घर की इज्जत – अमिता कुचया : Moral Stories in Hindi

सुबह- सुबह सुनैना के मोबाइल पर फोन बजता है तो उसके पति गौरव फोन उठाते है तब बुआ जी की बहू स्नेहा भाभी कहती – भैया आपके छोटे भैया की शादी पक्की हो गयी है,अगले महीने तीन तारीख की शादी है मामी जी ने बताया ही होगा।और हम ये जानते हैं ।

अब आपका कोई बहाना नहीं चलेगा, पहले ही रिजरवेशन करवा लो, और ये नहीं सुनेगें की छुट्टी नहीं मिली या टिकट कंफर्म नहीं हुआ है,देखो देवर जी आना ही है, भैया जी की सगाई में तो आप लोग आ नही पाए पर शादी में पूरे एक सप्ताह की छुट्टी लेकर आना , और जाने की जल्दी मत करना। हम लोग सभी रस्मों में बहुत मजे करेंगे। 

इतने में सुनैना आ जाती है, तब वह बोलती है कि अरे गौरव किसका काल है? फिर वो कहता- स्नेहा भाभी का फोन है, वो शादी में आने की बात कर रही है,लो सुनैना तुम भी बात कर लो। 

तब सुनैना कहती- भाभी बधाई हो…हमारा भी पद बढ़ रहा है,हम भी देवरानी से जेठानी बन जाएगें। पहले मेरी आप जेठानी है और मैं आपकी देवरानी, अब मैं भी जेठानी बन जाऊंगी। तो खूब रौब जमाऊंगी

तब स्नेहा भाभी बोली- बिलकुल…तुम भी रौब जमाना आखिर पद जो बढ़ रहा है,अपनी देवरानी पर…फिर सुनैना बोली- रौब कैसा भाभी..बस आपसी प्यार बना रहे इससे ज्यादा हमें क्या चाहिए।

तब स्नेहा कहती सही कह रही हो और हाँ सुनो देवरानी जी रौब जमाना है तो पहले अपने फर्ज भी पूरे करने होंगे, तब सुनैना चहकते हुए बोली- हां हां भाभी हम अपने फर्ज निभाने जरूर आएगें। ये भी कोई बोलने की बात है…. 

इस तरह शादी का दिन नजदीक आ गया। उसने बडे़ मन से तैयारी की। 

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बहुत दिनों में बुआ जी के यहाँ शादी में सुनैना को जाना था ,तो सुनैना ने सोचा पूरे एक सप्ताह रहना पडे़गा।आखिर बुआजी के बेटे की शादी जो है,वह सोची मम्मी जी के साथ ससुराल में उनके साथ रहनाा है ,रह लूंगी उनकी बातें सुननी पड़े तो क्या हो जाएगा ,थोड़ी बहुत एडजस्ट करना पड़ा तो उनकी बात मान लेंगे, वह शादी के दो दिन पहले पहुँच जाती है। 

  मम्मी जी अपने पोते और बेटे को देखकर बहुत खुश होती है।

अगले दिन मेंहदी होती है,,बुआ जी फोन करके कहती- आज मेंहदी की रस्म है, सबको जल्दी आना है देखो तुम्हें और स्नेहा को पूरी तैयारी करनी है दोपहर में ही डेकोरेशन का काम देखना है तो जल्दी आ जाना। तब वह कहती- ठीक है बुआ जी हम जल्दी पहुँच जाएंगे। 

और अगले दिन सुनैना मेंहदी की रस्म में पहुंचने के लिए दोपहर में ही तैयार हो गयी, तब उसकी सासु मां सविता जी ने टोकते हुए कहा- अरे सुनैना तुम्हें बड़ी जल्दी है, मेंहदी रस्म में जाने की?? तब वह बोली मुझे स्नेहा भाभी ने जल्दी आने को कहा है इसलिए ही…. 

सुनैना को बिट्टू छोड़ आता है…

बिट्टू लौटता है तभी वो भी कहती है हमें भी छोड़ आ…

इस तरह सविता जी बिलकुल समय पर साढ़े पांच पहुंचती है। तब उन्हें उनकी अहमियत कम लगती है जैसे सुनैना को जल्दी बुला लिया उन्हें न बोला हो। 

सुनैना के बेटे की तबियत थोड़ी खराब थी वह दादी के पास सो गया था। बिट्टू ने कहा था। मम्मी रिंकू अभी सो रहा है, जब आप लोग आना तो ले आना। तब तक और सो लेगा। थकान के कारण थोड़ी सुस्त है, तब वह कुछ नहीं कहती है। 

जब वहाँ पहुंचती थी। तब उसकी ननद बोली भाभी आप जल्दी क्यों नहीं आई, बहू को भेज दिया, तब वह कहती-” अरे रिंकू थका हुआ लग रहा था, थोड़ी तबियत ठीक नहीं थी तो हम लोग घर पर रुक गये। और क्या… 

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थोड़ी देर बाद सुनैना से बुआ ने बोला तुमने बताया नहीं रिंकू बेटे की तबियत ठीक नहीं है नहीं तो हम बोलते नहीं… 

तब अपनी सासु माँ के पास जाकर बोली रिंकू की तबियत इतनी भी खराब नहीं है मैं यहाँ न आऊं आपने जो बोला रिंकू की वजह लेट आए, वो तो मुझे जल्दी आने को कहा था इसलिए बोली थी। उनकी बातें उनकी ननद सुन लेती है। 

तब अकेले में उसकी ननद बोलती है -भाभी पटरी सही बैठ रही है या नहीं!!तब वह अचंभित होकर देखने लगी और बोली- क्या हुआ दीदी जो ऐसा कह रही हो,तब वह बोली तुम्हारी सुनैना और हमारी स्नेहा की बहुत पटती है ना…

.इसलिए पूछा तब वह बोली क्या करु दीदी बेटा तो अपना ही है अब वो और बहू कुछ दिन के लिए आए हैं तो लगता है कि घर में रौनक बनी रहे बस बेटा और पोते रिंकू को देखकर हम चुप रह जाते हैं। आपके यहाँ की शादी है तो उसे तब तक ही रुकना है । 

 वो प्रति दिन कोई न बात गांठ बांध लेती। और छोटी- छोटी बातों को बड़ी करके सविता जी बताने लगती लेकिन सुनैना कभी कोई बात को तूल नहीं देना चाहती। 

अगले दिन संगीत होता है। तो वह सविता जी अपनी ननद को बताती है, हमारा बिट्टू एकदम बदल गया है वो अब तो हमारी बिलकुल सुनता ही नहीं है

 ये सब सुनैना का किया धरा है, वो तो सुनैना को कार में लेकर बाजार गया जब वो लौटा तो मैंने कहा बुआ के यहाँ छोड़ दे। तब वो कहता मम्मी अभी थक गया हूँ। मैं ठहरी मां….मैनें सोचा चाय बना कर दे दूं। फिर मैंने उसे और सुनैना दोनों को चाय बना कर दे दी। सुनैना से इतना नहीं हुआ मम्मी हम चाय बना दे रहे हैं .. खैर छोड़ो….. 

जब बिट्टू चाय पीकर फ्री हुआ तो मैनें कहा बिट्टू अब तो बुआ के यहाँ ले चल…बुआ क्या सोचेगी भाभी अभी तक नहीं आई। देख मैं कब से तैयार हूं। अच्छा मम्मी चलते हैं, जैसे अहसान कर रहा हो। 

ये हाल है हमारे बिट्टू के…. 

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तभी ननद की बहू स्नेहा उनकी बात सुन लेती है तब सुनैना को बताती है कि क्या हम बहूओं की जिम्मेदारी ही होती है कि घर की इज्जत बनी रहे। देखो ना मामी भी तो अपने घर की एक -एक बात मम्मी को बताती है, क्या ये सही है…सुनैना भी कहती है -हमें एक दूसरे से बात करते हुए सुन कर कहती है तुम्हें घर की इज्जत की परवाह नहीं है। हम बहूएं कितना भी कुछ भी कर ले तो भी हमारी कमी ही दिखती है,, 

खैर छोडो़ हमें यहाँ कितने दिन रहना…. 

जब वह संगीत में डांस कर रही होती तो तभी सविता जी आओ सुनैना हाथ खींचकर ले जाती है, चलो मै मौसी सास की बेटी से मिलाती हूं, वो अभी अभी आई है। तब वह हाथ छुड़ा कर कहती है- मम्मी जी बाद में मिल लूंगी। इतना सुनकर सविता जी को गुस्सा आता है एक तो रिंकू को हम ही संभाले और ये महारानी आराम से फ्री होकर नाचे और हमारे बोलने का असर भी नहीं… 

सब जब सविता जी कहते- आ आओ आप थोड़ा डांस करो हमारे साथ …तब वो तुनकते हुए कहती- हमारी बहू तो डांस कर ले तब तो हम आए, हम रिंकू को संभाल रहे हैं। 

थोड़ी देर में स्नेहा हाथ पकड़ कर मामी को कहने लगती –चलिए ना मामी…तब वह हां हां आ रहे हैं जैसे उठती है तो उनका लाडला रिंकू चार साल का दादी से चिपका था ,जो उनके उठने से गिर जाता है। वह रोने लगता है, तब सबका ध्यान चला जाता है। तब वह कहती – सुनैना को ही रिंकू की फिक्र नही है तो उसे नाचने से फुर्सत मिल जाए तब तो संभाले रिंकू को…… 

इस तरह व्यंग्य भरी बातों से सुनैना का दिल दुखता है, अगर रिंकू को उनके पास छोडूं तो भी परेशानी …. अगर उनके पास ना छोड़ू तो भी…दादी दादी करके उनके पास है तो परेशानी…. 

अब सुनैना रिंकू को संभालने लगती है…रिंकू को बहलाकर उसके साथ डांस करती है। 

इतना देख सविता जी सबसे कहती है। देखो तो हमारी बहू को नाचने का इतना मन है कि रिंकू से भी उछल कूद करा रही है। 

उनसे नहीं देखा जाता ,और वह सुनैना को सबके सामने डांटते हुए कहती है -क्यों सुनैना तुम्हें रिंकू की परवाह है कि नहीं देखो वो इतना सुस्त है तुम्हें डांस की पड़ी है,तब वह भी कह देती है मम्मी जी गोद में बैठे लिए रहने से क्या होगा। वो मेरा बेटा है मैं जानती हूँ कैसे खुश करना है ,वह डीजे डांस करेगा तो खुश होगा। 

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अब तो इस बात का सविता जी को और भी बुरा लगा तुम्हें तो घर की इज्जत नही है, अपनी सास से कोई ऐसे बोलता है तब वह भी कहती मम्मी जी आप कुछ न ही कहो तो अच्छा है …हमें सब पता ही है घर की एक -एक बात को बुआ जी को बताती हो तब स्नेहा आ जाती है। वह सुनैना को कहती चुप हो जाओ सब लोग यही देख रहे हैं। 

मैं सब समझती हूं ,पर मम्मी जी कब समझेंगी हम बहू ही अकेले घर की इज्जत के बारे में सोचे,,ऐसा ही नहीं होता वो तो बात को खत्म करती ही नहीं वो यहां बुआ जी के पास ले आती है। जबकि बुआ जी इतनी सुलझी हुई कोई बात घर की बातें कभी बढ़ा कर नहीं बताती। क्योंकि उनकी आदत नहीं है। और मेरी मम्मी है कि उन्हें बिना बताये खाना ही नहीं पचता। 

तब सविता जी को लगता उन्हीं की वजह से बात बढी है। फिर वो बात संभालते हुए मेरी ननदरानी मेरी अपनी है, क्या हुआ मन की भभक निकाल देती हूं। जो सही है वही तो बोलती हू। देखो मम्मी जी बुआ के यहां दूसरी बहू आने वाली है,

अपने घर की छवि ऐसी देखेगी तो क्या प्रभाव पडेगा ! कल के दिन वो भी अपने घर की बात वह अपने मायके वालो को बताए तो ये सही है उसके लिए भी उसके मायके वाले उसके अपने है। स्नेहा सब समझती है पर अब और नहीं मम्मी जी

घर की इज्जत का ख्याल रखो। वो सुनेगी तो क्या अच्छा लगेगा। तब उन्हें भी महसूस होता है हर छोटी – छोटी बात अपनी ननद को बताती है वो गलत ही है। सही कह रही हो सुनैना…… इस तरह बात यही खत्म होती है और दोनों सास बहू बुआ के यहां की शादी आनंद लेते हैं। कब सात दिन निकलते हैं कि पता ही नहीं चलता सविता जी छोटी छोटी बातों को नजरअंदाज करके खुश रहती है। और सुनैना भी खुश रहकर शादी की हर रस्मों को मजे करके चली जाती है। 

दोस्तों- हर सास बहू के नजरिये से सोचे तो कभी बात न बिगड़े,और हमेशा ननद को हर बात बताना सही नहीं है। क्योंकि घर में ननद हो तो बात अलग है। अगर ननद बहूओं वाली हो तो हर बात नहीं बता सकते हैं। ये बात सास बहू दोनों ध्यान रखे तो कभी कड़वाहट हो ही नहीं सकती और घर की इज्जत बनी रहती है। 

स्वरचित मौलिक रचना

अमिता कुचया

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