निकेतन कई दिनों से परेशान था उसे समझ नहीं आ रहा था कैसे वो अपनी बीमार माँ और पत्नी से अपनी परेशानी शेयर करे… कभी कभी तो उसके दिमाग में बुरे विचार भी आने लगते…
नाते रिश्तेदारों ने भी अपने हालात का हवाला देकर पहले ही हाथ खींच लिए थे ऐसे में वो ज़िन्दगी से हताश हो आज वो खुद को ख़त्म करने का पूरा मन बना लिया था…पहले नौकरी चली गई उसके बाद किसी तरह पाई पाई जोड़कर माँ ने उसे दुकान करने की सलाह दी और अपने ही छोटे से घर के खुले अहाते में परचून की दुकान खोल ली शुरू शुरू में दुकान सही से चल रही थी
मेन रोड पर पुश्तैनी घर होने से उसे दुकान चलाने में परेशानी भी नहीं हुई…कभी कभी माँ भी दुकान सँभाल लेती थी…सब कुछ अच्छा ही चल रहा था पर अचानक से पता चला दो घर के बाद खाली पड़ी जमीन पर एक सुपरमार्केट बनने वाला है… और उसके तैयार होते ही निकेतन की दुकान के सभी ग्राहक सुपरमार्केट जाने लगे…..
उसकी दुकान पर इक्के-दुक्के ग्राहक ही आते …सामान खराब होने लगा और बरबादी देख उसके लिए परिवार चलाना मुश्किल होने लगा और आज अपनी परेशानी का हल उसने खुद को ख़त्म करने में नज़र आने लगा
वो रात को दुकान बंद कर ऐसे ही सड़क पर निकल गया इस गली उस गली होते हुए वो अचानक सड़क पर एक बाइक सवार से टकरा गया
“ देख कर नहीं चल सकता है… तो सड़क के किनारे चल यों बीचोंबीच मरने चला आया है क्या?”
“ हाँ सही समझें ।” कहकर निकेतन आगे बढ़ने लगा
तभी अचानक वो आदमी उसके पास आया और बोला ,” अबे निकेतन तू ।”
सड़क की रोशनी में उसे चेहरा तो पूरा साफ नहीं दिखा पर उस आदमी की आवाज़ सुन वो ज़रूर चौंक गया
बचपन का साथी विवेक उसके पास खड़ा था
“ क्यों बे क्या हुआ ऐसे क्यों बोल रहा मरने जा रहा?” विवेक उसे किनारे ले जाकर गले मिलते हुए बोला
निकेतन ने पहले उसका हालचाल पूछा फिर सब परेशानी बता दिया
विवेक ये सब सुनकर बोला,” निकेतन आजकल अधिकांश लोग इस तकलीफ़ से गुजर रहे हैं एक तो ऑनलाइन शॉपिंग जहाँ आरामदायक हो गई है और सुपरमार्केट में जाकर अपनी पसंद की चीज़ें देखकर लोग खुद चुनचुन कर लेने लगे है उससे इस तरह के छोटे दुकानदारों की हालत खराब हो रही है तुम अपनी परचून की दुकान बंद करो और आजकल के चलन पर चाय कॉफी स्नैकस की दुकान खोल लो…
मैंने बहुत जगह देखा है अच्छा स्वाद हो तो ग्राहक आते है और ऐसे भी किसी बिज़नेस को जमने में वक़्त लगता है फिर तेरे घर के आसपास तो बहुत सारे ऑफिस भी है वो लोग इस तरह की जगह खोजते है… जहाँ अच्छी चाय कॉफी मिल सकें और रही बात पैसों की उसकी फ़िक्र मत करना मेरे से जितना हो सकेगा तेरी मदद ज़रूर करूँगा
वक़्त पर तेरे काम ना आया तो क्या दोस्ती….बचपन में तुमने मेरी बहुत मदद की यार जब माँ चल बसी थी तो चाची के हाथों का खाना आज भी याद आता है …तेरा टिफ़िन तो मैं ही खा जाता था।” विवेक पुराने दिन याद कर नम आँखों से बोला
निकेतन कुछ सोचकर वापस घर आ गया… माँ और पत्नी से इसपर चर्चा किया और सभी की सहमति से उसने चाय जूस और हल्के स्नैक्स की दुकान खोल ली विवेक ने उसका बहुत साथ दिया….धीरे-धीरे निकेतन की दुकान चल पड़ी और उसकी परेशानी भी जाती रही।
विवेक जो अपने घर कुछ दिनों के लिए आया था वापस जाते वक्त जब निकेतन से मिलने आया तो उसने विवेक से कहा,” उस दिन तुम ना मिलते तो मेरे परिवार का क्या होता… मैं सच में हताश हो मरने ही निकला था पर वक्त पर तुमने मेरी मदद कर के मुझपर बहुत बड़ा एहसान किया है… तुम्हारे पैसे मैं जल्द ही चुका दूँगा ।”
विवेक उसके कंधे पर प्यार से हाथ रखते हुए बोला,” माना मैं यहाँ नहीं रहता पर तू मुझे कभी भी याद कर सकता है…..यार हूँ तेरा ।”
रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
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