देखो रामू अब तुम बुढियापे भी गये हो और सटिया भी गये हो अब तुमसे कोई काम ढंग से नही होता है।अच्छा है अब तुम घर बैठो।
छोटे बाबू सारी उम्र तो आप लोगो के साये में गुजार दी,अब कहाँ ठौर है?अब जितनी जिंदगी पड़ी है,यही गुजार दूंगा, बाबू।कोशिश करूंगा अब काम ठीक ढंग से हो।
क्या ठौर ठौर की बात कर रहे हो,अब तो तुम्हारा बेटा भी तो शहर में नौकरी करने लगा है,जाओ रहो उसी के पास।
वो तो ठीक है छोटे बाबू, पर इस घर मे आपके पिता का वास है,वो ही मुझे इस घर मे लाये थे,अब वो बीमार हैं,उनको मेरी जरूरत है छोटे बाबू। उनका प्यार उनके अहसान तो दिल मे है,इन्हें बिसार कर बताओ बाबू कैसे जाऊं?
देखो रामू तुम वर्षो से यहाँ नौकरी कर रहे हो,इसी कारण लिहाज में पहले तुम्हे कुछ नही कहा था,अब तुम बिल्कुल भी हमारे काम के नही रह गये हो,इसलिये अब आगे हम तुम्हे नही रख सकते,अब बस कल ही विदा लो और हमारा पीछा छोड़ो।
सेठ धनीराम अपनी शादी सरोज के साथ होने के बाद ही रामू को घर के काम काज को ले आये थे,रामू अनाथ था,फुटपाथ पर सोता और लोगो की बूट पोलिश करके पेट भरता।खुद्दारी इतनी कि कभी किसी से भीख नही मांगी।एक बार धनीराम जी ने रामू से जूते पोलिश कराये,उस 13-14 वर्ष के लड़के से बात करते समय पता चला कि वह अनाथ है तो बाद में वे उसे 100 रुपये देने लगे पर रामू ने लेने से इनकार कर दिया और बूट पोलिश के 10 रुपये ही स्वीकार किये।
उसकी खुद्दारी से प्रभावित हो धनीराम जी रामू को घर ले आये।रामू ने धनीराम जी के घर को एक प्रकार से पूरी तरह संभाल लिया।धनीराम जी ने प्रयास किया कि रामू भी कुछ पढ़ लिख ले,पर रामू सब कर सकता था,बस पढ़ना लिखना उसके बूते से बाहर की बात थी।धनीराम जी के जोर देने पर वह बस क ख ही सीख पाया।काम चलाऊ अक्षर ज्ञान जरूर उसे हो गया था।
असल मे रामू को घर के और उससे सम्बंधित बाहर के कार्यो में ही रुचि थी।धनीराम जी को रामू से विशेष स्नेह हो गया था।निश्चल रामू खूब मेहनती था थी वह धनीराम जी को अपना पितातुल्य ही मानता था।समय चक्र घूमता गया,धनीराम जी ने रामू की शादी करा दी,और ऊपर छत पर बना एक कमरा भी रामू को दे दिया।
रामू और उसकी पत्नी केतकी दोनो ही अब धनीराम जी की सेवा में रहने लगे।एक वर्ष बाद ही रामू को पुत्र प्राप्ति हो गयी।रामू और केतकी ने अपने बेटे का नाम रखने को धनीराम जी से ही आग्रह किया।अपनेपन के इस आग्रह से धनीराम जी अभिभूत हो गये उन्होंने रामू के बेटे को नाम दिया चिराग।साथ ही कह दिया रामू चिराग मेरे बेटे के साथ ही पढ़ेगा, उसकी पढाई लिखाई की सब जिम्मेदारी हमारी रहेगी।
धनीराम जी का बेटा समीर और रामू का बेटा चिराग दोनो ही एक ही स्कूल में पढ़ने लगे।समीर को यह नागवार गुजरता था कि उसके पिता उसको नौकर के बेटे के समकक्ष रखते हैं।पर पिता के सामने बोलने की हिम्मत समीर नही कर पाता था,पर वह मन ही मन कुढ़ता रहता।
चिराग पढ़ाई लिखाई में अच्छा निकला, वह जानता भी था कि यदि पढ़ेगा नही तो पिता की तरह कहीं नौकरी या छोटा मोटा काम करता फिरेगा,यही कारण रहा चिराग प्रथम श्रेणी में अपनी शिक्षा प्राप्त करने में सफल रहा।इतना ही नही उसकी नौकरी भी पास के शहर में ही एक बड़ी कम्पनी में लग गयी।नौकरी के बाद उसने अपने माता पिता को अपने साथ ले जाने का प्रयास किया तो रामू ने साफ मना कर दिया कि वह बड़े बाबू को छोड़ कर नही जायेगा, अभी वह बीमार हैं, ऐसे में मैं यहां से चला जाऊं,ऐसा हो ही नही सकता।
धनीराम जी को लकवा मार गया था।वे बोलते भी कम थे और चुपचाप पड़े रहते।रामू ही उनकी पूरी तरह देख भाल करता।ऐसा लगता था कि धनीराम जी केवल रामू को ही पहचानते हैं।
वे समीर को देख कर भी भाव शून्य ही रहते।समीर ने ही धनीराम जी का कारोबार संभाल लिया था।अब समीर का व्यवहार रामू के प्रति बदल गया था।बात बात में वह रामू को अपमानित करता रहता,रामू चुपचाप समीर द्वारा किये जाने वाले अपमान को सहता रहता।पर उस दिन तो हद ही हो गयी जब समीर ने रामू को अगले ही दिन घर छोड़कर जाने की चेतावनी दे दी।
मन मार कर रामू ने भीगी आंखों के साथ घर छोड़ दिया।अपने बेटे चिराग के पास आकर भी रामू को सेठ जी की याद आती रहती।उसे लगता था जब सेठ जी बीमार हैं तो मुझे उनके पास होना चाहिये था,पर समीर ने तो उसे घर से ही निकाल दिया तो क्या करता?मन मसोस कर रामू कुछ न कर सकने की मजबूरी से उदासीन हो बैठा रहता।
एक दिन सुबह सुबह दरवाजे पर हुई दस्तक से उसकी आंखें खुली तो पाया दरवाजे पर समीर खड़ा है।आश्चर्य से भरे रामू के मुँह से निकल पड़ा छोटे बाबू आप?आओ न अंदर आओ।समीर का हाथ पकड़ कर रामू उसे अंदर ले आया।समीर के चेहरे की रंगत को देख रामू बोला छोटे बाबू बताओ ना बड़े बाबू जी कैसे हैं,ठीक हैं ना?
समीर आगे बढ़कर रामू के दोनो हाथों को अपने हाथों में लेकर बोला रामू काका आपके घर छोड़ने के बाद पापा बिल्कुल निढाल हो गये हैं, लगता है उनके प्राण बस किसी की प्रतिक्षा में अटके पड़े हैं।मैं जानता हूँ काका उन्हें बस तुम्हारी इंतजार है।मैंने आपके साथ बहुत बुरा सलूक किया है,मेरा व्यवहार माफी योग्य भी नही है।पर पिता के कष्ट को देखा नही जाता।आपका दिल बड़ा है,आपने ही मुझे भी तो पाला है।चलो काका चलो अपने बड़े बाबूजी को संभाल लो।
बड़े बाबूजी की हालत अच्छी नही है,बस रामू इतना ही समझ पाया और सुन पाया,एकदम खड़े होकर बोला रामू छोटे बाबू मुझे बड़े बाबूजी के पास ले चलो छोटे बाबू उनके बिना तो हम अनाथ हैं।समीर रामू के बड्डपन और अपने छोटे पन को तौल रहा था।पर रामू के अपनेपन और बड़े पन ने उसका सब अहंकार चूर चूर कर दिया था।
अपनी कार में समीर रामू काका को घर ले आया।रामू काका एकदम बड़े बाबू जी के कमरे की ओर दौड़ लिया।कमरे में घुसते हुए रामू को देख धनीराम जी के चेहरे पर मुस्कान दौड़ गयी।रामू बड़े बाबू के पैर पकड़ कर फफक फफक कर रो पड़ा,बड़े बाबू माफ कर दो बड़े बाबू माफ कर दो अब कभी आपको छोड़कर नही जाऊँगा।रोते रोते रामू धनीराम जी के चरणों को आंसुओ से धो रहा था ,उधर धनीराम जी तो स्वर्ग यात्रा को प्रस्थान भी कर गये थे।उनकी प्रतिक्षा जो समाप्त हो गयी थी।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवं अप्रकाशित