पड़ोसियों और परिवार में यही तो अंतर होता है बेटा – अमित रत्ता : Moral Stories in Hindi

पूरा दिन तुम्हारी बीबी गाय भैंस गोबर घास के काम मे लगी रहती है एक मिनट कभी उसे आराम करते नही देखा। और छोटी वाली बस चार रोटियां बना दी या थोड़ी बहुत साफ सफाई कर दी भला ये भी कोई काम हुआ। कहना तो नही चाहती मगर तुम्हारी बीबी को नौकर बनाकर रखा है।

सुना है सामने वाला खेत तुम्हारे भाई ने मकान बनाने के लिए अपने नाम करवा लिया? आजकल भाई ही भाई का दुश्मन है इतना भी नही सोचा की कल को तुम्हारे बच्चे होंगे तो बो कहाँ जाएंगे। कम से कम मां बाप ही आधा आधा बांटकर देते।

तुम्हारे मां बाप भी तो छोटे बेटे का ही साथ देते हैं कम से कम बच्चों में ऐसा भेदभाव नही करना चाहिए आखिर है तो दोनों एक ही पेट से निकले हुए अब बताओ तुम्हारी शादी में एक अंगूठी डाली थी और अब छोटे की बहू के लिए इतना गहना क्या हुआ अगर तुम्हारी बीबी अनाथ है तो क्या ऐसा करना चाहिए?

बस ऐसी ही बातें कर करके पड़ोसियों ने मनमीत के दिल मे इतना जहर भर दिया कि उसे अपने ही मां बाप भाई सब दुश्मन नजर आने लगे। आखिर बही हुआ जिसका डर था उसने अपनी बीबी को बोला कि कोई जरूरत नही है नौकरों की तरह काम करने की हम एक किलो दूध गांव से ले लेंगे मगर अब ये गाय भैंस का काम नही होगा।

पिता ने पूछा तो उल्टा उसे भी चार बातें सुना दी कि मैं तुम्हारा बेटा थोड़ी हूँ छोटा ही तुम्हारा बेटा है उसी को सबकुछ दो। अब बात छोटे की आई तो उसकी बीबी भी बीच मे आ गई लड़ाई इतनी बड़ी की घर के बंटवारे तक आ गई। घर बंट गया दोनो भाई अलग अलग खाने बनाने लगे मां बाप अपना अलग बनाए लगे।

गाय भैस सब बिक गया अब न तो कोई खेतों में काम करता न गाय भैंस का हर चीज खरीदकर आनी शुरू हो गई। था तो बहुत मुश्किल मगर जैसे कैसे घर चल रहा था। 

कुछ दिन बाद बड़ी बहू के उम्मीद से होने की खवर आई मगर बच्चा उल्टा होने की बजह से डॉक्टरों ने बड़ा ऑपरेशन होना बताया। समय गुजरा तो जैसा डॉक्टरों ने बोला था उसको हॉस्पिटल ले गए बड़ा ऑपरेशन से लड़की पैदा हुई। अब बो चाहता था किसी से खुशी बांटे मगर बांटे किसके साथ बीबी तो अनाथ थी मायके की तरफ कोई था

नही नानी ने पाला था बो भी गुजर चुकी थीं। हॉस्पिटल में समय समय पर नर्स आती मगर बाकी का समय बीबी बच्चे का ख्याल कौन रखे? फैक्ट्री न जाए तो नौकरी से निकलने का खतरा अलग से।

अब बो फंस चुका था उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि करे तो क्या करे। उसने गांव के कई लोगो को फ़ोन किया कि आठ दस दिन हॉस्पिटल मे आकर कटवा दे मगर सबने कोई न कोई मजबुरी बताकर पल्ला झाड़ लिया।

जैसे कैसे रात गुजरी सुबह सात बजे ही दरवाजे पे दस्तक हुई उसने दरवाजा खोला तो देखा मां पिताजी छोटा भाई और उसकी बीबी ढेर सारे खिलोने लेकर खड़े हैं उन्हें देखकर वो मां के गले लगकर रोने लगा और अपनी गलती पे शर्मिंदगी जाहिर करते हुए बोला कि मैं गांव वालों की बातों में आकर न जाने क्या क्या बोल गया

आज जब मुझे जरूरत थी तो सबने साफ मना कर दिया। जब उसके पिता ने उसके कंधे पे हाथ रखते हुए बोला कि अगर तेरे दिल में कोई बात थी तो बैठकर बात करता अगर तेरी बीबी को गाय भैंस से परेशानी थी तो हम खुद ही बेच देते। अगर तुम्हें जगह चाहिए थी मकान के लिए तो सामने दूसरा खेत खाली था उसमें बना लेता।

रही बात शादी में गहने की तो तेरी शादी के बक्त जो हमारे हालात थे तुमसे छुपे तो नही थे अब ये छोटा खुद कमाने लगा तो इसने कुछ कर्ज लेकर गहने बनाए हैं हमने तो नही दिए न और हम कहाँ से देंगे हम कौन से नौकरी करते हैं।

अगर तुम बैठकर बात करते तो ये नौबत यहां तक आती ही नही हर चीज का हल निकल सकता है अगर ठंडे दिमाग से सोचो तो।

मगर जो भी हुआ बो एक आम बात है आखिर हो तो तुम अपने खून भला हम तुम्हे इस हालत में अकेले कैसे छोड़ सकते थे। यही तो फर्क है पड़ोसियों और परिवार में कि पड़ोसी सिर्फ अपने मतलब के लिए तुम्हारे साथ खड़े होंगे और घरवाले हर हाल में। 

उसके बाद छोटे की बहू और मां बहीं हॉस्पिटल में तबतक रहीं जबतक बो डिस्चार्ज होकर घर नही आ गई । घर आने के बाद भी तीन महीने तक उसे खाना पानी सब बिस्तर में दिया जाता रहा और उसकी बच्ची तो मानो गोदी से नीचे उतरती ही नही थी कभी चाचा की गोद मे कभी दादा कभी दादी तो कभी चाची की गोद मे।

                          अमित रत्ता

               अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश

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