सुकून भरी छुट्टी – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

    मैं विपुल …. सौम्या का पति…. दो बच्चे आरव और आरना का पिता…. आइए आज नजर डालते हैं मेरे घर पर …..

     रविवार का दिन…. सुबह देर तक हम बिस्तर में लेटे हुए थे…… न जाने क्यों आज सवेरे से सौम्या ने बस एक ही रट लगा रखी है ……मुझे छुट्टी चाहिए…… मुझे भी छुट्टी चाहिए विपुल…..! 

   विपुल खामोशी से एकटक प्यार भरी नजरों से सौम्या को देख रहा था….धीरे से सौम्या के गालों पर आए बालों को हटाते हुए मुस्कुरा कर बोला…. हां भाई हां ….आज तुम्हारी भी छुट्टी…. आराम से तुम भी सो जाओ ……जब जी चाहे आराम से उठना …..आज तुम खाना नहीं बनाओगी…… बाहर चलेंगे खाना खाने ……शॉपिंग करेंगे…. पूरा दिन तुम जो चाहेगी वही होगा…. अब तो खुश ….?

     चलो, जल्दी से सो जाओ और अपना मूड ठीक करो…… लेकिन जैसे सौम्या ने कुछ सुना ही ना हो या ये कहे वो ये बातें सुनना ही नहीं चाहती थी…. फिर चीखने वाले अंदाज में बोली ….नहीं  विपुल , मुझे ये सब नहीं चाहिए…. मुझे तो बस छुट्टी चाहिए…. छुट्टी चाहिए…. छुट्टी चाहिए…..!!

     पिछले तीस सालों से जब से मेरी शादी हुई है ना …..मैंने कभी छुट्टी नहीं लिया ……सप्ताह में एक दिन ही सही बच्चों के चेहरे पर …आपके चेहरे पर… एक सुकून देखने को मिलता है…

   ” छुट्टी का सुकून ” कितना प्यारा एहसास है छुट्टी….. मैं भी उस एहसास को महसूस करना चाहती हूं….

 प्लीज़… प्लीज़… प्लीज़… प्लीज़ मुझे छुट्टी चाहिए विपुल ….

सौम्या की अंतर मन की अस्थिरता को समझते हुए बड़े ही शांति से सौम्या के हाथों को अपने हाथों में लेते हुए विपुल ने समझाने की कोशिश की….

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     देखो सौम्या ….मैं जानता हूं तुम एक ही काम करते-करते ऊब गई हो… क्यों ना हम अपने रूटिंग को थोड़ा बदल लें….. तुम बिल्कुल चिंता मत करना….. अब सप्ताह में दो दिन मै खाना बनाया करूंगा……पूरा घर संभाल लिया करूंगा …..।

        अरे, अभी तुमने तो मेरी इस काबिलियत को देखा ही नहीं है…. माहौल को सहज और खुशनुमा बनाने की भरपूर कोशिश की विपुल ने……

बच्चों को टिफिन देने से लेकर ड्रेस तक की सारी जिम्मेदारी विपुल ने अपने ऊपर लेने को कहा….. फिर धीरे से सौम्या का हाथ दबाते हुए बोला …अब खुश…

        पर पता नहीं सौम्या चाहती क्या थी …?  जैसे उसे कुछ और ही चाहिए… फिर आंसू भरे आंखों से विपुल की ओर देखती हुई बोली ….प्लीज़ विपु …मुझे छुट्टी चाहिए प्लीज…..

आज विपुल को पहली बार महसूस हो रहा था…..बात-बात पर सौम्या अपने पढ़ाई में अव्वल रहे और कॉलेज की बहुत सारी बातें बताया करती थी ….और विपुल भी बड़े ध्यान से उसकी बातें सुना करते थे…. पर सौम्या के भावों को विपुल ने कभी समझने की कोशिश नहीं की …..उसकी भावनाओं में कहीं कुछ अभाव सा होता था ….और वो शायद अपनी पढ़ाई का सदुपयोग नहीं कर पा रही थी ….इसका  दुख या कमी सौम्या की बातों में स्पष्ट झलकता था…।

कई बार सौम्या अपनी सहेलियों की बातें बताती… फलां सहेली यहां जॉब करती है… वो वहां जॉब करती है…. कभी-कभी विपुल समझाते भी…

 बच्चे अभी छोटे हैं कुछ चीजें देखने में अच्छी लगती हैं पर वास्तविक जीवन में परेशानी भरी होती हैं…. दोनों जगह पर तालमेल बैठाना आसान नहीं होता सौम्या……हालांकि सौम्या इन सभी बातों को अच्छे से जानती भी थी…!

 जब कभी सौम्या की खास सहेली कृति का फोन आ जाता और वो अपने ऑफिस की बातें ….सहेलियों के संग पार्टी की बातें बताती…. तब सौम्या मन मार कर रह जाती…. बातों ही बातों में एक दिन सौम्या ने कृति से कहा…. तुम लोगों की ही जिंदगी मजेदार है, यहां तो मैं सुबह-शाम सिर्फ चौका चूल्हा और बच्चों में ही रह जाती हूं…!

सौम्या के इस कथन पर कुछ देर कृति चुप रही…. फिर बड़े धैर्य से बोली ….देख सौम्या , जिंदगी के दो पहलू होते हैं… तू होम मेकर है , पूरा समय घर और बच्चों को दे रही है….मैं जब बच्चे को छोड़कर ऑफिस आती हूं….

     ”  उसके मेरी और लपकते हाथ….. मेरी गोद में आने को आतुर मन ….रोता बिलखता चेहरा…. दिन भर मुझे बेचैन करता है सौम्या “….

 इतना आसान भी नहीं होता अपने कलेजे के टुकड़े को दिन भर के लिए किसी और को सौंप कर आना…!

फिर हफ्ते भर… हर चीज चाहे वो खाने की हो या कोई और काम…. समझौता तो करना ही पड़ता है… हफ्ते में एक दिन छुट्टी मिलती है , तो लगता है क्या-क्या कर लूं…. उस दिन भी आराम नहीं…

वो क्या है ना…तू पूरा घर संभाल लेती है ….इसलिए तो तेरे पति और बच्चे एक दिन सुकून भरी छुट्टी बिता पाते हैं…!

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रहा सवाल मौज मस्ती का तो…. बेशक जिंदगी का एक प्यारा हिस्सा है वो भी… पर बहुत कुछ वास्तविकता से दूर दिखावे के लिए भी होता है ….असल में तुझे कामकाजी महिलाओं द्वारा सिर्फ और सिर्फ उसकी खूबियों और एक सकारात्मक पहलू ही दिखाया गया है ….जबकि वास्तविकता संघर्ष भरी भी होती है सौम्या ….इसलिए तू होम मेकर बनने पर कभी पछताया मत कर ।

पर कहते हैं ना जो चीज पास में नहीं होती उसे पाने की लालसा ज्यादा होती है…..सौम्या को तो बस सुकून भरी छुट्टी का एहसास करना था …तो करना था…!

 अब तक विपुल सौम्या को मनाने , बहलाने की कोशिश कर रहा था…. अचानक विपुल को एक झटके में कुछ एहसास हुआ….और उसने सौम्या की मानसिक स्थिति को भांपते हुए कुछ पल रुककर …..फिर सामने बैठ कर…. बड़े प्यार से एक ….अभिभावक की तरह बोला …..यार जो छुट्टी तुम्हें चाहिए ना …उसके लिए तो तुम्हें काम करना पड़ेगा…. और वो भी बाहर जाकर …..जब काम करोगी तभी तुम उस  छुट्टी के सुकून का एहसास कर पाओगी …।

     देखो सौम्या ….तुमने एम .एस .सी . किया है…. तुम पढ़ने में इतनी अच्छी थी…. तुमने कभी बाहर काम नहीं किया …तुम जैसे शिक्षित महिलाओं की आज बच्चों को बहुत जरूरत है…. क्यों ना तुम कहीं कोचिंग ज्वाइन कर लो ….. जिससे बच्चों को अच्छी शिक्षा तो मिलेगी और तुम्हें सप्ताह में एक दिन की छुट्टी भी ….हंसते हुए विपुल ने कहा…..!

 एक नामी गिरामी कोचिंग सेंटर में बात कर सौम्या की नौकरी लगा दी गई ..।

 सौम्या ने हां में सिर हिला दिया…. तय हुआ ….घर का काम कुछ दिन विपुल संभालते हुए अपने ऑफिस का काम भी संभालेंगे …..!!

       अगले दिन आत्मविश्वास से भरी सौम्या ……जैसे ही नहा कर बाथरूम से निकली …..अपने माथे से लटो को पीछे की ओर झटकते हुए ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी हुई ……

    विपुल तो  देखता ही रह गया …..आज से पहले विपुल ने सौम्या को कभी इस रूप में देखा ही नहीं था…. सौम्या सच में इतनी सुंदर है…. वाह  , इसके गालों पर तिल बहुत सुंदर दिख रहा है……।

      विपुल ने तो हमेशा …..साड़ी का पल्लू बगल में दबाए रोटी बनाती हुई… पसीने से भीगी हुई सौम्या को ही देखा है…. जो हमेशा सिर्फ और सिर्फ पति और बच्चों के बारे में ही सोचती रहती है….!

         पहली बार सौम्या के बाहर जाने के बाद विपुल ने रसोई की जिम्मेदारी संभाली थी ……अब तक जिसे वो निहायत सरल व सहज समझता था…

       आज उसे ऑफिस के मीटिंग में प्रेजेंटेशन देने से भी  ज्यादा कठिन महसूस हो रहा था…… खैर ….जैसे तैसे दिन बीत गए ….शाम को सौम्या के लौटने का वक्त हो गया….!

        विपुल भी बड़ी बेसब्री से सौम्या के पुलकित चेहरे के साथ लौटने का इंतजार कर रहा था …..घर आते ही सौम्या अपना पर्स टेबल पर पटकने वाले अंदाज में रखती हुई बोली ….

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    विपुल …तुमने वो तीन बजे वाली दवाई ली थी …?

खाना समय पर खाया …?

बच्चे टिफिन में क्या ले गए…?

 वो तुमने काजू बादाम रखे थे या नहीं…?

 बच्चों के लिए हेल्दी होता है यार ….

और तुमने वो खाली पेट वाली दवाई ली थी या नहीं ….?

तुम इतने व्यस्त कहां थे विपुल…? फोन तक नहीं उठा रहे थे ….कितनी बार मैंने लगाए….

 विपुल तुम भी ना ……कहते कहते अचानक सौम्या के आंखों में आंसू आ गए ….!

      विपुल जो खामोशी से सब कुछ सुन रहा था ….आज उसे सौम्या ,  सौम्या नहीं एक पहेली लग रही थी …..उसे समझ में नहीं आ रहा था आखिर वो चाहती क्या है….?

 ना घर में खुश , ना  ही बाहर ….

पर कहते हैं ना ….नारी को समझना मर्दों के बस की बात ही नहीं ……

वो बाहर रहकर भी पूरे समय घर के बारे में ही सोचती है ….!

       एक महिला घर और बाहर जिस सामंजस्य से निर्वाह कर सकती है…. पुरुष सपने में भी नहीं सोच सकता…. पुरुष जब काम पर घर से बाहर निकलता है तो पूरी निश्चितता के साथ… पर महिला घर से बाहर जाते हुए भी घर की भी सारी चिंताएं और बाहर की भी सारी चिंताएं  अपने साथ लिए होती है और…..

 ” ये उनकी मजबूरी नहीं उनका स्वभाव होता है “….!

(स्वरचित , सर्वाधिकार सुरक्षित और अप्रकाशित रचना )

साप्ताहिक विषय : # दिखावे की जिंदगी

संध्या त्रिपाठी

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