सांझ के बाद ही सबेरा है – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

…. नदिया की लहरें प्रतिदिन की भांति ही अठखेलियां कर रहीं थीं,मस्त सुरभि का झोंका उन्हें गुदगुदा रहा था ढलते सूरज की सुनहरी अलबेली रश्मियों ने आसमान को एक अनूठे चित्रकार की भांति अपनी तूलिका से रंग दिया था, ढलती सांझ में नीलाभ विस्तृत आकाश सुरमई प्रतीत हो रहा था।

लेकिन आज अंगद को यह अद्भुत दृश्य दिखाई नहीं दे रहा था बल्कि एक अस्त होते हुए डूबते अवसाद ग्रस्त अंतिम सांस गिनते सूरज की कल्पना उसे और अवसाद ग्रस्त कर रही थी।

जिंदगी कब कहां मोड ले लेती है अंगद सोच रहा था।

सूरज भी अस्त हो रहा है  मेरी जिंदगी का सूरज भी तो अस्त हो गया है।इतनी इज्जत कमाई जीवन भर और आज एक पल में ही सालों की कमाई इज्जत गंवा दी।जीवन की ढलती सांझ में किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहा मैं।बेबुनियाद झूठे आरोपों ने निर्ममता से मेरी सच्चाई और ईमानदारी को अपने पैरों तले कुचल दिया।कितनी सहजता से सबने मान भी लिया।वीडियो क्लिप्स भी बना लिए जिसमें मैं रुपयों का लेन देन करता दिखाई और सुनाई दे रहा हूं।

मैने किया ही क्या था..!!

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मेरे वरिष्ठ अधिकारी ने उस दिन मुझसे कहा था “अंगद तुम ऑफिस के सभी इलेक्ट्रॉनिक  सामान खरीदी की जिम्मेदारी लो तुम बहुत ईमानदार हो सबको तुम पर यकीन है ।  लो इस नंबर पर बात कर लेना ये उस इलेक्ट्रॉनिक सामान की शॉप का नंबर है।”

मैने अधीनस्थ कर्मचारी के बतौर उनकी आज्ञा पालन करते हुए उस नंबर पर कॉल किया और शॉपकीपर से समान खरीद फरोख्त के संबंध में डिटेल चर्चा करके डील पक्की करवा दी थी।

मुझे इस बात का अंदेशा भी नहीं था कि वरिष्ठ अधिकारी का मुझे विश्वास के साथ यह खरीदी सौंपना मेरे ही ऑफिस के ईर्ष्यालु लोलुप कर्मचारियों को बुरी तरह खल जाएगा और मुझे फंसाने का कुचक्र बनने लगेगा।

दो दिनों के बाद ही क्राइम ब्रांच पुलिस आई और मुझे ऑफिस से ही गिरफ्तार कर जेल ले गई।मेरे विरुद्ध जालसाजी और  रुपयों के लेन देन की साजिश करने के गंभीर आरोप लगाए भी गए और प्रमाणित भी कर दिए गए।

वीडियो क्लिप्स दिखाई गईं जिनमें मैने खुद अपने आप को मोलभाव करते देखा भी और सुना भी।

मै हतप्रभ सा अपने आपको सार्वजनिक रूप से जलील होते हुए देखता रहा।कोशिश की थी कुछ बोलने की पर कोई नहीं था सुनने वाला यकीन करने वाला।मेरी आवाज गले में ही घुट कर रह गई सत्य को साबित भी करना पड़ता है ये मै भूल गया था।असहाय बेबस मै खुद को जेल की चहारदीवारी के अंदर उस ठंडे फर्श पर कैदियों के साथ बैठा देखता रहा।

मेरे वकील मित्र ने सूचना मिलते ही मेरी जमानत की व्यवस्था की और अपना पक्ष रखने के लिए एक हफ्ते की मोहलत मांगते हुए मुझे रिहा करवा कर अपने घर ले आया था क्योंकि मेरे खुद के घरवाले मेरी शक्ल नहीं देखना चाहते थे!!

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कैसी जमानत और किससे रिहाई!! एक जेल से छूट कर अब मैं इस जलालत की जेल में आजीवन बंदी महसूस कर रहा हूं । इससे कैसे रिहा हो पाऊंगा मैं।

अपने जीवन की सांझ को काले घटाघोप बादलों में घिर कर रात होते हुए देख रहा था मैं।मन विचलित और निराश था।व्यवस्था के प्रति आक्रोश और बेबसी दिल के भीतर तूफान पैदा कर रही थी।खुद को निर्दोष साबित ना कर पाने की अनकही व्यथा क्षोभ और निराशा में तब्दील होकर गलत मार्ग अपनाने को बाध्य कर रही थी।

इसीलिए आज मित्र को बिना बताए  चुपचाप घर से भाग कर मैं प्रकृति की शरण में आ गया था।कहते हैं प्रकृति हर समस्या का समाधान कर देती है हर भूले को रास्ता दिखाती है और दुख को तिरोहित करने में सक्षम होती है।लेकिन शायद आज प्रकृति भी मेरे विपरीत थी।मेरे पहुंचते ही सूरज अस्ताचल की ओर प्रस्थान करने लगा था मानो वह भी मुझ पर अविश्वास कर साथ खड़ा होने से   इनकार कर रहा हो!!

अब मैं अंधेरा होने की प्रतीक्षा में था जीने की चाह खत्म हो गई थी ।क्या मुंह लेकर जियूँ … आत्मा विद्रोह कर रही थी।

जब से मैं इस नदी के किनारे आया था लगभग तभी से दो छोटे छोटे  बालक वहीं बैठकर रेत के छोटे छोटे घर बना रहे थे और खूब खुश हो रहे थे। उनकी आह्लादित आवाजें आज मुझमें चिड़चिड़ाहट पैदा कर रहीं थीं ।मैं चाहता था ये दोनों अतिशीघ्र यहां से जाएं और मुझे अकेला छोड़ दें।

मेरे अंदर की नकारात्मकता मुझ पर हावी हो रही थी।सारी दुनिया मुझे खुदगर्ज प्रतीत हो रही थी। घरवालों की उपेक्षा मुझे भीतर से तोड़ रही थी।

जाकी रही भावना जैसी – पूनम अरोड़ा

भैया…. सूरज डूबने वाला है थोड़ी देर में अंधेरा हो जाएगा कुछ दिखाई नहीं देगा। अभी देखो मेरा मकान कितना ज्यादा बचा है बनाने के लिए तभी छोटे वाले भाई की तेज मासूम आवाज मेरे कानो में पड़ी।

क्यों बना रहे हो ।अभी कोई भी आकर इसे तोड़ देगा। जाओ सूरज डूब ही गया मैंने मन की भड़ास गुस्से से उन पर निकाली।

मेरी तेज आवाज और अंधेरे की आशंका  से छोटा बालक सहम गया और जोर जोर से रोने लगा।भैया अंधेरा हो गया सूरज डूब गया।

उसे रोता देख मेरे भीतर भी कुछ घुमड़ने लगा था।मेरी आंखों में भी आंसुओं की बाढ़ उफन आई थी।

कोई बात नहीं छोटे अंधेरे से डरता क्यों है।सूरज कल फिर निकलेगा।अभी तो उसके डूबने का ही समय था।चल हम कल सुबह सूरज निकलने के साथ ही आ जाएंगे और तेरा घर और बड़ा सा बना लेंगे… बड़े भाई ने बहुत ममत्व से छोटे के गले में हाथ डाल कर कहा तो छोटे का रोना रुक गया और आँखें नए उत्साह से चमक उठीं.. सच्ची भैया!!उसने भाई की तरफ देख कर आश्वस्त होना चाहा था।

एकदम सच्ची मेरे भाई कल इससे भी सुंदर घर बना लेंगे ..अब चल।

छोटा एकदम खुश और उत्साहित हो गया था।हां भैया हम लोग कल बहुत बहुत सुबह  सूरज निकलने के साथ ही आ जाएंगे …. उसकी चहकती आवाजें धीरे धीरे दूर होती जा रही थीं लेकिन जैसे मेरे भीतर भी आशा और उत्साह भरती जा रही थी।

चिड़िया उड़ जायेगी  – डा.मधु आंधीवाल

सही कह रहा था वह।अभी सूरज के डूबने का समय है इसलिए उसे डूबना ही पड़ेगा तभी तो कल फिर निकलेगा…

मेरा भी अभी डूबने का समय था। मेरे जीवन में भी घोर अंधेरा आ गया था।लेकिन अब मुझे कोशिश करनी है ।लड़ाई करनी है इस अंधेरे को भगाने की और सूरज को उगाने की।

अबे अंगद तू यहां क्या कर रहा है देख भाई मरने का इरादा तो नहीं कर रहा है..!!कब से तुझे ढूंढ कर खुशखबरी देना चाह रहा था तभी वकील मित्र की तेज आवाज से मै चौंक गया।उसके स्वर में मेरे लिए  ढेर सारी चिंता और  ख्याल था।

खुशखबरी कौन सी है भाई वो भी मेरे लिए मैं जानने को आतुर हो उठा।

हां भाई तेरे ही लिए है। जानता है तेरे विरुद्ध सबसे पुख्ता सबूत उनकी वह वीडियो क्लिप का भंडाफोड़ हो गया है।वह फर्जी है।

उन्होंने तेरे फोन कॉल का तोड़मरोड़ कर वीडियो बनाया है।मैं इसे साबित कर दूंगा उन्होंने तेरी और शॉपकीपर के बीच हुई बातचीत को तोड़मरोड़ कर उपयोग किया है मित्र कह रहा था।

क्या कह रहा है मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है ऐसा भी हो सकता है क्या मैं चकित था।

भाई जिसने ये सारी तोड़मरोड़ की है उस मास्टरमाइंड का पता चल गया है ।उसने ही मुझे ये राज बताया है मित्र ने विस्फोट किया।

कहीं वह झूठ तो नहीं बना रहा है मेरे दिल का अविश्वास और डर  इतनी जल्दी अपने निर्दोष साबित किए जाने की कल्पना के आड़े आ रहा था।

हाय मैं शर्म से लाल हुई – नीलिमा सिंघल

नहीं भाई तेरे ऑफिस वालों ने वीडियो बनवाने के बाद उससे पल्ला झाड़ कर अलग कर दिया।जितनी रकम देने की बात तय हुई थी उसकी आधी भी नहीं दी… मित्र खुल कर हंस रहा था।

इसीलिए उसने मुझसे मुंहमांगी रकम लेकर सच जाहिर कर दिया अब समझे तुम… !!और अब मैं उल्टे तेरे ऑफिस वालो के विरुद्ध सबूतों को तोड़मरोड़ कर पेश करने और साजिश करने का आरोप सिद्ध करूंगा देखना मानहानि का केस करके तुझे इतना रुपया दिलवाऊंगा कि तू अपना खुद का एक ऑफिस खोल लेगा और तेरे घरवाले भी दौड़कर तेरे पास आ जाएंगे मित्र मुझे देख कर मुस्कुरा रहा था।

सच में सूरज डूबने का समय बीतने वाला है।कल नई सुबह नई आशा के साथ सूरज फिर निकल आएगा मेरे भीतर अवसाद निराशा और दुख का अंधेरा छंटने लगा था।

 

ढलती सांझ#

लतिका श्रीवास्तव

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