“समय दिखाई नहीं देता पर बहुत कुछ दिखा देता है कनक ये बात मुझसे ज्यादा कौन जान सकता है?” काव्या ने अपनी सहेली कनक से उदास लहज़े में कहा।
” तेरा फैसला मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है” कनक ने काव्या को देखते हुए कहा।
“मेरा फैसला बिल्कुल सही है ये फैसला मैंने आज नहीं लिया है ये निर्णय तो मैंने बहुत पहले ले लिया था कनक, अमल इस पर आज किया है” काव्या ने गम्भीर मुद्रा में जवाब दिया।
कनक अपनी सहेली काव्या से मिलने उसके ऑफिस आई थी वो एक एनजीओ का ऑफिस था जहां सताई हुई औरतों के अधिकारों के काम होता था काव्या यहां की मैनेजर थी।
“काव्या तुम अपनी ससुराल में भी रह सकती हो जैसे पहले रह रहीं थीं तुम अपने पति से कोई मतलब न रखो!!? जब तुम अपनी ससुराल में रहोगी तो किसी को कुछ पता ही नहीं चलेगा तुम बदनामी से भी बची रहोगी वरना समाज के तानों को तुम सहन नहीं कर पाओगी। आज भी एनजीओ में काम करने वाली औरतों को समाज अच्छी नजरों से नहीं देखता ” कनक ने अपने मन की बात स्पष्ट की।
“नहीं कनक अब मुझे लोगों की परवाह नहीं है मैंने बहुत तानें सुने हैं उससे ज्यादा और क्या सुनूंगी”काव्या ने व्यंग्यात्मक लहजे में जबाव दिया,
” काव्या तुम एक औरत हो उसे कदम-कदम पर मजबूर किया जाता है तुम उन मजबूरियों को समझो ” कनक ने समझाने वाले लहज़े में कहा
” कनक कैसी मजबूरी औरत को मजबूर कौन करता है ये पुरूष प्रधान समाज, अब मैं इस समाज की परवाह नहीं करती, आज मैं खुद को मजबूर नहीं समझती जैसे आज से 25 साल पहले समझती थी। उस समय मैं मजबूर थी उस समय मुझे मजबूर होकर अपनी ससुराल जाना पड़ा था तब मैं सिर्फ़ एक औरत नहीं एक मां भी थी उस समय एक मां ने अपने बच्चों के भविष्य के लिए अपने मान सम्मान और स्वाभिमान की तिलांजलि दे दी थी। आज मैं मजबूर नहीं हूं मेरे बच्चे अब अपने पैरों पर खड़े हो गए हैं इसलिए अब मुझे दुनिया के तानों की परवाह नहीं है।
इस कहानी को भी पढ़ें:
इन 25 सालो में मैंने समय को तो नहीं देखा पर उस समय ने मुझे बहुत कुछ दिखा दिया।कनक बीते हुए लम्हों ने मुझे इतना तो समझा दिया है, यहां हर रिश्ता स्वार्थपरता में लिप्त है। यहां कोई अपना नहीं है एक औरत के लिए अकेले रहकर बच्चों को पालना आसान नहीं है मैंने कोशिश की पर उसमें सफल नहीं हुई इसका सबसे बड़ा कारण था मैं आर्थिक रूप से समर्थ नहीं थी।
” तेरी बात सही है तूने बहुत कुछ सहा है ससुराल वालों के तानें पति की बेरुखी ,अपमान , कदम-कदम पर तेरा आत्मसम्मान घायल हुआ है पर अब तो तेरे पति बदल गए हैं वो अपनी ग़लती सुधारना चाहते हैं तू उन्हें माफ़ क्यों नहीं कर देती!!?” कनक ने कहा
” कनक ये तुम कह रही हो!? मैं उस व्यक्ति को माफ कर दूं जिसने एक पत्नी के वजूद को जलील किया उसे कदम-कदम पर अपमानित किया उसने मेरी मांग के सिंदूर को भी अपमानित किया है मैं अपने पति को कभी माफ़ नहीं कर सकती ” काव्या ने कठोर शब्दों में कहा
” काव्या तुम अपना पूरा जीवन अकेले कैसे गुजारोगी एक औरत के लिए अकेले जीवन गुजारना बहुत कठिन होता है ” कनक ने धीरे से कहा
” पति के साथ रहकर मैंने जो जलालत भरी जिंदगी गुजारी है वो मैं जानती हूं 25 वर्षों तक पति के साथ रहकर भी मैं अकेली ही थी वो कभी भी मेरे साथ नहीं थे रातों की तन्हाइयां मुझे डसती थी मेरा मन भी पति के साथ के लिए मचलता था पर मेरे पति दूसरी औरतों की बाहों में अपनी रातें गुज़ारते थे मैं अकेली तन्हाइयों में अपने आंसूओं से खुद को भिगोती थी मुझे अकेले रहने की आदत है ” काव्या ने व्यंग्यात्मक लहजे में जबाव दिया।
” काव्या मैं तेरे दर्द, तेरे गुस्से को समझतीं हूं मैं जानती हूं तुमने बहुत कुछ सहन किया है इसलिए तू पत्थर हो गई है काव्या औरत तो क्षमाशील होती है उसमें दया ममता का सागर हिलोरें लेता रहता है जीजाजी तेरे पति हैं एक पत्नी के नाते उन्हें माफ़ कर दे ” कनक ने काव्या को गहरी नजरों से देखते हुए कहा
” कनक तेरी बातों को सुनकर तो मुझे ऐसा लग रहा है तू मेरे पति की वकालत करने यहां आई है!!?” काव्या ने कनक को घूरते हुए कहा
” हां ये सच है कल बाजार में मुझे जीजाजी मिले थे वो बहुत बीमार लग रहे थे उन्होंने मुझे रोककर कहा,” कनक जी आप काव्या की सबसे अच्छी सहेली हैं आप उससे कहिए वो मुझे माफ कर दे और अपने घर वापस आ जाए मैंने काव्या का बहुत दिल दुखाया है मैं अपनी ग़लती सुधारना चाहता हूं अब मैं उसे कोई दुःख नहीं दूंगा अगर आप उसे समझाएंगी तो वो आपकी बात नहीं टालेगी मुझे जीजाजी की आंखों में पश्चाताप के आंसू दिखाई दिए थे पछतावे के आंसू देखकर तो भगवान भी माफ़ कर देते हैं तू तो उनकी पत्नी है उन्हें माफ कर दे ” कनक ने कहा
” कुछ गुनाहों का प्रयाश्चित नहीं होता उन्होंने मेरे साथ जो अमानवीय व्यवहार किया है उसे भूलना मेरे लिए सम्भव नहीं है मैं ये भी कह सकतीं हूं की नामुमकिन है काव्या वैसे भी मैं भगवान नहीं इंसान हूं इसलिए मैं अपने पति को माफ नहीं करूंगी मैं अब उस घटिया इंसान के साथ एक पल भी नहीं रह सकती उसने मेरे शरीर को ही नहीं मेरी आत्मा को भी लहूलुहान किया है मैं उसे कभी क्षमा नहीं करूंगी ये बात तुम मेरे पति से जाकर कह देना ये बात मैंने अपने बच्चों से भी कही है” काव्या ने नफ़रत से कहा
” काव्या मेरी बात तो सुन ” कनक ने कहा, काव्या ने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया वो अपनी ही रौ में बोली रही
इस कहानी को भी पढ़ें:
रिश्तो के भी रंग बदलते हैं – संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi
“कनक अगर मेरे माता-पिता अमीर होते या मैं खुद आर्थिक रूप से समर्थ होती तो मैं दोबारा अपने पति के घर लौटकर न जाती,कनक तेरे माता-पिता पैसे वाले हैं तू मध्यम वर्गीय परिवार की स्थिति से अंजान है एक मीडिल क्लास वालों को शादी के बाद अपनी,बहन बेटियों को अपने पास रखना आसान नहीं होता। मेरे साथ भी यही हुआ था शादी के बाद ही मुझे पता चल गया था , मेरे पति एक अय्याश व्यक्ति हैं शराब शबाब उनकी कमजोरी है उनको बढ़ावा देने वाली मेरी सास हैं।
मैंने कई बार अपनी सास से बात करने की कोशिश की पर उन्होंने मुझे ही दोषी करार दे दिया।उनका कहना था , मैं अपने पति को अपने मोहपाश में बांध नहीं पाई इसलिए मेरे पति दूसरी औरतों के साथ रातें बीताते हैं,मेरी सास ने तो यहां तक कहा अगर तुम्हें अपने पति को वश में रखना है तो तुम भी अपने पति के साथ शराब पियो अपने जिस्म का प्रदर्शन करो उनकी बातें सुनकर मुझे स्वयं से घृणा होने लगी।एक दिन तो हद हो गई जब मैं अपने मायके गई थी और बिना बताए ससुराल आ गई तब मैंने देखा
, मेरे पति मेरे ही बिस्तर पर किसी गैर औरत की बाहों में लेटे शराब पी रहें हैं मैंने जब उनसे पूछा ये सब क्या हो रहा है,!!? तो उन्होंने व्यंग्यात्मक मुस्कुराहट के साथ कहा ये मेरा घर है यहां रहना है तो तुम्हें ये सब सहना होगा उनकी बात सुनकर मेरा खून खौल उठा मैं अपने दोनों बच्चों को लेकर मायके चली गई वहां कुछ दिनों तक तो सब ठीक रहा फिर उसके बाद मेरी भाभी के तानों ने मेरा जीना हराम कर दिया। मैंने नौकरी ढूंढने की कोशिश की पर मुझे नौकरी तो नहीं मिली बल्कि लोगों की गंदी निगाहों का सामना करना पड़ा।
उसके बाद मैंने फैसला किया , जब-तक मेरे बच्चे अपने पैरों पर खड़े नहीं हो जाते मैं जलालत सहकर भी अपनी ससुराल में ही रहूंगी। जानती हो कनक ये फैसला मैंने क्यों लिया था!!? मैं बच्चों की अच्छी परवरिश और पढ़ाई-लिखाई का खर्चा कहां से उठाती । इसलिए मैंने अपमानित होकर दोबारा उसी नर्क में रहना स्वीकार किया था।
मैंने उस घर में पति के साथ रहकर बहुत जलालत उठाई फिर भी मैं चुप रही क्योंकि मैं एक मां थी मां तो अपने बच्चों के लिए अपने जिस्म का सौदा भी कर देती है मैंने तो सिर्फ जलालत सही थी,आज एक मां ने अपना फ़र्ज़ पूरा कर दिया है बेटी अपनी ससुराल में खुश है और बेटा अपनी पत्नी के साथ।
मैं अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो गई हूं अब मैं उस घर में रहकर स्वयं को अपमानित नहीं करवा सकती कनक तू नहीं जानती जब मैं मजबूर होकर मायके से ससुराल आई थी तो मेरे पति और सास ने मुझे बहुत अपमानित किया था। मैंने इतना लम्बा समय कैसे गुजारा है ये सिर्फ मैं जानती हूं या मेरा भगवान आज मुझे उस ज़लालत से आजादी मिल गई है।अब मैं अपना जीवन अपने तरीके से जीने के लिए स्वतंत्र हूं” काव्या ने कहा कनक ने देखा वो शून्य से देख रही थी
” ठीक है तुम अपने पति के साथ नहीं रहना चाहती तो न रहो अपने बेटे बहू के साथ रहने में क्या परेशानी है!?” कनक ने पूछा
” मैं अपने बेटे बहू के साथ भी नहीं रहूंगी इसका भी बहुत बड़ा कारण है मैंने महसूस किया है अपनी दादी की तरह मेरा बेटा भी अपने बाप को पूरी तरह गलत नहीं मानता हां मेरी बेटी मेरे दर्द को समझती है,इतने लम्बे समय में मैंने इतना तो देख समझ लिया है , सभी रिश्तों की नींव स्वार्थ पर टिकी हुई है आगे चलकर मेरे बेटे को अपने बाप की लाखों की प्रापर्टी मिलेगी वो उसे क्यों छोड़ना चाहेगा वो भी कल को तुम्हारी तरह मुझ पर दबाव डालने की कोशिश करेगा मैं उसके पिता को माफ़ कर दूं जो मैं कर नहीं सकती!!?
इस कहानी को भी पढ़ें:
अब मैं बेटे के मोह में पड़कर अपना आगे का जीवन नर्क नहीं बनाना चाहती। इसलिए मैंने एनजीओ ज्वाइन किया है यहां रहकर मैं अपने जीवन का फैसला खुद करूंगी।अब मुझे किसी भी सहारे की जरूरत नहीं है अब मेरे बच्चे बड़े हो गए हैं वो अपना अच्छा बुरा समझते हैं यही सोचकर मैंने उन्हें स्वतंत्र कर दिया है, मैं एनजीओ के माध्यम से समाज और परिवार से सताई औरतों के लिए कुछ करना चाहतीं हूं मैं अब अपने तरीके से जीऊंगी, अपने जीवन के फैसले खुद करूंगी, मैंने समय को तो नहीं देखा पर समय ने मुझे बहुत कुछ दिखा दिया है, आज समय की यही मांग है जीओ और जीने दो” काव्या ने गम्भीर लहज़े में कहा
कनक ने देखा काव्या के चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक थी अब वो पहले वाली कमजोर काव्या नहीं थी।
डाॅ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित अयोध्या उत्तर प्रदेश
(#कुछ गुनाहों का प्रयाश्चित नहीं होता)