उस रात योगेश अपने डेरे में बेचैनी से चहलकदमी कर रहा था। रह-रहकर घड़ी में समय भी देख रहा था। उसके चेहरे पर क्रोध की लकीरें भी उभर आई थी।
रात के दस बजे चुके थे, किन्तु उसकी पत्नी रागिनी ड्यूटी पर से डेरा लौट कर नहीं आई थी, जबकि उसने कहा था कि वह आठ बजे तक अवश्य लौट आएगी।
देखते-देखते ग्यारह बजे गए। वह गुस्से में उबल रहा था। रागिनी से उसकी शादी हुए साल भर ही हुई थी।
उसने मोबाइल से फोन किया परन्तु उधर से कोई उत्तर नहीं मिला। तब वह बिस्तर पर लेट गया लेकिन उसकी आंँखों की नींद उसको चकमा देकर गायब हो गई। वह उठकर पुनः डेरा के ओसारे में विचरण करने लगा।
रागिनी प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका थी। वहाँ कई तरह के कार्यक्रम समय-समय पर होते रहते थे। वह स्मार्ट और सर्वगुण संपन्न टीचर थी, इसलिए उस विद्यालय के प्राचार्य उसको हमेशा ऐसे प्रोग्रामों का प्रभार प्रायः सौंपते रहते थे। परिणाम यह हुआ कि कभी वह गेम, कभी प्रदर्शनी, कभी संगीत, कभी नाटक, कभी-कभार पैरेंट्स डे.. आदि की जिम्मेवारी निभाने के कारण अक्सर वह देर से डेरा पहुंँचती थी।
योगेश हमेशा अपनी पत्नी को डांँटता यह कहते हुए कि वह स्कूल की टीचर है या गुलाम।
रात में बारह बजे एक कार आई उसके डेरे के समीप।
वह हड़बड़ा कर दरवाजा खोलने के लिए चल पड़ा। सीढ़ी से नीचे उतरते वक्त खिड़की से उसने देखा कि उसकी पत्नी कार से उतरी, फिर कार में बैठे किसी आदमी के पुकारने पर वह कार के पास गई तो उसको उसने तह किया हुआ(मोड़ा हुआ) एक कागज उसके हाथ में दिया। उसने फुर्ती से उस कागज को मुस्कुराते हुए अपने हाथ में ले लिया और चल पड़ी दरवाजे की ओर।
कार भी चली गई।
दरवाजा खोलने के बाद योगेश ने रागिनी को खा जाने वाली निगाहों से देखा।
उसके सहकर्मी द्वारा दिए गए उस कागज के पेज ने आग में घी डालने का काम किया। उसके दिल में शक की सूई चुभने लगी। उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंँच गया।
जब डेरा के अन्दर रागिनी पहुंँच गई तो उसने कड़कती आवाज में कहा, ” अब समझ में आया कि विद्यालय से आने में देर क्यों होती है?.. प्रोग्राम के बहाने कोई दूसरा खेल चल रहा है.. रंगरेलियांँ मनाने का कार्यक्रम चल रहा है.. मुझे बेवकूफ़ बनाकर गुलछर्रे उड़ा रही हो, अपना उल्लू सीधा कर रही हो..”
” चुप!.. अपना बकवास बन्द कीजिए!.. बेकार, निठल्ले आदमी के दिमाग में ऊलजलूल बातें शीघ्र ही पनपने लगती है.. स्कूल में नौकरी करती हूँ तो अपने स्टाफ के साथ स्कूल की गतिविधियों में बिना भेद-भाव के सहयोग करना मेरा फर्ज है,
वह स्टाफ चाहे मेल हो या फिमेल हो.. आपके दिमाग में गंदगी भरी हुई है.. आपको ऐसा लगता है तो नौकरी क्यों नहीं करते हैं?.. निकम्मा बनकर क्यों बैठे हैं।.. मैं इस्तीफा दे देती हूँ, आप ही घर चलाइए.. “
” बातें मत बनाओ!.. मैं बच्चा नहीं हूँ जो मुझे पाठ पढ़ा रही हो.. लगता है जैसे मैंने कुछ देखा ही नहीं है.. तुमको तुम्हारे स्टाफ ने अपने पास बुलाकर क्या दिया?.. “
” लो देखो दोनो आंँखें खोलकर कि यह प्रेम-पत्र है, मोहब्बत का पैगाम है या क्या है?.. पागल आदमी!.. ” तैश में कहती हुई उसने अपने हाथ में दाबे हुए मुड़े कागज को उसके चेहरे पर फेंक दिया।
उसने खोलकर देखा तो पता चला कि उस कागज में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के खर्चों का हिसाब था जो ड्रामेटिक क्लब के निर्देशक ने प्राचार्य को देने के लिए दिया था।
क्षण-भर बाद ही उसका गुस्सा काफूर हो गया था।
“अब तो कलेजा ठंडा हो गया!”
” मुझे गलतफहमी हो गई थी रागिनी!.. साॅरी!
” आपको तो कदम-कदम पर गलतफहमी ही होती रहती है। “
स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
मुकुन्द लाल
हजारीबाग(झारखंड)
31-01-2025
मुहावरा प्रतियोगिता
मुहावरा :- # आग में घी डालना