अपमान बना वरदान – श्वेता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

ट्रेन पटरियों पर दौड़ी जा रही थी और उसके साथ ही सपना अतीत की यादों में खोती जा रही थी । आज से 10 साल पहले का समय, गर्ल्स कॉलेज का एनुअल फंक्शन और उस फंक्शन में अपनी कविता पाठ से चार चांद लगाती सपना जोशी ‘बी.ए. हिंदी ऑनर्स फाइनल ईयर” की छात्रा।पूरे कॉलेज में ‘लेडी कुमार विश्वास’ के नाम से फेमस सपना जब अपनी भावपूर्ण आवाज में स्वरचित कविताओं का पाठ करती तो सुनने वाले भाव-विभोर हो जाते |आज भी जब उसने स्टेज से अपनी कविता ‘घरौंदा’ प्रस्तुत की-

“घरौंदा में बनाऊॅंगी,

सपनों से सजाऊॅंगी,

प्यार से महकाऊँगी,

यही सोच तिनका तिनका,

जोड़ लाई चिड़िया रानी।

अपने आशियाने का जुगाड़

खोज लाई चिड़िया रानी।

दिनभर के अनवरत श्रम के

उपरांत विश्राम का उपाय

ढूॅंढ लाई चिड़िया रानी।

हम मानवों के लिए जीवन

का सार लाई है चिड़िया रानी।

जब मिलता है सच्चा सुकून

अपनों के बीच……………

प्यारे से घरौंदे में ही आकर

तो हम मानव ,

क्यों व्यर्थ भाग रहे हैं?

क्यों रातों को जाग रहे हैं?

क्यों अपनों से दूर भाग रहे हैं?।।”

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तो पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूॅंज उठा |इतना भाव और सार था उस कविता में कि हॉल में मौजूद हर व्यक्ति खुद तो उससे जुड़ा हुआ महसूस कर रहा था | इस अहसास से फंक्शन में मौजूद चीफ गेस्ट मिस्टर शर्मा और मिसेज शर्मा भी अछूते नहीं थे | सपना की कविता,उसकी सादगी, उसके कविता पढ़ने के अंदाज के वे दोनों कायल हो गए और उन्होंने सपना को अपने घर की बहू बनाने का निश्चय कर लिया और इस प्रकार सपना उनके बेटे डॉक्टर अर्थ से ब्याह कर सपना जोशी से सपना शर्मा बन अपने ससुराल आ गई |

सपना को ससुराल में सभी बहुत चाहते थे | ननद राशि और देवर मुकुंद तो उसके आसपास ही मंडराते रहते थे | लेकिन ना जाने क्यों,अर्थ उससे खींचा -खींचा सा रहता था | उसे अपने साथ बाहर ले जाने या दोस्तों से मिलवाने से कतराता था | कहीं ना कहीं उसके मन में यह बात बैठी हुई थी कि “सपना उसके स्टैंडर्ड कि नहीं है | कहाँ वह डॉक्टर और कहाँ हिंदी ग्रेजुएट सपना|”

एक दिन अर्थ के कुछ फ्रेंड्स उसे घर पर बधाई देने आये| जब सपना ने उनका स्वागत करते हुए बधाई का कारण जानना चाहा तो पता चला कि एक बहुत ही कॉम्प्लिकेटेड ब्रेन सर्जरी को अर्थ ने बहुत ही कुशलता से ऑपरेट किया है चारों और उसी के चर्चे हो रहे हैं | जब सपना ने इस बारे में अनभिज्ञता जाहिर की तो एक फ्रेंड ने अर्थ को छेड़ते हुए कहा “क्या यार इतनी खास बात तुमने भाभी को नहीं बताई?”

अर्थ तुरंत बोल पड़ा “क्या बताता? इसे क्या समझ इन बातों की | हाॅं, यदि हिंदी कविता या कहानी की कोई बात होती तो जरूर बताता | क्यों सपना? सही बोल रहा हूॅं ना|” बदले में सपना अपमान का घूंट पीकर मुस्कुराकर रह गई |

ऐसे ही एक बार हॉस्पिटल में फंक्शन था | तब भी अर्थ ने सपना को साथ चलने से मना कर दिया था | “क्या करोगी वहाॅं जाकर? वहां सब इंग्लिश में बातें करेंगे| रहने दो, जब कोई बढ़िया हिंदी मूवी लगेगी| तब चलेंगे, अभी रहने दो|”

आए दिन अर्थ के इस प्रकार के व्यवहार से,अपने अपमान से सपना अंदर ही अंदर टूट रही थी | हमेशा हॅंसती-खिलखिलाती सपना अब गुमसुम रहने लगी थी | वह अपना कॉन्फिडेंस पूरी तरीके से खोती जा रही थी | उसे इसप्रकार हताश और उदास देखकर मिस्टर और मिसेज़ शर्मा को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था।

एकदिन मिस्टर शर्मा ने सपना को अपने पास बुलाया “बेटा आजकल तुम कविताऍं नहीं लिखती | एक अरसा हो गया तुम्हारी कविता सुने हुए| “

“हाँ,पापा आजकल मन ही नहीं करता|” सपना ने बुझी हुई आवाज में कहा|

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“वह सब मैं नहीं जानता, तुम मुझे रोज एक कविता सुनाओगी |”

अब सपना रोज एक कविता मिस्टर शर्मा को सुनाने लगी |अर्थ की बेरुखी और उसके अपमान से अंदर ही अंदर टूट रही सपना ने अपने आप को साहित्य में झोंक दिया। साहित्य से फिर जुड़ने के कारण अब वह खुश भी रहने लगी थी |

धीरे-धीरे मिस्टर शर्मा ने उसकी कविताओं को पब्लिश कराना शुरू कर दिया | लोकल मैगजीनस और न्यूज़ पेपर्स में उसकी कविताऍं धूम मचाने लगी | उसके कविताओं की पॉपुलरिटी देखकर एक फेमस पब्लिशिंग हाउस ने उसकी कविताओं को पब्लिश करना शुरू कर दिया | उसकी ख्याति दिन प्रतिदिन  बढ़ती जा रही थी | यह सब देखकर अर्थ अचम्भित था | तभी एक दिन खबर आती है कि सपना के काव्य-संग्रह ‘अभिव्यक्ति’ को ‘बेस्ट सेलर बुक’ का अवार्ड मिला है और उसे अवॉर्ड लेने दिल्ली जाना है |

अभी मिस्टर शर्मा सपना से यह डिस्कस ही कर रहे थे कि दिल्ली जाने का कैसे क्या प्लान करना है। तभी अर्थ बीच में बोल पड़ा “पापा मैं चला जाऊॅंगा सपना के साथ |”

“लेकिन बेटा जी, आप क्या करोगे, वहां जाकर? कोई मेडिकल काउंसिल की मीटिंग तो है नहीं,साहित्यिक सम्मेलन है | तुम्हें क्या समझ कविता, कहानी की | क्यों अर्थ? सही बोल रहा हूॅं ना |” शर्मा जी ने छूटते ही कहा|

“पापा मैं अपनी सोच पर शर्मिंदा हूँ|” अर्थ ने ऑंखें नीची करते हुए कहा |

“ठीक है बेटा, यदि ‘सुबह का भूला शाम को घर आ जाए’ तो उसे भूला नहीं कहते |”तुम्हें अपनी गलती का एहसास हो गया यही हमारे लिए बहुत है |अब तुम दोनों दिल्ली जाने की तैयारी करो | अर्थ की पीठ थपथपाते हुए शर्मा जी ने कहा |

“नहीं, पापा दिल्ली सिर्फ हम दोनों नहीं आप और मम्मी भी चलेंगे |आप के कारण ही मैं इस मुकाम पर पहुॅंची हूँ| अर्थ के द्वारा किए जा रहे अपमान से मैं दिन प्रतिदिन टूटने लगी थी। मुझे ऐसा लगने लगा था कि मैं बिल्कुल बेकार हूॅं। मैं किसी लायक नहीं हूॅं। मेरे जीवन का कोई मकसद ही नहीं है। लेकिन,आपके आशीर्वाद और मार्गदर्शन से यही अपमान वरदान बन गया। सपना ने मिस्टर और मिसेज शर्मा के पाँव छूते हुए कहा |

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तभी ट्रेन रुकने की आवाज से वह अपनी यादों के झरोखे से बाहर आ गई |स्टेशन आ चुका था | स्टेशन के बाहर सपना को लेने गाड़ी आई हुई थी | गाड़ी में बैठ कर वे सभी समारोह स्थल पहुॅंचे| तालियों की गड़गड़ाहट के बीच सपना ने पुरस्कार ग्रहण किया और लोगों की फरमाइश पर अपनी कविता ‘अपमान बना वरदान’ की कुछ पंक्तियाॅं गुनगुना पड़ी-

“हो यदि आशीर्वाद अपने बड़ों का,

हो यदि जज्बा कुछ कर दिखाने का,

तो,हर अपमान वरदान बन जाता है।

हर ऑंसू उम्मीद का दिया जलाता है।

जहाॅं हो काॅंटे,वहीं फूल खिल जाता है।

यह सुनते ही पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूॅंज उठा और अर्थ की नजरे शर्म से झुक गई।

धन्यवाद।

साप्ताहिक विषय प्रतियोगिता-#अपमान बना वरदान

लेखिका-श्वेता अग्रवाल। धनबाद, झारखंड।

शीर्षक-अपमान बना वरदान

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