए।।केक नहीं उसके मखमली सपने ,मिनी की चिरप्रतीक्षित अप्राप्य खुशियां ,पति के आंखों की अधीरित चमक सब चूरचूर हो,
सबके पैरों तले कुचलकर क्षत विक्षत हो रहीं थीं।
उसके बाद सभी बारह डिब्बों का यही हश्र हुआ,उसके दिमाग में एक विस्फोट हुआ, चेतना जैसे विक्षिप्त हो गई हो उसका सारा शरीर स्पंदित होने लगा और अचानक शोर मचा!! अरेएए!!! आपकी मेड को क्या हुआ आंटी
देखा तो सोनी बेहोश पड़ी थी। मालकिन सोनी के मुंह पे छींटे मारने लगी “अरे बहुत खुश थी बाबा के बर्थडे के लिए,सुबह से भाग भाग कर काम कर रही थी। बेचारी ने एक्साइटमेंट में खाना भी ढंग से नहीं खाया इसलिए शायद थकान से चक्कर आ गया होगा !!”
पूनम अरोड़ा
#दिखावे की जिंदगी