रामचंद्र शहर के बहुत बड़े समाजसेवक थे।उनके परिवार में उनकी पत्नी रजनी 3 बेटे महेश,सुरेश और नरेश थे और बहुएं गायत्री,अनीता और विद्या। सारा परिवार मिलकर रहता था।तीनों भाई पिता का जमाजमाया कारोबार संभालते थे।उनकी बहुत बड़ी साड़ियों की दुकान थी।
भाई सुबह दुकान पर जाते और बहुएं घर पर रहती।बाकी सभी कामों के लिए तो नौकर चाकर थे परंतु रसोई की जिम्मेदारी तीनों बहुओं के जिम्मे थी।पहले तो सब काम आराम से होता फिर तू कर मै कर की वजह से रजनी ने तीनों बहुओं में काम बाट दिया।सुबह की जिम्मेदारी बड़ी बहु गायत्री की थी।
दोपहर की मझली बहु अनीता की और रात की विद्या की।फिर भी कभी कभी उनकी बहस हो जाती।गायत्री सुबह का नाश्ता,सबके लंच बनाती। दोपहर को सभी आदमी दुकान से खाना खाने आते और बच्चे भी स्कूल से आते और सब साथ ही खाना खाते और शाम को बच्चे पहले और बड़े बाद में तो विद्या को दो बार खाना बनाना पड़ता उससे उसे बड़ी परेशानी होती
वो कई बार बोलती भी सबसे ज्यादा काम मेरे हिस्से में है।एक बार विद्या को शाम को कही जाना था।इसलिए उसने अनीता से कहा भाभी आप दिन में सब्ज़ी बनाओगे तो ज्यादा बना लेना शाम को मुझे कही जाना है। अनीता बोली ना बाबा ना एक बार कर लू वही बहुत है।
आज विद्या को बहुत बुरा लगा हम एक साथ रहते है पर कोई किसी की मदद नहीं करता।विद्या शाम का खाना बनाने लगी नरेश जब घर आया तो उसने पूछा अरे तुम तैयार नहीं हुई।हमे जाना था ना विद्या बोली पहले कुनबे का खाना तो बना लू। यहां हर समय सब भूखे ही रहते है।
सुबह खाना ,शाम खाना कोई आजादी नही।नरेश बोला तुम्हे पता था तो तुम जल्दी तैयारी कर लेती।विद्या ने जैसे तैसे खाना बनाया और परोस दिया पर इस चिक चिक की आवाज सास ससुर के कानो में पड़ चुकी थीं इसलिए उन्होंने एक फैसला लिया उन्होंने घर के बंटवारे का फैसला किया। बड़ी बहु गायत्री इस फैसले से खुश नहीं थी
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वो बोली मां पिताजी ऐसा मत कीजिए सब साथ रहेंगे ये दोनों छोटी है समझ जाएगी कुछ दिन मै। रामचंद्र जी बोले नहीं बेटा ये ऐसे नहीं मानेगी।इन्हें सबक की जरूरत है।बेटों और बड़ी बहु गायत्री की इच्छा के विरुद्ध भी बंटवारा हो गया।
सबसे ऊपर वाले हिस्से में छोटी विद्या,बीच वाले अनीता और अपने पुराने यानी नीचे वाले हिस्से में रामचंद्र उनकी पत्नी और गायत्री बेटा महेश और उनके बच्चे रहने लगे। अनीता और विद्या को आजादी मिल गई अब ना तो खाना बनाने की चिक चिक ना कोई रोक टोंक।सुबह जहां नाश्ते में पराठे ,उपमा ,रोटी सब्जी होती थी
अब ब्रेड होती थीं।बच्चे रोज लेट लंच में भी हेल्थी खाने की जगह ब्रेड,सैंडविच पिज्जा आ गया।दोनो बेटे भी दुकान पर खाना लाते कभी रात का बासा या दाल चावल।दोनो बहुत परेशान थे एक दिन अपने बड़े भाई महेश से बोले भैया इन दोनों के चक्कर में हमारा तो बुरा हाल हो गया है ढंग का खाना नसीब ही नहीं होता।
महेश बोला ये खाना तुम गाय को डाल दो और आज हमारे साथ घर चलो।पर पिता जी सुरेश बोला पिताजी कुछ नहीं कहेंगे तुम चलो तीनों भाई घर आए।रजनी बहुत खुश थी अपने बेटों को देख कर जल्दी से गायत्री ने खाना लगाया उस दिन सुरेश और नरेश ने इतने दिन के बाद घर का स्वदिष्ट और पौष्टिक खाना खाया।
कुछ दिन बाद बच्चों को स्कूल भेजकर अनीता अपनी सहेलियों के साथ बाहर चली गई।स्कूल में अनीता की बेटी की तबियत खराब हो गई वो मॉल में होने की वजह से उसका फोन नहीं लगा। घर फोन पहुंच। ।गायत्री ड्राइवर के साथ स्कूल गई और तुरंत बच्ची को हॉस्पिटल में एडमिट करवाया।
ज्यादा बाहर का खाने से बच्ची के पेट में इन्फेक्शन हो गया था।उधर विद्या भी बीमार हो गई उसे इतने घर के काम की आदत नहीं थी। वहां तो सारा काम बाई और उसकी सास देखते थे। यहां तो नाश्ते से लेकर खाने तक सब खुद ही करो और अकेले रहो। वो उकता चुकी थीं।जैसे ही अनीता घर पहुंची तो उसे नीचे से उसके बेटे रोहित की आवाज आई।
ताई जी एक और पराठा आज इतने दिन के बाद अच्छा खाना खाया है।गायत्री बोली है बेटा लो।अनीता अंदर आई और बोली तुम क्या पराठे खा रहे हो मै पिज्जा और डोनट्स लाई थी।रोहित बोला मुझे नहीं खाना।मम्मी वो कभी कभार ठीक है रोज नहीं।उधर से सुरेश अंदर आते हुए
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बोला तुम्हारे इसी आलस ने आज हमारी बेटी रूही को हॉस्पिटल पहुंचा दिया।तुम्हे यहां हर तरीके की आजादी थी सिर्फ दिन में एक बार खाना बनाना होता था तुम उसमें भी चिकचिक करती थी।तब तक ऊपर से विद्या भी नीचे आ गई।सुरेश बोला तुम्हारा आलस हमारे बच्चों पर आ गया।रजनी बोली सुरेश तुम खाना खाओ
और रूही के लिए खिचड़ी बनी है वो लेकर जाना।अनीता बोली रूही हॉस्पिटल में है आपने मुझे फोन क्यों नहीं किया। सुरेश बोला तुम्हारा फोन बंद था।स्कूल से तुम्हे फोन आया वो बंद मुझे आया मार्केट की भीड़ में मुझे सुनाई नहीं दिया।भाभी स्कूल से रूही को हॉस्पिटल लेकर गई।अब बहुत हुआ मै आज ही अपने बच्चों के साथ नीचे आ रहा हूं।
तुम्हे आना है तो आओ नहीं तो यहां से जाओ।तब तक विद्या भी अंदर आ गई और हाथ जोड़ कर अपने सास ससुर से बोली मुझे भी माफ कर दीजिए।मुझे अकेले नहीं रहना सब के साथ रहना है मेरी एक भूल ने मुझे यह अहसास करवा दिया कि परिवार क्या होता है और इस हालत में तो वैसे भी अकेले नहीं रहना चाहिए ना।
रजनी ने विद्या को गले लगा लिया अनीता ने भी अपने सास ,ससुर और सुरेश से माफी मांगी।तब तक नरेश रूही को डिस्चार्ज करवा कर घर ले आया।आज रात खाने की टेबल पर पूरा परिवार कहकहे लगा रहा था।रामचंद्र जी बोले मुझे खुशी है तुम्हे अपनी गलती समझ आ गई और ये रिश्ते टूटने से पहले ही जुड़ गए।
बेटा परिवार एक धुरी के समान है जो एक दूसरे से जुड़ा है परेशानी को मिलकर सुलझाओ उसका बतंगड़ मत बनाओ।इस घर की खुशी तुम सब से है और आशा करता हूं दुबारा ये सब नहीं होगा बच्चो की और सब की सेहत का ख्याल रखा जाएगा और विद्या बहु का ज्यादा ध्यान रखा जाएगा।गायत्री और अनीता बोली जी पिताजी हम सब ध्यान रखेंगे।अब घर में वही कहकहे गूंजने लगे।सब एक दूसरे का ज्यादा ध्यान रखने लगे रिश्ते और गहरे हो गए।
स्वरचित कहानी
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