” मेरी प्रेरणा ” – गोमती सिंह

घर में डाक पोस्ट से ये सूचना मिली थी कि मुझे छत्तीसगढ़  साहित्य साधना संस्था में कहानी प्रतियोगिता में बिलासपुर जिला से प्रथम पुरस्कार ग्रहण करने के लिए बिलासपुर में आमंत्रित किया गया है।  सूचना पढ कर मैं फूला नहीं समा रही थी , मेरे पांव जमीं पर नहीं पड़ रहे थे । दौड़ते हुए मैं अपनी प्रिय सहेली सालू के घर चली गई ” सालू….सालू…देख मेरे हांथ में क्या है ।मेरे ” सालू आवाज़ सुन कर पहचान गई ये सनकी सरिता ही है फिर कोई कविता लिख ली होगी जिसे मुझे पढाने को बेचैन दौड़ते चली आ रही है । बाहर आ कर देखी तो सचमुच सरिता ही थी । क्या हुआ रे क्यों भागी आ रही है । ” ये देख ,ये देख क्या रखी हूँ मैं। ” उसके हाथों से लिफाफा लेकर खोलकर पढते ही सालू ने सरिता को गले से भींच लिया ।कुछ देर दोनों ऐसे ही लिपटे रहे ,फिर सालू सरिता के दोनों बाहों को पकड़ कर उसे स्नेहसजल आँखों से देखते हुए  कहा – देख सरिता आज तेरा वर्षों का ख्वाब पूरा होंने वाला है तुम्हें कहानी प्रतियोगिता में बिलासपुर जिला में प्रथम स्थान मिला है ।हाँ सालू ! लेकिन मुझे इस मुकाम तक लाने के लिए तुम ही “मेरी प्रेरणा ” स्रोत रही हो ।फिर दिन आया मंच में  जाकर पुरस्कार ग्रहण करनें का ।

           मंच बना हुआ  था संचालक समूह वहीं उपस्थित थे ,सामने साहित्यकारों का समूह मौजूद था अब सरिता का नाम प्रथम पुरस्कार के लिए घोषित कर दिया गया।  

        सुनकर सरिता का चेहरा  एकदम शान्त मुद्रा में आ गया, उसकी जिंदगी का ख्वाब पूरा हो रहा था ,वह पलट कर अपनें प्राण से प्रिय सहेली को आशा भरी नज़र से देखी  ” सालू ने सगर्व नज़रों से उसे देखते हुए कहा- जा बहन ! अपना पुरस्कार ले आ ।

      सरिता सधे कदमों से चलते हुए मंच में पहुँच गई फिर तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उसे  जिलाध्यक्ष के द्वारा प्रथम पुरस्कार के प्रमाण पत्र से सम्मानित किया गया। 


           मंच संचालन कर्ता ने सरिता को अपने शब्दों से सम्बोधित करनें के लिए माइक पकड़ा दिए । खुशी से सरिता का गला भर आया वह खुद  को जल्द ही संभालते हुए कहनें लगी– आज इस पुरस्कार के हकदार मैं नहीं, मेरी प्रेरणा स्रोत सुलेखा दीदी है मैं तो गाँव की परिवेश में पली बढी हूँ जहाँ लड़कियों के कोई ख्बाब ही नहीं होते , अधिकतम 10वीं 12वीं तक पढ़ाई करा देते हैं फिर ब्याह के ससुराल विदा कर देते हैं।  घर- आँगन भोजन -रसोई के अतिरिक्त सोंचने का उनका दायरा ही नहीं होता ।  उसने सालू की तरफ देखते हुए कहा – मुझे लिखने की आदत थी मैं परिवार में महिलाओं के संघर्ष समाज की दकियानुसी कुरीतियों को देखकर मन में उठती भावनाओं को  छोटी छोटी कविताओं के रूप में डायरी में  लिख लिख कर रखी रहती थी।  मेरी लिखने की इसी आदत को प्रोत्साहित करते हुए सुलेखा दीदी  ने मेरे मन में ख्वाब जगाया और साहित्य सम्राट मुंशी प्रेमचंद की कहानी संग्रह से मुझे परिचित कराया, न  जाने कितनें प्रयास किये मेरी दीदी  ने  और मुझे लिखना सिखाया उन्हीं की वजह से मेरी कविताएँ और कहानियाँ कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई और आज इस कहानी प्रतियोगिता में प्रथम स्थान के काबिल बनाया।  यह प्रणाम पत्र मैं सुलेखा दीदी को समर्पित करती हूँ।  ऐसा कहते हुए उसने सुलेखा को मंच में बुला कर प्रमाण पत्र थमा कर उनके चरणस्पर्श किया ।  इस तरह उन दोनों का ख्वाब पूरा हुआ।

         ।।इति।।

          -गोमती सिंह

             छत्तीसगढ़

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