दिसंबर का महीना अपनी अलसाई आँखें जल्दी खोलना नहीं चाहता था, ऐसे में भला सूरजदेव भी नहीं दिखते थे , और दिखते भी तो किसी बुजुर्ग स्वभाव वाले मानव की तरह ठंडे, जिसे समय ने विनम्रता का चोला पहना दिया हो ।
खैर , मुझे तो उठना ही पड़ेगा ,सोचते हुए शुक्ला जी उठ बैठे ।
उन्हें लगा काश! फिर पुराने दिन लौट आते , वे ऑफिस जाते और ममता जी उन्हें विदा करतीं । फिर झटके से याद आया , अभी थोड़े दिनों पहले उन्हें लगता था , अब बहुत हुआ रिटायर होकर आराम करूंगा ,सच में इंसान कभी खुश नहीं रहता , बातों बातों में याद आया , चाय का बर्तन धोना होगा ,तभी तो चाय पीऊंगा , हां ,ममता मुझे चाय बनाते देख खुश हो जाएगी ,हमेशा कहती रहती है, थोड़ा काम किया करो ।
चाय पीकर उन्होंने ग्रील बंद करते हुए झांककर देखा,ममता जी गहरी नींद सो रही थीं। सुबह के पांच बजे टहलते हुए दूध लाने चले गए।
जब ममता जी की नींद टूटी तो बड़ी ग्लानि हुई ,आज मैं छह बजे तक सोती रही ओह !
दरअसल शुक्ला जी तीन महीने पहले रिटायर हुए थे, बेटा मुंबई में रहता था , इंजीनियर था , उसकी पत्नी स्वाति बेहद सुलझी हुई इंटीरियर डेकोरेटर थी , छोटी सी नैंसी उनकी बेटी है । एक बेटी मुक्ता और,दामाद राकेश विदेश में हैं , दो तीन साल में कभी आते हैं । यहां दोनों ही रहते हैं।वो सोचती हैं, जल्दी से नाश्ता बना दूं , घुटने का दर्द ठंड में और परेशान करता है। वो आते ही होंगे ।
शुक्ला जी अखबार और दूध रखते हुए बोले ,ममता जरा एक गिलास गर्म पानी पिलाना , हां लाती हूँ । ममता जी जब पानी लेकर आई ,तो शुक्ला जी ने पास बिठाया ,और बोले आज मंगलवार है , तुम आज ऑटो से काली मंदिर चली जाओ ,और हां पास ही बैंक से चेक बुक ले लेना , आज मैं कहीं नहीं जाऊंगा।
थोड़ा आराम करूंगा।आप क्या बोल रहे हैं? मैं अकेली कैसे जा सकती हूँ, उन्हें कुछ समझ नहीं आया , आज ऐसे क्यों बोल रहे हैं? शुक्ला जी ने कहा देखो ,बैंक में जाओगी तो सब समझ आ जाएगा,
ममता जी सोचने लगी, ये तो अक्सर मुझे चिढ़ाते थे ,तुम्हें बैंक का काम नहीं आता ,फिर आज क्यों सिखाना चाह रहे ? अच्छा ठीक है, बोलकर उन्होंने मैथी पराठा और अचार नाश्ता दिया , फिर वो मंदिर और बैंक के लिए निकल पड़ी ।
इस घटना को दो साल हो गए , एक रात अचानक शुक्ला जी के सीने में दर्द हुआ ,पड़ोसियों से मदद लेकर ममता जी अस्पताल गई , किंतु वे इस नश्वर संसार को अलविदा कह गए । दोनों बच्चे आए ,ममता जी तो बिल्कुल खामोश हो गई, अचानक ऐसा होगा ,कभी सोचा नहीं था, सभी ने ढ़ाढस बंधाया ।
एक दिन मुक्ता पापा को याद करते हुए रोने लगी , वो कमरे में पापा के सामान रख रही थी ,जिससे उसकी मां सामानों को देखकर रोए नहीं ।
उसे पापा की डायरी मिली ,जिसमें उन्होंने लिखा था, आज मैने तुम्हें मंदिर और बैंक भेजा है ,जबकि तुम्हारे पैरों में दर्द है , मुझे माफ करना ममता , मैं तुम्हे ऑनलाइन सारे कम सिखा दूंगा , जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है, तुम मेरे बाद परेशान मत होना ,।हां धीरे धीरे सब संभालना आ जाएगा ,
मुझे पता है तुम भी जानबूझकर मुझे खाना निकालना , चाय बनाना , छोटे छोटे कम सीखाती हो , मैं जनता हूँ ममता , ईश्वर न करे यदि तुम पहले चली गई तो मैं भी तेरी यादों के सहारे बच खुचे दिन निकल लूंगा । बच्चों को मत परेशान करना । मुक्ता ने रोते हुए पापा की डायरी मां को थमा दी।
आज ममता जी समझ पाई ,क्यों मुझे वो ओला बोल करना , खाना ऑर्डर करना सब सिखाते रहते थे, उनके जाने से ज्यादा उनके बाद मेरी चिंता थी , कहती हुई ममता जी सुबक पड़ी । मुक्ता और आरव उसका भाई भी रोने लगा ।
स्वाति ने सभी को देखा और मुस्कराते हुए बोली मम्मी जी चाय पी लीजिए , आज हम सभी साथ में नाश्ता करेंगे ,और हां सभी को ऐसे पापा मिलें जो सबका ख्याल रखने वाले हों ।
आप चिंता न करें मम्मी आप दोनों का रिश्ता अटूट है, पापा और आप एक दूजे के लिए हैं, वो कहीं नहीं गए , आसपास हैं ।
सिम्मी नाथ , राँची,स्वरचित, अप्रकाशित
मेरा परिचय
सिम्मी नाथ
शिक्षिका , कवियत्री,लेखिका