दिखावे की जिंदगी – प्रतिमा श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

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मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी गुनगन के ख्वाब हमेशा रइसों

वाले थे। यहां तक की वो अपने पिता की नौकरी और मां की विवशता की आलोचना भी करती और उनको नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ती थी। पिता क्लर्क थे तो कमाईं भी सीमित थी और मां घर के कामकाज के साथ लोगों के कपड़े सिलकर घर चलाने और बच्चों की पढ़ाई में अपना हांथ बंटाती थी।

गुनगुन को मां अक्सर समझातीं कि,” तुम्हें अच्छी जिंदगी और शाॅन – शौकत चाहिए तो खूब मेहनत करो और अच्छी नौकरी करो तभी तुम्हारे और घर के हालात बदलेंगे।” फैशन और आधुनिकता की होड़ में पढ़ाई लिखाई पर कम ध्यान और फालतू की बातों में ज्यादा लगी रहती थी गुनगुन। किसी तरह उसने बी ए की पढ़ाई पूरी की और कम्प्यूटर का कोर्स किया था साथ में… इसके चलते नौकरी लग गई थी किन्तु वहां भी बहुत अच्छी तनख्वाह नहीं थी।

ख्वाबों की दुनिया में रहने वाली गुनगुन हमेशा कुछ ना कुछ सोचा करती थी।

उसके ऑफिस में काम करने वाला गौरव खूबसूरत और डील डौल में बहुत ही आकर्षक व्यक्ति था। देखने – सुनने में भी आया था की काफी धन दौलत है उसके पास। वो बहुत ही सरल स्वभाव को और दूसरों की मदद करने वाला व्यक्ति था। गुनगुन के दिमाग में हर समय गौरव की शान शौकत से भरी जिंदगी ही चलती रहती थी लेकिन उसके लिए उसने उसके पीछे गौरव की योग्यता और मेहनत को नहीं देखा था कभी,बस शार्ट कट रास्ता हो और वो महारानी सी जिंदगी बिताए।

पैसे कमा कर वो कभी अपने परिवार की मदद नहीं करती थी ।अपने दिखावे की जिंदगी में सारे पैसे लगा देती और मां को नई – नई कहानी सुनाकर कुछ ना कुछ पैसे मांगती रहती। मां तो आखिर मां है औलाद कैसी भी हो कष्ट में नहीं देख सकती।घर खर्च से बचाए पैसे में से कुछ ना कुछ भेजती रहती।

गुनगुन गौरव से दोस्ती करने के कोई ना कोई बहाने में लगी रहती। अपने आपको बहुत अच्छी और कामकाजी लड़की बनाने की पूरी कोशिश करती। ऑफिस में मेहनत करके उसे प्रमोशन भी मिल गया था पर जो उद्देश्य था कि गौरव से दोस्ती करने का वो असफल रही थी ‌।

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एक दिन वो भी वक्त आ गया गौरव ने अपने घर में एक पार्टी रखी थी जहां उसने सभी सहकर्मियों को बुलाया था। गुनगुन को इसी सुनहरे अवसर की तलाश थी।मदद करने के बहाने उसने गौरव से दोस्ती कर ली थी। खुद को उसकी बराबरी का दिखाने के लिए अच्छी सी साड़ी खरीदी और पार्लर में जाकर बन संवर कर पार्टी में पहुंची। सुंदर तो थी ही और सलीके से सज संवर कर सभी के आकर्षक का केंद्र भी बन गई थी।

“स्वागत है गुनगुन …. पार्टी अच्छी तरह इंज्वॉय करो” ऐसा कह कर गौरव दोस्तों के साथ पार्टी की देखरेख में लग गया।

गुनगुन की आंखें चकाचौंध हो रहीं थीं उसको भी ये सब चाहिए था, अपनी किस्मत पर रोना आ रहा था कि,”काश! मैं भी इतनी पैसे वाली होती।” गुनगुन के दिमाग में सिर्फ एक ही फितूर भरा रहता था कि कैसे बैठे – बिठाए वो अमीर बन जाए। इसलिए वो अमीरी का नकाब के पीछे अपनी गरीबी को ढंकने की कोशिश करती रहती। उसे ये नहीं पता था कि इज्जत सम्मान से जिंदगी जीना चाहिए…धन दौलत जरूरी है पर इतना नहीं की आप अपनी जिंदगी में खुशियों की तलाश में अपने आज को खराब किए जा रही हो।

एक खूबसूरत से लड़के ने जूस का गिलास पकड़ाते हुए कहा कि,” आपकी साड़ी बहुत सुंदर है और आप भी” हांथ मिलाने के लिए उसने हांथ बढ़ाया तो गुनगुन ने सलीके से हांथ जोड़ कर उसे नमस्ते किया।वो लड़का अमर था जो गौरव की पार्टी में आया था और गौरव का अच्छा दोस्त भी लग रहा था।

दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया और थोड़ी ही देर में दोनों घुल-मिल गए ।फोन नंबर एक दूसरे को भी दे दिया। ” गुनगुन …चलो मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं रात ज्यादा हो गई है” अमर ने कहा तो गुनगुन ने फटाफट हां कर दी। बड़ी सी गाड़ी के ख्वाब अब उसको दिखाई देने लगा था और उसे लगने लगा था कि अब उसके अच्छे दिन दूर नहीं। दोनों बातचीत करते हुए सफर तय कर रहे थे। गुनगुन” तुम्हारे पिता जी क्या काम करते हैं? ” अमर ने बातों – बातों में पूछा। गुनगुन की समझ में नहीं आ रहा था कि सच बताऊंगी

तो अमर मुझे साधारण घर की समझ कर दोस्ती ना तोड़ दे और अभी तो कुछ ही घंटे हुए हैं हमारी दोस्ती को।ये कौन सा मेरे शहर में जा कर पता करने वाला है। उसने बड़ी – बड़ी डींग मारनी चालू कर दी।” मेरे पापा ऑफिसर हैं और हमारे कई घर हैं।वो तो मैं अपने बलबूते पर कुछ करना चाहती थी इसलिए ये नौकरी कर रहीं हूं। मैं कुछ बन कर दिखाना चाहतीं हूं अपने माता-पिता को।” गुनगुन ने संतोष की सांस ली। ” बहुत अच्छी बात है… अमर बोला। तुम किस शहर से हो? ” कानपुर से हूं…. गुनगुन बोली।

अमर तेज से चौंका  ‘ कानपुर ‘ अरे कितने इत्तफाक की बात है कि मैं भी कानपुर से हूं।” अब गुनगुन के चेहरे के रंग फ़ीके पड़ने लगे थे कि उसका झूठ कहीं पकड़ा ना जाए… कहीं ये पता ना लगा ले की मेरे पापा क्या काम करते है। गुनगुन ने बीच में ही बात काटते हुए अमर को बोली… अरे यहीं रोक दो मेरा घर पास में ही है।”

गुनगुन अमर को पता नहीं चलने देना चाहती थी कि वो पीजी में रहती है। अरे! ” यहां तो कोई घर नहीं दिखाई दे रहा है… कहां जाओगी अंधेरे में मैं छोड़ देता हूं गली के अंदर।” गुनगुन गाड़ी धीरे होते ही फटाफट नीचे उतर गई और अमर को धन्यवाद देती हुई बोली….” अच्छा लगा आपसे मिल कर और यहां तक छोड़ने के लिए शुक्रिया। मैं चली जाऊंगी आप परेशान नहीं हो।” बाय बाय करती हुई गली में मुड़ गई। उसकी खुशी काफूर हो गई थी उसे लगने लगा था कि कहीं अमर को पता ना चले की मैं उसकी बराबरी की नहीं हूं और वो आगे से मुझसे दोस्ती ना करें।

इंसान के अंदर अगर संतोष हो तो सबकुछ मिल ही जाता है और लक्ष्मी का क्या वो तो चंचल हैं आज यहां तो कल कहां।हमेशा अपनी सच्चाई और ईमानदारी को ही महत्व देना चाहिए ना की दिखावटी दुनिया को।अपने आपको परखते – परखते सच्ची खुशियों को भी इंसान भुला बैठता है।

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अब वो अमर से मिलने जुलने में कतराने लगी थी क्योंकि अमर को पता ना चल जाए उसकी सच्चाई। गुनगुन ने दिखावटी दुनिया में अपने आपको इतना ज्यादा भुला दिया था की वो खुश नहीं रहती थी इंसान को अपने वजूद से कभी भी मुंह नहीं मोड़ना चाहिए। मध्यमवर्गीय होना कोई गुनाह नहीं है। इमानदारी से कमाई इज्जत और दौलत ही असली सम्मान है।

अमर के पिता जी के ऑफिस में ही गुनगुन के पिता जी नौकरी करते थे और सभी उनका बहुत सम्मान करते थे। गुनगुन और अमर ये बात नहीं जानते थे।अमर के पिता जी बहुत बड़ी पोस्ट पर थे लेकिन अमर और उनमें पैसे का घमंड नहीं था।वो हमेशा अच्छे इंसान का और उसके काम का सम्मान करते थे।

गुनगुन घर गई हुई थी तभी उसे बाजार में अमर मिल गया। गुनगुन निगाह छिपा कर जाना चाहती थी कि तभी अमर ने रास्ता रोककर उसे पूछा,!  अरे ” तुमने बताया नहीं घर आ रही हो? साथ ही आ जाते दोनों।”

” अचानक ही प्रोग्राम बना… गुनगुन बोली।और सुनाओ कैसे आना हुआ? अमर बोला। ” पापा की तबीयत खराब थी तो

आना पड़ा।यहीं पास के अस्पताल में हैं” गुनगुन बोली। अमर गुनगुन के साथ अस्पताल गया तो वो पहचान गया उसके पापा को और प्रणाम करते हुए हालचाल लेने लगा।कई बार उसने पापा के ऑफिस में देखा था उन्हें।

गुनगुन!” तुम बहुत किस्मत वाली हो जो ऐसे इंसान की बेटी हो। बहुत सज्जन इंसान हैं तुम्हारे पापा। तुमको मुझसे या किसी से झूठ बोलने की जरूरत नहीं थी। पैसा रुपया ही सबकुछ नहीं होता है। इंसान की दौलत उसका आत्मसम्मान ही होता है। हमें दूसरे की नकल करने के बजाय खुद की इज्जत करनी चाहिए क्योंकि अगर हम स्वयं की इज्जत नहीं करेंगे तो दूसरा इंसान भला हमारी इज्जत क्यों करेगा।”

गुनगुन की समझ में सबकुछ आ गया था। उसने अपने आपको दिखावटी दुनिया से बाहर निकालने का फैसला ले लिया था और उसके मन से बोझ भी हल्का हो गया था अब वो खुश थी और इमानदारी से काम करके अपने परिवार की मदद करना चाहती थी।

                                    प्रतिमा श्रीवास्तव

                                   नोएडा यूपी

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