“ बहू सुनो इस बार तनीषा बच्चों की वार्षिक परीक्षा के बाद यहाँ आने वाली है … तो उनके लिए जरा कमरा तैयार करवा देना और उस कमरे के वॉर्डरोब में जरा जगह खाली कर देना वो लोग पन्द्रह दिन के लिए यहाँ रहने आ रहे हैं तो उन्हें किसी तरह की
परेशानी ना हो इसका ध्यान रखना होगा…अब तो जा कर हमारा अपना एक घर हुआ है नहीं तो पहले दो कमरों के घर में गुज़ारा कर रहे थे ।” बेटी और नात नातिन के आने की बात सुन कर ही सुनंदा जी खुशी से फूली नहीं समा रही थी
“ ठीक है मम्मी जी मैं सब कुछ उनके हिसाब से तैयार कर दूँगी उसके बाद आप सब देख लीजिएगा ।” कृतिका ने हामी भरते हुए कहा
कृतिका सब काम करवाने के बाद सुनंदा जी को देखने के लिए बुला लाई
“ये सब क्या है कृतिका… तुम्हारे कमरे में जगह कम पड़ गई है क्या जो अपना सामान भी इस कमरे में रख रखी हो…और देखो जरा पूरी अलमारी में ये दो रैक बस खाली किए है तुमने…कम से कम इतना तो करो कि मेरी बेटी को भी अपने घर सा एहसास हो।” सुनंदा जी कहते हुए कृतिका के कुछ कपड़े और एक दो बैग निकाल कर बाहर कर दी
कृतिका उन्हें उठाकर अपने कमरे में ले गई और किसी तरह भरी पड़ी अलमारी में ठूँस दिया
दो दिन बाद ही तनीषा अपने बच्चों के साथ घर आ गई उसके बाद तो सुनंदा जी बस बैठे बैठे बहू से ये करो वो करो करती जा रही थी….
कृतिका भी सब कुछ खुशी खुशी कर रही थी वो अपने मायके में बहुत बार ऐसी हालातों को देख चुकी थी कि ननद भाभी के बीच कई बार एक माँ सास की भूमिका में बहुत भारी पड़ जाती है इसलिए उसने सोच रखा था कि वो अपने उपर ऐसे किसी आरोपों को आने नहीं देगी
सुनंदा जी भी बहुत खुश थी कि बहू अपनी भाभी और मामी की भूमिका निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही ।
तनीषा हर दिन कहीं ना कहीं निकल जाती बच्चों को घर पर छोड़कर वो अपनी दोस्तों को मिलने जाती नहीं तो कभी मॉल जाकर अपना समय व्यतीत कर रही थी
तनीषा को आए अभी दस दिन ही हुए थे कि कृतिका को एक दिन रसोई में काम करते हुए चक्कर आने लगे और उसके हाथ में पकड़ी कढ़ाई जमीन पर गिर गई
सुनंदा जी आवाज़ सुनकर आई और कृतिका को जमीन पर बैठा देखकर ग़ुस्सा करते हुए बोली,”हे भगवान सारी की सारी सब्ज़ी गिरा दी… बच्चों ने कितने मन से कहा था मामी पनीर बटर मसाला बना कर खिलाओ और ये महारानी सारा का सारा गिरा कर बर्बाद कर दी अब उठो भी और ये सब साफ कर के फिर से बना दो अब तो पनीर भी बाज़ार से मँगवाना पड़ेगा ।”
सुनंदा जी ने एक बार भी ये जानने की कोशिश नहीं कि की कृतिका की हालत कैसी है।
कृतिका कुछ देर तक वैसे ही बैठी रही उसे समझ ही नहीं आया आखिर ये सब कैसे हो गया… वो तो आराम से गाना गुनगुनाते हुए सब्ज़ी बनाने के बाद गैस से उतारकर स्लैब पर रखने ही जा रही थी कि अचानक उसका सिर घुमने लगा और कढ़ाई हाथ से छूट गई… थोड़ा खुद को संयत कर साफ़ सफ़ाई कर अपने पैरों और कपड़ों पर लगी सब्ज़ी साफ कर वो फिर से सब्ज़ी बनाने की तैयारी करने लगी…सुनंदा जी ने पनीर बाहर से मँगवा दिया था ।
रात को सब खाना खाकर सोने गए तो कृतिका ने महसूस किया उसके पैरों पर सब्ज़ी के गिरने से छाले पड़ गए थे और उसके हाथों पर भी छाले हो गए थे उस वक्त काम की धुन में उसने ध्यान नहीं दिया पर अब वो निशान साफ दिखने लगे थे वो बैठ कर उसपर नारियल तेल लगाने लगी शायद उससे आराम मिल जाए …तभी कमरे में पति निखिल आ गया ।
“ ये क्या हुआ तुम्हें… इतना कैसे जल गया?” निखिल परेशान होता हुआ बोला
“ अरे कुछ नहीं…पता नहीं कैसे मेरा सिर घुमा और सब्ज़ी से भरी गरम कढ़ाई हाथ से छूट कर नीचे गिर गई ।” कृतिका नारियल तेल लगाते हुए बोली
“रुको मैं मलहम देख कर आता हूँ ।” कहते हुए निखिल बाहर निकल गया
“ माँ घर में वो मलहम है क्या जो जल जाने पर लगाते है।” निखिल ने पूछा
“ क्यों क्या हो गया?” सुनंदा जी पूछी
“ वो कृतिका के हाथ पाँव जल गए हैं आज गर्म सब्ज़ी गिर गई थी।” निखिल जो इन बातों से अनजान था कि सुनंदा जी सब जानती हैं बोल पड़ा
“एक तो पूरी सब्ज़ी बर्बाद कर दी और अब महारानी के हाथ पैर जल गए ये सब ना तेरी पत्नी के नाटक है…कहाँ तू इन सब पर ध्यान दे रहा है हम औरतों के साथ ये सब होता रहता है ।” सुनंदा जी लापरवाही से बोली
“ माँ मेरी पत्नी की जगह आपकी बेटी होती तो…कितनी आसानी से आप ये बोल रही है तेरी पत्नी के नाटक… नाटक तो तनीषा दी ने किया था याद है वो जब शादी के बाद घर आई थी आपने कितने प्यार सो बोला था तनु चाय बना देगी क्या बेटा… बहुत सिरदर्द कर रहा है… तब दीदी ने कैसे भुनभुनाते हुए कहा था…क्या माँ अब तो काम मत करवाओ…
फिर भी आपके आग्रह पर वो चाय बनाने गई…और गरम चाय हाथ पर गिरने की बात कही जिसके बाद आपने कभी उनसे रसोई का काम करने को नहीं कहा…वो बाद में मुझे कह रही थी निखिल माँ कितनी भोली है ना मैं काम नहीं करना चाहती तो हाथ जलने की बात क्या की उन्होंने मुझे अब कोई काम करने से ही मना कर दिया है… मैं ये बात कभी कह नहीं पाया पर आज आपके मुँह से ये सब सुन कर सच में बुरा लग रहा है।” कहता हुआ निखिल माँ के कमरे से निकल गया
दूसरे दिन उसने कृतिका से साफ कह दिया था कि आज रसोई का कोई काम नहीं करोगी… हाथ में छाले पड़ गए हैं और तुम सबको खुश करने में लगी हो… ये भी नहीं कहती कि मुझे दर्द हो रहा है किस मिट्टी की बनी हो यार तुम?
“ आप इतना ग़ुस्सा क्यों हो रहे हैं….. माँ और दीदी क्या सोचेंगे… वो आई हैं तो मैं बहाना कर के बैठ गई ।” कृतिका ने कहा
“ कृतिका बस करो…मैं माँ से बात कर लूँगा तुम आराम करो।” कहते हुए निखिल कृतिका को बिस्तर पर लिटाने को हुआ तभी उसको फिर से ऐसा लगा जैसे सिर घुम रहा है वो सिर पर हाथ रखी तब निखिल ने पूछा तबियत ठीक तो है नहीं तो चलो डॉक्टर को दिखा लो
“ अरे बस थोड़ी कमजोरी सी लग रही है ठीक हो जाऊँगी लग रहा समय पर खाना नहीं खाने से ऐसा हो रहा है ।” कृतिका लापरवाही से बोली
निखिल उसकी एक नहीं सुना और उसे अस्पताल ले जाने लगा
“कहाँ जा रहे हो तुम दोनों?” दोनों को बाहर जाते देख सुनंदा जी ने पूछा
“माँ इसको चक्कर आ रहे हैं वहीं दिखाने ले जा रहा पता तो चले आखिर ये सब क्यों हो रहा ।” निखिल ने कहा
“ अरे भाई मेरे आते तेरी पत्नी की तबियत ख़राब हो गई ये सही ।” पीछे से तनीषा ने कटाक्ष किया
“ दीदी आप और मम्मी मिल कर आज खाने का देख लो मैं आता हूँ ।” निखिल तनीषा की बात सुन दुखी ज़रूर हुआ पर उसे नज़रअंदाज़ कर बाहर निकल गया
जब दोनों डॉक्टर को दिखा कर लौटे तो खुशी से चेहरे चमक रहे थे ।
“ क्या कहा डॉक्टर ने?” घर में घुसते ही सुनंदा जी ने पूछा
“ माँ आप दादी बनने वाली है …. डॉक्टर ने कहा है अभी वैसे सबकुछ ठीक है बस चक्कर आ रहे हैं उसके लिए थोड़े दिन आराम करें … ज़्यादा काम करने या भागदौड़ करने समय पर ना खाने की वजह से चक्कर आ गया होगा…माँ तुम और दीदी सब सँभाल तो लोगी … हमारा पहला बच्चा है तो मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहता ।” निखिल बाप बनने की बात सुन चिंतित हो कर पूछा
“ अरे बेटा तू इतनी चिंता क्यों करता है…हम औरतों को ये सब झेलना आता है काम नहीं करेंगे तो बच्चा स्वस्थ कैसे बनेगा… हमने कब आराम किया था उस हालात में सुनंदा जी बोली
“ वाह भाभी बधाई हो….ये तो खुशी की बात है पर जब आप आराम करेंगी तो ..?” तनीषा व्यंग्य करते हुए बोली
“ तुम हो ना दी याद है तुम्हें जब तुम पहली बार माँ बनने वाली थी… माँ ने तुम्हें अपने पास बुला लिया था ये बोल कर ससुराल में आराम कैसे कर पाएगी और तुम्हें तो बैठे बैठे ही सब मिल जाता था फिर कृतिका के साथ क्यों नहीं… क्यों माँ तुम जैसे बेटी के साथ व्यवहार की वैसे ही बहू के साथ भी करोगी ना या मेरी पत्नी के नखरे कह कर …?” निखिल ने भी व्यंग्य करते हुए कहा
“ अरे नहीं बेटा दादी बनने वाली हूँ… अब तो बहू को पलकों पर बिठा कर रखूँगी… चलो पहले तुम दोनों भगवान के सामने हाथ जोड़ कर आशीर्वाद तो ले लो ।” सुनंदा जी समझ गई थी अब बेटा पत्नी के लिए कुछ नहीं सुनेगा…
और अगर वो उसके खिलाफ हो गई तो कहीं बेटा उनसे ही ना चिढ़ जाए वो भी ना कैसी मानसिकता लेकर बैठी है बहू और बेटी के दर्द में भेद करने चली है जबकि जानती है बहू सदा उनके साथ रहेगी बेटी तो आती जाती रहेगी ।
सुनंदा जी ने कृतिका का पूरा ख़याल रखने का मन बना लिया ताकि बेटा ये ना कह सके माँ मेरी पत्नी की जगह आपकी बेटी होती तो…!
मेरी रचना पढ़कर अपने विचार व्यक्त करें।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
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