वक़्त पर अपने ही काम आते हैं पड़ोसी नहीं – डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा  : Moral Stories in Hindi

प्राइवेट नौकरी में सब कुछ है पैसा है, रुतबा है, शोहरत है। अगर नहीं है तो बस समय और सुकून नहीं है। आदमी अपने ही घर में पड़ोसी सा हो जाता है। लेकिन किया भी क्या जा सकता है जिंदगी जीने के लिए घर की चौखट लांघ कर परदेसी बनना ही पड़ता है। आज के समय में लगभग सभी की एक ही गाथा है। 

फिर भी मुकेश ने इस बार सोच लिया था कि जो भी हो छोटे भाई के बेटे के जन्मदिन पर वह घर अवश्य ही जायेंगे। उन्होंने बॉस के सामने एकबारगी तबियत खराब का बहाना बनाकर छुट्टी ले ली और घर के लिए चल पड़े। बस से उतर कर पहले बाजार गये । बच्चे के लिए ढेर सारे खिलौने ,चाकलेट  मिठाइयाँ और कपड़े लेकर तब फिर घर गये ।

मन में उनके बच्चों की तरह खुशियां हिलोरें ले रही थी कि उन्हें इतने सारे गिफ्ट के साथ देख कर मुन्ना कितना खुश होगा। दौड़ कर उनके  गले से लिपट जाएगा । 

घर पहुंचे तो पूरा घर पड़ोसियों और उनके बच्चों से भरा हुआ था। वे थोड़ी देर के लिए झेप गये कि मैं अपने ही घर में सबसे पीछे हूँ। माँ-पिताजी दौड़े बाहर आये और उनसे खैरियत पूछी । पर भाई और उसकी पत्नी बर्थडे की तैयारी में जुटे हुए थे सो किसी ने उनके आने पर कोई खास खुशी नहीं दिखाई। 

खैर, उन्होंने अपने साथ लाये सभी सामानों को माँ के हाथों अंदर भिजवा दिया और बाहर ही बैठ गये। तभी वहां बगल वाले पड़ोसी शर्मा जी अपनी पत्नी के साथ आये।  हैरानी तो तब हुई जब तीन साल का उनका भतीजा उन पड़ोसियों को देखते ही दौड़ कर आया और उनके गले लगकर बड़े पापा बड़ी मम्मी करने लगा।

बात तो छोटी थी पर इस घटना ने उनको अंदर तक झकझोर दिया। उन्होंने अपने आप को संभालते हुए कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। हालांकि माँ -पिताजी उनके भाव को समझ गए थे उन्होंने दिलासे के लिए समझाना शुरू किया कि ,”बेटा तुम कम ही आते हो ना यहां, लेकिन ये लोग हमेशा आते हैं और बच्चे को प्यार दुलार करते हैं। 

बुरा तो उन्हें लगा ही था कि अपने घर कम आने का क्या मतलब पड़ोसी रिश्तेदार हो जाएगा और रिश्तेदार पड़ोसी ! बहुत ही भारी मन से वे यह सोचते वापस आए कि नौकरी ने घर के साथ-साथ रिश्ते भी छीन लिए। 

एक दिन सुबह- सुबह ऑफिस के लिए तैयार हो रहे थे तभी भाई का फोन आया कि बिट्टू गिर गया है उसके सिर से काफी खून निकल गया है। उसे लेकर हमलोग हॉस्पिटल जा रहे हैं। इतना सुनते ही वे जिस कपड़े में थे बस स्टैंड की ओर दौड़ पड़े ।वहां पहुंचने पर अफरा-तफरी मचा हुआ था। सब लोग जुटे हुए थे  पर कोई खून देने के लिए तैयार नहीं हो रहा था सभी पड़ोसी एक- एक कर गायब होने लगे। भाई देखते ही लिपट कर रोने लगा। उसे ढाढस बांधते हुए उन्होंने अपने खून की जांच करने के लिए डॉक्टर से कहा। संयोग से खून मैच हो गया। वे डॉक्टर के पीछे जाने लगे तभी पीछे से माँ की आवाज आई जो भाई को कह रही थी कि- “बेटा वक्त पड़ने पर अपने ही रिश्तेदार काम आते हैं पड़ोसी नहीं!”

डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा 

मुजफ्फरपुर,बिहार

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