मैं तो बेटी के मोह में बहू के साथ बहुत ग़लत किया – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

खबरदार जो घर में पांव रखा, चली जाओ यहां से इस घर में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है। मम्मी समझाओ न दीक्षा और रक्षा को मैंने नीतू से शादी की है और अब ये तुम्हारी बहू है।कैसी बहू और किसकी मर्जीसे शादी की है । बिना मेरी और घर के लोगों के मर्जी के बिना शादी कर सकते हो ।

क्या।अरे अब बेटे ने शादी कर ली है तो अंदर आने दो बहू को अमरनाथ जी बोले आप तो चुप ही रहिए , हां पापा आप चुप रहो घर के मामले में आपको बोलने की कोई जरूरत नहीं है  रक्षा और दीक्षा बोली। हां भाई मैं तो चुप ही रहता हूं मेरी कहां चलती है इस घर में ।

           लेकिन ‌‌‌मम्मी मैं इतने समय से कह रहा हूं कि मैं नीतू को पसंद करता हूं और उससे शादी करना चाहता हूं लेकिन आप सुन ही नहीं रही थी तो आज हम दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली है अब तो अपना लें इसे ये अब आपकी बहू है।इतने में दोनों बहनें बोली भइया मम्मी क्या बोलेगी हम लोग जैसा कहेंगे मम्मी वैसा ही करेगी।तुम अपनी मर्जी से शादी कैसे कर सकते हो। मम्मी तुम कुछ बोलो न सब यही दोनों बोले जा रही है। हां हां ठीक है जो तुम्हारी बहनें कहेगी वहीं मेरा भी फैसला है।तो फिर ठीक है मैं भी जा रहा हूं इस घर को छोड़कर और जितेन्द्र नीतू को लेकर चला गया।

              विमला और अमरनाथ जी के परिवार में दो बेटे और दो बेटियां थीं । सबसे बड़ा बेटा जितेन्द्र और दूसरा बेटा प्रवीण और बड़ी बेटी दीक्षा और छोटी रक्षा ‌। दोनों लड़कियां काफी तेज तर्रार थी पूरे घर पर अपना वर्चस्व बना रखा था ।जो वो कहती वहीं होता घर में। अमरनाथ जी सीधे सरल इंसान थे ।और विमला जी भी बेटियों के कहे अनुसार ही चलती थी।बेटे जितेन्द्र की उम्र 35 की हो गई थी लेकिन शादी नहीं हो रही थी

क्योंकि जो भी लड़की देखी जाती कोई न कोई कमी निकाल कर बेटियां ही कैंसिल करवा देती शादी। इसी तरह उसकी शादी टलती जा रही थी। वैसे तो सभी की शादी की उम्र हो रही थी लेकिन घर में जितेन्द्र ही सबसे बड़ा था तो उसकी शादी पहले होनी थी ।जब उसकी शादी हो जाए तो दूसरे की हो । वैसे बड़ी बहन की शादी के लिए भी रिश्ते देखे जा रहे थे । बहनों का पूरा वर्चस्व घर पर होता था।जब बड़े भाई की शादी नहीं हो पा रही है तो बाकी की शादी कैसे हो ।

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               इन सब चक्करों से तंग आ गया था जितेन्द्र।नीतू जितेन्द्र के आफिस में काम करती थी । धीरे धीरे जितेन्द्र उसकी तरफ आकर्षित होने लगा ।अब वो उससे बात करने के और मिलने के बहाने ढूंढता । फिर एक दिन मौका देख कर जितेन्द्र ने नीतू के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया । पहले तो नीतू ने इंकार कर दिया । लेकिन जितेन्द्र बार बार उससे इंकार की वजह पूछता रहा ।

फिर नीतू ने एक दिन जितेन्द्र से कहा आप मेरे बारे में जानते ही कितना हो। अभी आपको मेरे बारे में सबकुछ मालूम नहीं है , तो बताओ ना जबतक बताओगी नहीं तो कैसे मालूम होगा।तुम क्यों शादी नहीं करना चाहती बताओ । जितेन्द्र के बार बार पूछने पर नीतू ने बताया कि मैं एक विधवा हूं । शादी के चार महीने बाद ही एक एक्सीडेंट में मेरे पति की मौत हो गई थी ।उन्हीं की अनुकम्पा में मुझे ये नौकरी मिली है ।

मैं रायबरेली की रहने वाली हूं।उस शहर से मेरी बहुत सी यादें जुड़ी थी तो मैंने इस शहर में ट्रांसफर ले लिया।अब बताओ तुम मुझसे शादी करोगे। जितेन्द्र ने कहा अच्छा तुम मुझे कुछ दिन की मोहलत दो मैं बताता हूं ।

                   जितेन्द्र उस सारी रात नीतू के बारे में सोचता रहा कुछ फैसला नहीं कर पा रहा था।दूसरे दिन आफिस आकर अपने परम मित्र संजीव से बोला चल यार कैंटीन चलते हैं तुझसे कुछ बात करनी है। दोनों ने कुछ नाश्ता और चाय आर्डर किया हां बोल क्या बात है संजीव बोला ।अरे यार एक उलझन है क्या बोल ना ?यार मेरे साथ आफिस में जो नीतू है न उसको मैं पसंद करता हूं अच्छा तो प्रपोज कर दें उसको ,वो तो मैं कर चुका हूं फिर ,अरे यार बात ये है कि उसकी पहले शादी हो चुकी है तो क्या तलाकशुदा है अरे नहीं वो विधवा है ।

क्या शादी के चार महीने बाद ही पति की एक्सीडेंट में मौत हो गई थी ।तो क्या नीतू शादी को तैयार नहीं ‌‌‌‌‌हैं, नहीं उसने मना तो नहीं किया है लेकिन मेरे घर वाले ,घर वालों को कैसे मनाऊं । पापा तो मान जाएंगे और उनकी कुछ चलती नही है घर में मुसीबत तो मां और बहनों से है ।तू क्या चाहता है ऐसी लड़की से शादी करना चाहता है । हां मुझे कोई प्राब्लम नही है ।तो फिर घर में बात कर सब तैयार होते हैं तो ठीक नहीं तो कोर्ट मैरिज कर लें । हां यार ये ठीक सलाह दी तुमने। कब तक घर वालों की ज्यादितियां बर्दाश्त करूंगा । जिंदगी मेरी है तो फैसला भी तो मुझे ही करना होगा।

                 संजीव के कहने पर जितेन्द्र ने घर में मां से बात की तो मां ने साफ मना कर दिया। जितेन्द्र ने कहा मां नीतू के साथ मुझे जिंदगी बितानी है और मुझे वो पसंद है तभी रक्षा और दीक्षा बीच में बोल पड़ी एक विधवा लड़की हमारी भाभी बनेगी क्या।तुम दोनों चुप रहो ज्यादा हमारे बीच में बोलने की जरूरत नहीं है। जितेन्द्र ने बहुत कोशिश की घर वालों को मनाने की लेकिन वो तैयार नहीं हुए।

            घर वालों के व्यवहार से दुखी होकर जितेन्द्र ने नीतू से कहा मैं तुमसे शादी करने को तैयार हूं लेकिन हम लोग कोर्ट मैरिज करेंगे।कोट मैरिज करने के बाद जितेन्द्र नीतू को घर लेकर आया कि अब तो शादी हो गई है अब तो मम्मी को मानना ही पड़ेगा। लेकिन उसका उल्टा हुआ जैसे ही नीतू को लेकर जितेन्द्र घर आया

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दोनों बहनें दरवाजे पर खड़ी हो गई और बोली अंदर नहीं जाना है। मम्मी मैंने शादी कर ली है कुछ तो समझाओं रक्षा और दीक्षा को। लेकिन हमेशा ‌से घरमें बेटियों का ही वर्चस्व रहा और आगे वो ही मां को सीख देती रहती थी। विमला देवी के भी जैसे बेटियों की ही आंखों पर पट्टी बंधी हुई थी। सबने मिलकर इस शादी को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। जितेन्द्र गुस्से से बोला ठीक है तो मैं भी इस घर से जा रहा हूं अलग रहने रहो तुम सब यहां।

               जितेन्द्र और नीतू ने अलग किराए का मकान लिया और वहीं रहने लगे।अब यहां अपनी दाल गलते न‌ देख कर दोनों ‌‌‌बहनें तिलमिला उठी।भाई हाथ से निकला जा रहा था। शादी के चार महीने बीत गए थे और विमला जी ने नीतू को नहीं अपनाया था। तभी कहीं से पता लगा कि नीतू प्रेगनेंट हैं और‌घर में बड़ी बेटी की शादी भी तय हो गई है।अब कैसे समझौता किया जाए जितेन्द्र ‌‌‌‌‌से। महीने भर बाद दीक्षा की शादी की तारीख निकली है ।

शादी में खर्च करने को जितेन्द्र से पैसे भी तो चाहिए । बहुत कुछ सोच-विचार कर विमला जी पति अमरनाथ जी को लेकर जितेन्द्र के घर गईं और चलने को कहां लेकिन जितेन्द्र नीतू के बगैर जाने को राजी न हुआ ।तो मजबूरी में जितेन्द्र के साथ नीतू को भी लाना पड़ा।घर तो आ गई नीतू लेकिन उसको वो‌ मान सम्मान नहीं मिलता था जो घर की एक बड़ी ‌‌‌बहू को मिलता है। बहनें तिरस्कार करती थी । फिर भी घर में अपनी जगह बनाने को नीतू शांत होकर सब देखती रहती थी। दीक्षा की शादी हो गई ।

  ‌।            ऐसे ही एक दिन विमला जी का पांव फिसला और वो गिर पड़ी कूल्हे की हड्डी टूट गई बिस्तर पर आ गई , उठने बैठने को भी मना है गया। यही मौका था नीतू को अपनी जगह बनाने का घर में । उसने जी जान से विमला जी की सेवा की और दो महीने बाद विमला जी वाकर के सहारे  थोड़ा बहुत चलने लगी । नीतू ने भी एक बेटी को जन्म दिया ।घर‌मे एक बच्ची के आ जाने से घर का माहौल बदलने लगा ।

विमला जी के मन से नीतू के लिए नफ़रत कम होने लगी । नीतू ने भी एक दिन भर की सहायता करने वाली लगा ली थी । नीतू की देखरेख में आज विमला जी खड़ी हो पाई ।आज नीतू को उन्होंने गले से लगा लिया और बोली मुझे माफ़ कर दे बेटा।मैं बेटियों के कहे में आकर सही ग़लत का फैसला भूल गई थी।अब ये घर तुम्हारा है बेटी का क्या एक तो चली गई ससुराल बस दूसरी भी चली जाएगी अब इस घर का सबकुछ तुम्हें देखना है। नीतू विमला जी का प्यार पाकर गदगद हो गई और उनका पैर छूकर आशीर्वाद लिया ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

10 जनवरी

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