अच्छा, गोलू की 15 दिन की छुट्टी हो गई? वाह! यह तो अच्छा हुआ, तो फिर तू आ जा ना यहां! सुमन जी ने फोन पर अपनी बेटी कंचन से कहा
कंचन: क्या मां आप भी.? आपका बस चले तो मैं वही रहूं, पर भाभी? उनसे भी तो पूछ लो? वह क्या सोचेगी जब देखो तब चली आती है मेरा काम बढ़ाने?
सुमन जी: अरे तेरी भाभी का बहुत बड़ा दिल है, वह तो पराए के लिए भी ऐसा नहीं सोचती, तू तो फिर भी अपनी है। अरे वह यही है मेरे बगल में, यकीन ना हो तो पूछ ले, यह कहकर सुमन जी फोन अपनी बहू प्रगति को पकड़ा देती है।
प्रगति: हां कंचन आपने ऐसे कैसे सोच लिया? आपके आने से मुझे कोई दिक्कत होगी? यह आपका भी घर है जब मन करे, चली आना। उसके बाद दिन ही कंचन और गोलू, सुमन जी के पास आ जाते हैं।
कंचन: वाह मां? मायके में आकर एक अलग ही चैन मिलता है अब मैं यहां अच्छे से सोंऊगी
सुमन जी: हां हां सो लेना। पहले बता आज खाने में क्या खायेगी? कंचन: मां! मुझे तो बहुत कुछ खाना है, पालक पनीर, चना मसाला, पुरी, पुलाव और रायता भी। पर इतना खाना अगर भाभी को बनाने को बोलेगी, तो वह मुझे कल ही यहां से जाने को बोल देगी
सुमन जी: पगली कहीं की! तू कौन सा रोज़ आती है और रोज़ फरमाइशे करती है? वैसे भी तेरी भाभी तो लाखों में एक है, मैं तो धन्य हो गई ऐसी बहू पाकर, यह सब सुमन जी काफी ऊंची आवाज़ में बोल रही थी, जिससे प्रगति को भी सब कुछ साफ-साफ सुनाई दे रहा था, फिर सुमन जी प्रगति को आवाज़ लगाती है, प्रगति आते ही कहती है, मम्मी जी, कंचन, मैंने सब सुन लिया है, सब बन जाएगा।
सुमन जी: देखा कंचन! मैं ना कहती थी, मेरी बहू लाखों में एक है, अरे इसके आगे मेरे सारे गहने भी न्योछावर कर दूं ना, तो मुझे कोई मलाल नहीं होगा, क्योंकि यही मेरे लिए सबसे कीमती चीज़ है और भगवान का दिया हुआ अनमोल गहना है, जिसके आगे लाखों के गहने भी फीके पड़ जाए।।
प्रगति हंसती हुई वहां से चली जाती है और मन ही मन यह सोचकर बड़ी खुश होती है, कि सुमन जी उसे कितना मानती है। पर जैसे ही प्रगति रसोई में जाती है, कंचन फुसफुसाकर अपनी मां से कहती है, मां! आज तक तो आपने कभी मुझे इतना प्यार नहीं किया? ऊपर से अपने सारे गहने तक भाभी पर न्योछावर कर दिया? ऐसी सास पहली बार देखा जो बेटी से बहू को ज्यादा प्यार करती है, आपका दिल तो भाभी से भी बड़ा है।
सुमन जी: अरे पगली, तू हमेशा पगली की पगली ही रहेगी। तेरे बस की बात नहीं मेरे बातों को समझना। हमें अगर किसी इंसान से कोई काम निकलवाना होता है तो प्यार से ही यह मुमकिन है,
कंचन: मां! मैं आपका मतलब नहीं समझी
सुमन जी: मतलब, के वही घर के सारे काम करती है, ऐसे में मैं पूरा दिन अगर चिड़ चिड़ करूंगी, वह सही नहीं किया, यह ऐसा करो, वह ऐसा करो, तो वह भी चिढ़ जाएगी, बदले में वह बस मुझसे बहस करेगी, उसका तो कोई नुकसान नहीं होगा, पर वह मेरा ध्यान नहीं रखेगी और मेरी हर बात को मना करेगी।
पर जो मैं उसकी तारीफ करती जाऊं, तो वह और अच्छा व्यवहार करने की कोशिश में लगी रहेगी और यह सब तो उसकी प्रशंसा करने का ही तरीका है, क्योंकि एक औरत को सबसे ज्यादा लगाव अपने गहने से होता है, इसलिए वह बात मैंने कहीं और कौन सा मेरे कहने से मैंने उस पर अपने गहने न्योछावर कर दिए? पर उसका असर यह हुआ कि तुझे अभी इतने पकवान खाने को मिलेंगे
कंचन: अरे वाह मम्मी! यह तो कमाल की तरकीब है, अच्छा हुआ मेरी सास यह तरकीब नहीं जानती, वरना भाभी की तरह मैं भी बेवकूफ बन जाती। यह कहकर दोनों हंसने लगी। इधर प्रगति कंचन को यह पूछने आ रही थी कि रायता किसका बनांऊ? पर यहां आते हुए उसने जो सुना, उससे सारा रायता ही फैल गया।
यूं तो प्रगति को किसी चीज़ की कोई लालच नहीं थी, सुमन जी जो उसकी तारीफ करती थी, वह तो उसे सच मानती थी, पर आज उसे पता चला की उसे तो बस इस्तेमाल किया जा रहा था और वह इसे ऐसे ही छोड़ना भी नहीं चाहती थी, उसने सुमन जी को सबक सिखाने की ठानी, अगले दिन प्रगति सुमन जी से कहती है, मम्मी जी! अगले हफ्ते मुझे अपने एक सहेली की शादी में जाना है,
सुमन जी: हां तो जाओ ना! मैं तुम्हें कभी कुछ के लिए रोका है क्या?
प्रगति: नहीं, आप तो मेरी प्यारी मम्मी जी है! मुझे तो आज तक कभी लगा ही नहीं कि मैं अपने ससुराल में हूं! वह क्या है ना मम्मी जी? मेरी सहेली ना काफी अमीर है, तो मुझे भी वैसे ही तैयार होकर जाने का मन है। ताकि उसे ना लगे मैं किसी ऐसे वैसे घर में ब्याही हूं और इसके लिए मुझे आपके गहने चहिए, आपको तो पता ही है मेरे पास जो गहने हैं वह हल्के से हैं, पर आपके तो राजघराने वाले लगते हैं, तो मुझे आप अपने गहने देंगी ना?
सुमन जी तो अब काटो तो खून नहीं ऐसा अवाक उसे देखने लगी, फिर वह हकलाकर कहती है, अरे बहु! आजकल का जमाना बड़ा खराब है, ऐसे भारी-भारी गहने पहनकर कौन घर से निकलता है? कुछ उल्टा सीधा हो गया तो? मुझे गहनों की नहीं पड़ी है, पर तेरी परवाह है, तू अपने वाले ही पहन कर जा, वैसे भी यह गहने भी तो तेरे ही है, सही सलामत रहेंगे तो तेरे ही काम आएंगे।
प्रगति: अरे नहीं नहीं मम्मी जी! हम यहां से कार में जाएंगे और सीधा शादी वाले रिजॉर्ट पर उतरेंगे, वहां पर सारे बड़े-बड़े लोग ही होंगे तो सभी के पास ऐसे ही गहने होंगे, कुछ नहीं होगा। आप बस निकाल कर रखना, मैं आकर देख लूंगी कौन सा पहनना है? यह कहकर वह चली गई,
उसके जाते ही कंचन हंसकर कहती है और बोलो मीठे बोल और करो गहने न्योछावर, देखना जो गहने एक बार वह पहन लेगी ना, उसे कभी वापस नहीं करेगी, क्योंकि उसे पता है आप तो उसे बहुत प्यार करती हैं, मां! कभी-कभी हमारा खेल हम पर ही भारी पड़ जाता है, अब क्या करेंगी आप?
सुमन जी अगले ही दिन अपने सारे गहने उठाकर सोनार को दे आती है और उससे कहती है, मैं दो हफ्तों बाद इसे ले जाऊंगी, फिर वह घर जाकर प्रगति को यह बात कहने ही वाली थी कि, तभी प्रगति सुमन जी से कहती है, क्या हुआ मम्मी जी गहनो को पॉलिश करवाने देना पड़ा ना?
प्रगति के इस बात से सुमन जी सकपका जाती है और सोचती है कि इसे यह बात कैसे पता? पर फिर भी बात को संभालने के लिए वह कहती है, हां वह मैंने सोचा कि तुझे देने से पहले एक बार गहनों को पोलिश करवा दूं, ताकि वह नए जैसे लगे, पर जब निकाला तो देखा कि काफी सारे गहनों को मरम्मत की भी ज़रूरत है, इसलिए सोनार ने भी दो हफ्तों का वक्त ले लिया।
प्रगति हंसते हुए कहती है, मम्मी जी! मरम्मत की ज़रूरत गहनों को नहीं आपको है, हमें अक्सर यह लगता है हमारा झूठ कभी सामने आएगा ही नहीं। पर झूठ अपना मुखौटा ज्यादा दिनों तक नहीं रख पाता। गहनो को सोनार ने नहीं आपने दो हफ्तों का समय दिया है,
मुझे पता था आप गहने का यही बहाना देगी, बस मैं तो आपको परखना चाह रही थी, कि क्या सच में आपका प्यार दिखावा है? क्योंकि मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि इतने दिनों से आप मुझे बेवकूफ बना रही थी, मम्मी जी! सेवा और देखभाल तो अब भी मैं आपकी वैसी ही करूंगी, क्योंकि मेरे विचार आपसे अलग है और वह यह है की बुराई को अच्छाई से ही मिटाया जा सकता है, शायद इसी तरह मैं एक दिन आपको भी बदल पाऊं!!
धन्यवाद
रोनिता कुंडु
#बड़ा दिल