*नीरवता* – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

    रात्रि की नीरवता में अचानक मोबाइल की घंटी बजना यकायक मन मे एक घबराहट पैदा कर देती है।मन मे शंका पैदा हो जाती है कि कोई बुरा समाचार तो नही सुनना पड़ेगा।ऐसे ही  देर रात में अंशुल के फोन पर घण्टी बजी तो उसने हड़बड़ाकर मोबाइल उठा लिया।

उधर से मिश्रा जी बोल रहे थे।मिश्रा जी अंशुल के फ्लैट के ठीक सामने वाले फ्लैट में ही रहते थे।घबराई आवाज में मिश्रा जी बोल रहे थे अंशुल जी मेरी पत्नी की तबियत अचानक काफी खराब हो गयी है, उसको तुरंत हॉस्पिटल ले जाना होगा,मैं अकेला मैनेज नही कर पाऊंगा,क्या आप मेरे साथ होस्पिटल चल सकते हैं, मैंने आपको इतनी रात डिस्टर्ब कर दिया मैं क्षमा चाहता हूँ।

         कैसी बात कर रहे हैं मिश्रा जी, आप मेरी पत्नी की सहायता से भाभी जी को बेसमेंट में लेकर आइये, मैं कार की चाबी लेकर वही पहुंच रहा हूँ।

       मिश्रा जी केंद्र सरकार की सेवा में अधिकारी थे,जबकि अंशुल एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करता था।अभी छः माह पूर्व ही मिश्रा जी इस सोसायटी में रहने आये थे।अब यह उनका स्वभाव था या अपनी पोस्ट का अहंकार,वह किसी से भी घुलमिल नही पा रहे थे।

अंशुल तो उनके फ्लोर पर ही रहता था,वो तो एक दिन लिफ्ट में दोनो मिल गये तब अंशुल ने ही परिचय कर लिया,अन्यथा मिश्रा जी ने अपनी ओर से कोई पहल नही की।हाँ मिश्रा जी की पत्नी सुमन अवश्य एक दो बार अंशुल की पत्नी नीलम के पास फ्लैट में मिलने आयी।पर वे भी मात्र सोसाइटी से सम्बंधित जानकारी प्राप्त करने के लिये ही आयी थी।शायद तभी नीलम द्वारा मोबाईल नंबर शेयर कर लिये गये होंगे।

     उस दिन रात्रि में सुमन जी की तबियत अचानक बिगड़ गयी तब असहाय अवस्था मे मिश्रा जी ने अंशुल को फोन किया था।अंशुल और उसकी पत्नी नीलम दोनो ही अपनी कार से मिश्रा जी के साथ उनकी पत्नी सुमन को अपोलो होस्पिटल लेकर गये।मिश्रा जी काफी परेशान थे,अंशुल मिश्रा जी को ढाढस भी बंधा रहे थे और होस्पिटल की औपचारिकताएं भी पूरी कर रहे थे।

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        डॉक्टर्स ने सुमन जी को चेक किया और बताया कि उनका ब्लड प्रेशर काफी बढ़ गया था।एक दो रोज होस्पिटल में रुकने की सलाह डॉक्टर ने दी ताकि सुमन जी नार्मल हो जाये और अन्य टेस्ट भी हो जाये।उन दो दिनों में अंशुल और उसकी पत्नी नीलम ने सब कुछ संभाल लिया था।वैसे अगले दिन सुबह उनके अन्य रिश्तेदार होस्पिटल आ गये थे।सब अपनी अपनी तरह से मिश्रा जी को सांत्वना दे रहे थे।शाम तक उनका बेटा अंबर जो बंगलोर में पढ़ रहा था,वह भी आ गया।

        दो दिन में ही सुमन जी स्वस्थ हो अपने फ्लैट पर वापस गयी।सुमन जी तो शारीरिक रूप से स्वस्थ हो गयी परंतु असल स्वस्थता तो मिश्रा जी को प्राप्त हुई।वे बिल्कुल बदल गये थे।हॉस्पिटल से वापस आने की अगली सुबह को अंशुल के दरवाजे की घण्टी बजी तो सामने  मिश्रा जी को खड़े पाया।

आश्चर्य से भरे अंशुल ने उनका स्वागत किया और अंदर ड्राइंग रूम में ले आया।असल मे मिश्रा जी के स्वभाव में इस तरह की बेतकल्लुफी थी नही।स्वयं कह कर चाय पी और अंशुल का हाथ अपने हाथ में ले उसे दबा कर चले गये।

      अब मिश्रा जी काफी सॉफ्ट हो गये थे,अंशुल की पत्नी भी अब कभी भी सुमन जी हाल पूछने चली जाती।ऐसे ही जब नीलम सुमन जी के फ्लैट पर गयी,तो देखा कि उनका बेटा वापस जाने को तत्पर है।तो नीलम मैं बाद में आऊंगी कहकर वापस चली आयी,पर उसके कानों में आवाज पड़ी-मिश्रा जी अपने बेटे से कह रहे थे,

बेटा हर दुख तकलीफ में रिश्तेदार तो बहुत बाद में आते है,पर पड़ौसी तो तुरंत उपलब्ध रहता है,बस यह निर्भर इस पर करता है कि तुमने अपने पड़ौसी से कैसे संबंध बना कर रखे है।बेटा हर जगह अंशुल जैसे पड़ौसी नही मिलते जो हमारे द्वारा संबंध न रखे जाने पर भी हमारे कष्ट के समय मे हर सहायता को तत्पर हो।

       नीलम बस हल्के से मुस्करा कर अपने फ्लैट में वापस आ गयी।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित।

*#पड़ोसियों और रिश्तेदारों में यही तो अंतर होता है, बेटा* वाक्य पर आधारित कहानी

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