अपमान बना वरदान – उषा विजय शिशिर भेरूंदा : Moral Stories in Hindi

आज कामवाली राधिया बड़े देर से आई, सरिता जी पूछने लगी देरी से आने का कारण 

रधिया सारे मोहल्ले का हाल-चाल बताने लगी अचानक उसे याद आया और वह कह उठी वह रामचरण मिश्रा जी के यहां यशोदा ताई ने आपको शाम को जरूर बुलाया है सरिता जी सोचने लगी

अभी रामचरण मिश्रा जी का देहावसान हुए 8 ही दिन हुए और उनकी पत्नी का मुझे क्या काम और वैसे भी शाम को तो उनके घर से भजन की आवाज सुनाई देती है वहां मेरा क्या काम खेर शाम को देखूंगी कहां का सरिता जी आराम करने लगी 

शाम को जल्दी-जल्दी काम निपटा सरिता जी यशोदा जी के यहां जा पहुंचे शाम को वहां इश वंदना चल रही थी अचानक यशोदा जी कहने लगी अब आप सब सरिता के मुंह से भजन सुनो देखो कितने सार गर्भित और मधुर आवाज में भजन गाती है बेटा मैं तुम्हारे मुंह से इतने रसीले भजन सब मेहमानों को सुनने बुलवाया है

इन्हें बताने भजन ऐसे होते हैं सरिता जी यशोदा जी की आजा मान भजन गाने लगी सभी मेहमान मंत्र मुग्ध हो उनके भजन का रसास्वादन करने लगे जब सरिता जी आने लगी यशोदा जी कहने लगी सरिता तुम रोज शाम को आया करो मुझे तुम्हारे मुंह के भजन बहुत अच्छे लगते हैं एकादशी पर मैं सिर्फ तुम्हारे भजन सुनने मंदिर जाती थी 

सरिता जी रात्रि सारे कार्य निवृत हो जब सोने आई आंखों से नींद गायब थी उन्हें आज से 25 30 वर्ष पूर्व कि वह घटना याद आई 

रामचरण जी मिश्रा के चार बेटे चार बहूएथी गांव का काफी संपन्न परिवार बहूए भी बहुत सुंदर और संपन्न ग

घरानों से थी उनके घर में सारी महिलाओं को अपने रूप और पैसों पर बहुत घमंड था गांव का माहौल पूरे मोहल्ले में एकमात्र संपन्न परिवार घमंड क्यों ना हो 25 30 वर्ष पूर्व रामचरण जी के यहां बड़े पुत्र की बेटी की शादी थी गांव में 8 दिन पूर्व से ही शादी का माहौल शुरू हो जाता है

काफी मात्रा में 8 दिन पूर्वाही मेहमानों का आगमन हो गया रोजाना रात्रि में ढोलक के थाप पर बने गाने का सिलसिला साथ में ढोलक पर नृत्य चुंकि सरिता जी की सास और यशोदा जी सहेली थी इस वजह से विशेष बुलावा और 8 दिन पूरे मोहल्ले में बन्नी गाने का बुलावा सरिता जी को वह परिवार बिल्कुल नहीं अच्छा लगता था

मगर सांस का आदेश हुआ बुलावे मैं जाने का हुआ सरिता जी ने अपनी सारी पड़ोसन कला, विमला, और अनसूया को बड़ी मिन्नत के साथ चलने को तैयार किया वह लोग वहां पहुंचे ढोलक पर बन्नी और नर्त्य नृत्य का बड़ा खुशनुमा माहौल चल रहा था

कुछ समय बाद अचानक यशोदा जी की बड़ी बहू सुधा ने सरिता जी से गाने को कहा उनके दो-तीन बार आगृह करते ही यशोदा जी कह उठी अरे यह लोग कहां अपने जैसे गाते और बजाते हैं इन्हें नहीं आता तुम तो इन्हें रहने दो इतना खुशनुमा माहौल खराब मत करो 

सरिता जी पर मानोघडो पानी गिर गया सखियां भी गुस्से से उन्हें देखने लगी वापसी में सारी सखियां गुस्से में उसे भला बुरा कहने लगी घर आने पर उतरा हुआ मुंह देखकर सासू मां ने कविता जी से पूछ लिया सरिता जी की आंखों में आंसू आ गए अपमान की बात करते-करते वह कहने लगे अब कभी भी मैं उनके घर नहीं जाऊंगी 

सरिता जी की बात सुन उनकी सास हंसने लगी पगली निर्णय यह लो कि मैं उनसे बेहतर गाउंगी ना की यह कि मैं अब उनके घर नहीं जाऊंगी मैंने तुम्हें भी कई बार किचन में बहुत सुरीली आवाज में ठाकुर जी के भजन गुनगुनाते सुना है मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है तुम उनसे बेहतर गांओगी

और आज जब यशोदा जी सभी के सामने उसके भजनों की तारीफ की तो वह अपने दिवंगत सास को धन्यवाद देना नहीं भूली सरिता जी कहने लगी वाहमाजी आज तो आप ने मेरे अपमान को वरदान में बदल दिया 

धन्यवाद 

उषा विजय शिशिर भेरूंदा

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