नया स्वेटर – कविता झा ‘अविका’ : Moral Stories in Hindi

अंबिका हैरत भरी नज़र से दरवाजा खोलते ही अपने पति शशांक को देखती है… जो दिसंबर की इस कड़कड़ाती ठंड में बिना स्वेटर  के ऑफिस से घर आ रहे थे।

सुबह तो नया स्वेटर… जो अंबिका ने बड़े प्यार से उसके लिए बनाया था… पहनकर गए थे।

“तुम्हारे हाथों में जादू है अंबिका। बहुत ही प्यारा और गर्म है यह स्वेटर। इसका रंग डिजाइन सब बहुत ही बढ़िया है। आज तो सब तुम्हारे हुनर की प्रशंसा करते ना थकेंगे।”

“हर फंदे में प्यार बुना है। बड़े  ही मन से बनाया है यह स्वेटर।बहुत दिनों से मन था आपके लिए स्वेटर बुनने का। मम्मी हमेशा पापा के लिए बुना करती थीं। उन्हीं से सीखा था।”

“सच मैं बहुत किस्मत वाला हूं जो मुझे तुम जैसी प्यार करने वाली और इतनी हुनरमंद पत्नी मिली।”

सुबह के ये शब्द उसके जेहन में हलबली मचाने लगे।

मतलब वो सब झूठ बोल रहे थे… वो सब कुछ उन्होंने जो भी कहा था झूठ कहा था…

जरूर स्वेटर बैग में रख लिया होगा। हाथ का बना स्वेटर पहनकर गए तो दोस्तों ने मज़ाक उड़ाया होगा।

“अरे! अब तुम इस तरह दरवाजे पर ही खड़ी रहोगी या मुझे अंदर भी आने दोगी। ठंड लग रही है।”

अंबिका दरवाजे के किनारे होते हुए बोली…

“वही तो मैं देख रही हूं कि आपका स्वेटर कहां गया जो आप सुबह पहनकर गए थे। पसंद नहीं आया था तो पहले ही बता देते और अपना कोई जैकेट या रेडीमेड स्वेटर ही पहनकर चले जाते। इस तरह पूरे दिन ठंड में तो ना बिताते।”

अंबिका ने शशांक के हाथ से उसका बैग लिया और उसने मन में सोच लिया था कि उस स्वेटर को आज ही उधेड़ देगी और फिर कभी भी शशांक के लिए नहीं बुनेगी… वो कभी ऊन सिलाई को हाथ ही नहीं लगाएगी। कितना समय और मेहनत लगती है बुनाई में यह क्या जानें। अब तो बस सब ब्रांडिड स्वेटर जैकेट ही पहनना पसंद करते हैं।

“क्या सोच रही हो जल्दी से अदरक वाली गरम चाय बना दो।” सोफे पर बैठते हुए शंशाक बोला तो अंबिका ने बेमने ढंग से कहा…

“जी अभी लाई… “

अंबिका उसका बैग हाथ में लिए रसोई घर में चली गई।

बैग तो भारी नहीं लग रहा… हो सकता है टिफिन बॉक्स छोड़ आए हों और स्वेटर इसमें रखा हो। 

चाय का पानी चढ़ाकर वो बैग खोल स्वेटर ढूंढने लगी जो उसमें था ही नहीं। टिफिन बॉक्स को निकाल कर सिंक में रख दिया।

शशांक पानी लेने रसोई घर में आ गया।

“अंबिका आज पानी के लिए भी नहीं पूछा। क्या बात है नाराज़ हो क्या मुझसे? और ये मेरे बैग की तलाशी किस खुशी में ले रही हो।”

शशांक ने चुहलबाज़ी करते हुए कहा।

“सच सच बताईए… वो स्वेटर कहां छुपाया आपने? घर से तो पहनकर ही गए थे और मेरी झूठी तारीफ भी कर रहे थे।”

“अच्छा! वो स्वेटर… मैं बताना भूल गया… 

सच अंबिका तुम खुद अपनी आंखों से देखती ना उस अम्मा जी के आंखों की चमक और वो मुस्काता चेहरा जब मैंने ठंड से कांपती उस अम्मा जी को अपना वो स्वेटर दिया।”

“किसको दे आए? हे भगवान! मेरे दानवीर पतिदेव। खुद कांपते हुए आ रहे हैं और अपना स्वेटर दान कर आए।”

“मेरा क्या है… जवान खून है… और घर पर तो इतने सारे गर्म कपड़े हैं ही… पर उन गरीब अम्मा जी के पास तो एक भी गरम कपड़ा नहीं था। उन्होंने  एक पुरानी मैली सी साड़ी पहनी  हुई थी जो जगह जगह फटी हुई थी वो उसी से अपना तन ढक कर ठंड से बचने की कोशिश कर रही थीं। उनके लिए यह ठंड कहर समान है। मैं जब रोड क्रॉस कर रहा था तब उन्होंने बड़ी दया से मेरी तरफ देखा था। उनके बच्चों ने उन्हें घर से बेघर कर दिया। कैसी संतान होगी यह सोचकर मुझे गुस्सा आ रहा था और उस अम्मा पर दया आ रही थी। मेरा तो मन कर रहा था मैं उन्हें अपने साथ लेते आऊं।”

अंबिका की आंखों से आंसू झलक गए। सच उसके पति का बड़ा दिल देखकर उसे अपनी छोटी सोच पर शर्म आ रही थी।

“मैंने कुछ गलत किया क्या? सॉरी अंबिका जानता हूं तुमने बहुत ही प्यार से मेरे लिए वो स्वेटर बुना था। मुझे इस तरह नहीं देना चाहिए था। तुम्हें तकलीफ देना मेरा मकसद नहीं था। उस समय मुझे जो उचित लगा मैंने वही किया।”

अंबिका उसके सीने से लग गई। 

“माफी मत मांगिए आपने जो किया वो सही किया। हम कल ही फुटपाथ किनारे बैठे गरीब लोगों को गरम कपड़े और कंबल बांटेंगे। उन अम्मा जी से भी मिलेंगे अगर वो हमारे साथ हमारे घर में रहना चाहेंगी तो उन्हें हम ले आएंगे नहीं तो किसी एन जी ओ संस्था से बात करेंगे।”

अगले दिन अंबिका शशांक के साथ उसी फुटपाथ पर गरीब लोगों को कंबल और ऊनी कपड़े बांट रही थी। जैसे ही उस अम्मा जी को देखा जिन्होंने वही स्वेटर पहना हुआ था जो अंबिका ने शशांक के लिए बुना था… शशांक के साथ उनके पास गई। शशांक को देखकर अम्मा जी ने ढेरों आशीर्वाद दिए।

“मां जी आप हमारे साथ हमारे घर चलिए।”

पहले तो उन्होंने मना किया फिर जब दोनों ने बहुत आग्रह किया और कहा हमारे बच्चे जो नानी दादी के प्यार से वंचित हैं उन्हें आप अपना प्यार नहीं देंगी क्या?

“आज के युग में अपनी संतान के लिए ही मां बाप बोझ बन जाते हैं ऐसे में तुम लोग जैसे बड़े दिलवाले आज भी मौजूद हैं यह देखकर बहुत खुशी हुई बेटा।”

घर आकर शशांक ने अंबिका की तरफ मनुहार करते हुए कहा…

“मेरे लिए नया स्वेटर बुनोगी ना… “

अंबिका ने हां में गर्दन हिलाई और अम्मा जी की गोद में सिर रख दिया। आज उसे बहुत सुकून मिल रहा था।

कविता झा ‘अविका’ 

रांची, झारखंड 

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#बड़े दिलवाला

(यह कहानी अप्रकाशित, मौलिक और स्वरचित है जो बेटियां मंच के साप्ताहिक विषय पर आधारित है)

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