नफ़रत की दीवार – नीलम शर्मा  : Moral Stories in Hindi

नीला बहुत खुश और उत्सुक थी आज अपने घर जाने के लिए। क्योंकि उसकी सास ने उसके देवर के लिए उसकी छोटी बहन शिल्पी के रिश्ते की बात करने के लिए उसको अपने घर जाने के लिए कहा था। बहुत प्यार करती थी वह अपनी छोटी बहन से। उसके तो इस बारे में सोच-सोच कर ही पैर धरती पर नहीं पड रहे थे। 

अपने घर जाकर उसने सबको यह खुशखबरी दी तो नीला के पापा तो तुरंत तैयार हो गए। घर बैठे ही इतना बढ़िया लड़का मिल रहा है भाई मुझे तो कोई एतराज नहीं है। लेकिन नीला की मम्मी यह बात सुनकर चुप थी। नीला महसूस कर रही थी। उसकी मम्मी इस रिश्ते की बात सुनकर खुश नहीं हैं।

अकेले में उसने अपनी मम्मी से पूछा मम्मी क्या बात है आपको नीलेश पसंद नहीं है क्या? नहीं बेटा ऐसी बात नहीं है नीलेश तो बहुत अच्छा लड़का है। पर मेरी अपनी सोच है कि दो बेटियों की शादी एक घर में नहीं होनी चाहिए। बेटा कहीं ऐसा ना हो आज तुम दोनों बहनों में जो इतना प्यार है। कहीं देवरानी जेठानी बनने पर यह खो न जाए। अरे मम्मी आप परेशान मत हो। आपको मुझ पर विश्वास है। हां बेटा। 

आखिर नीला के समझाने पर उसकी मम्मी भी इस रिश्ते के लिए तैयार हो गई। दो महीने बाद ही उसकी बहन शिल्पी उसकी देवरानी बनकर घर आ गई। 

नीला की शादी को चार साल हो चुके थे। वह उस घर में रच-बस चुकी थी। शिल्पी तो उस घर में नई थी। उसे सब के अनुरूप ढलने में समय तो लगना ही था। लेकिन उसकी सास हर समय उसकी तुलना नीला से करती रहती। अरे नीला तो इतना बढ़िया खाना बनाती है बिल्कुल हमारी पसंद के अनुसार।

तुम तो इतना मिर्च मसाला डाल देती हो। नीला तो इतनी जल्दी काम करती है। तुम तो बस एक काम को पकड़ कर बैठ जाती हो। नीला अपनी सास से कहती भी कि शिल्पी इस घर में नई है। उसे समय दो लेकिन उसकी सास समझ ही नहीं रही थी। अगर शिल्पी किसी काम को अपने आप करना चाहती, तो उसकी सास कहती तुम रहने दो। नीला कर लेगी। शिल्पी को अपना वजूद कहीं खोता हुआ नजर आ रहा था।

जबकि इसमें नीला की कोई गलती नहीं थी। उसकी सास ही परिपक्व व्यवहार नहीं कर रही थी। जिस घर के बड़े ही बच्चों में असमान व्यवहार करते हैं या बेवजह तुलना करते हैं। तो बच्चों के बीच चाहे वे बेटे हों या बहुएं नफरत की दीवार खड़ी करने में बहुत हद तक उनका ही हाथ होता है।

हमेशा खुश रहने वाली चिड़िया सी चहचहाने वाली शिल्पी कहीं खोती सी जा रही थी। वह उदास और चुप-चुप सी रहने लगी। कोई भी काम करने से उसे डर लगने लगा। उसे लगता कि वह यह काम सही से कर भी पाएगी या नहीं। नीलेश और नीला दोनों ही शिल्पी को इस तरह देखकर परेशान थे।

नीलेश अगर अपनी मम्मी को कुछ कहता तो वह बोलती, हां तू तो जोरू का गुलाम हो गया है। अपने भाई को देख आज तक हम सास बहू के बीच में नहीं बोला। ऐसी बात नहीं थी कि नीला की सास ने उसे कभी कुछ नहीं कहा। लेकिन तुलना करने के लिए कोई नहीं था। बस वे जो कुछ कहती वह सीधा नीला के लिए ही होता।

नीला जानती थी कि इस घर में अपनी जगह बनाने में उसे कितने पापड़ बेलने पड़े थे। आखिर में दोनों देवर भाभी ने मिलकर एक उपाय सोचा और एक दिन नीला ने शिल्पी से कहा मैं कुछ दिनों के लिए घर होकर आती हूं, मेरे ना रहने पर तू अपने हिसाब से घर को संभालेगी तो मम्मी जी का तुझ पर विश्वास जमेगा। नीला अपने घर चली गई उसने अपनी मम्मी को सारी बात बताई तो उन्होंने कहा मुझे इसी बात का डर था। नहीं मम्मी आप अपनी बेटी पर विश्वास रखो मैं शिल्पी की जेठानी बाद में और बहन पहले हूं।

एक साल में ही शिल्पी भी उस घर में रच बस गई। आज दोनों बहने बैठी हुई अपने बच्चों के साथ ऐसे ही पुरानी बातें करने लगी तो शिल्पी की बेटी बोली, मौसी यदि मम्मी की जगह कोई और लड़की होती फिर तो आप बहुत खुश होती। जब दादी आपकी बडाई करती। और क्या फिर तो तुम्हारी मौसी कोई उपाय सोचने के स्थान पर सास के साथ मिलकर एक रौबदार जेठानी बन जाती। पता नहीं शायद….। फिर तो उस लड़की की खैर नहीं थी पीछे से नीलेश ने आकर कहा तो सब हँसने लगे। 

साथियों नई आने वाली बहू को भी उस घर को समझने और अपनाने के लिए समय दें। सोचें कि क्या जब यह घर हमारे लिए नया था। तो क्या हम ऐसे ही नहीं थे जैसे आज यह नई आने वाली बहू है। घर के बड़ों को चाहिए कि बेवजह तुलना करके अच्छे खासे रिश्तो में नफरत की दीवार न खड़ी करें। नहीं तो एक दिन यही बातें अलगाव का कारण बन जाती हैं।

लेखिका : नीलम शर्मा

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