“कर्म और भाग्य” – राम मोहन गुप्त

#ख़्वाब 

“देखा एक ख़्वाब तो ये सिलसिले हुए, दूर तक निग़ाहों में थे गुल खिले हुए”

सुनने में बहुत अच्छे लगते हैं गीत के यह बोल पर हकीकत में स्वप्न का साकार होना, कल्पनाओं का आकार लेना तभी संभव है कि जब किस्मत और कर्म दोनों साथ दें और जब तक ऐसा ना हो तो ‘ख्वाब’ केवल ख्वाब ही रहे जाते हैं।

कुछ ऐसा ही तो हुआ था अमर की जिंदगी में…एक बड़े किंतु आमदनी से तंग परिवार में जन्मे अमर का ख़्वाब था बड़ा बनना…अपनी अलग हैसियत और पहचान बनाना, पर यह इतना आसान कहाँ था!

मेहनतकश माँ-बाबू जी की अथक ज़िन्दगी के साथ उसने भी ख़ुद को वैसे ही ढाल किया। 

ख़ुद पढ़ना, औरों को पढ़ाना, पढ़ाई करते-करते ख़ुद व घर खर्च के लिए कमाना अमर के लिए मानो मूल मंत्र बन गया। यह मंत्र और कुछ अलग करने की चाह ने उसे जीवन जीना सिखा दिया और पढ़ाई के साथ-साथ विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठते हुए कालेज शिक्षा के दौरान ही हुए सिलेक्शन ने अमर के हौसलों को गति दे दी।

फिर क्या था अब तो उसने खुद के साथ परिवार की जरूरतों में हाँथ बंटाना शुरू कर दिया साथ ही परिजनों व समाज की सेवा के ध्येय को भी पूरी लगन से निभाता चला गया। उसके परिश्रम, निरन्तर प्रयासों और किस्मत ने साथ दिया और आज, आज उसकी अपनी एक अलग पहचान है, भले ही छोटी पर निश्छल।


अपने नाम के अनुरूप ही अमर के कार्यों और प्रयासों ने, उसके ख्वाबों को धीरे-धीरे हक़ीक़त का जामा पहनना शुरू कर दिया। अब अमर के जीवन का एक ही उद्देश्य था ख़ुद आगे बढ़ना औरों को भी बढ़ाना, भले ही इसके लिए उसे अथक मेहनत करनी पड़े या फ़िर अपने इस जुनून के लिए दिन-रात एक करने पड़ें।

पर हाँ एक बात जरूर उसने अपने ख़्वाबों को हक़ीक़त में बदल कर ख़ुद का शुकून पा लिया और औरों की मदद कर के उन्हें भी उनकी मंजिल तक पहुँचाने में एक सच्चे साथी की भूमिका निभाते हुए अपार हर्ष भरी शान्ति पा रहा है। अमर के ख़्वाब बहुत बड़े भले न हो पर हक़ीक़त का रूप लेकर इन्होंने उसे अमर बना दिया।

 

( यह अमर और उसके ख़्वाब हैं सभी में, भले ही कुछ इन्हें जानते और मानते है.. तो कुछ इन्हें हक़ीक़त का जामा पहनाते हैं )

रामG

[राम मोहन गुप्त]

 

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