अपमान बना वरदान -डॉ आभा माहेश्वरी : Moral Stories in Hindi

“कब तक— कब तक मेरी छाती पर मूंग दलती रहेगी– कमबख्त– मरती भी नही है–” दादी कोसे जा रही थीं शोभा को।शोभा बीस वर्षीय युवती जिसने लड़कपन में ही वैधव्य की चादर ओढ़ ली थी –अपने निर्धन माता पिता के कारण।घर में रोटी के भी लाले थे– दादी,चार बहनें और रुग्ण पिता– माँ थोड़ा बहुत सिलाई का काम करती तब घर का खर्च चलता–

शोभा सबसे बड़ी थी ।वो भी थोड़ा बहुत सिलाई का काम सीख गई थी पढ़ाई के साथ– बारहवीं पास करली थी बेचारी ने — आगे पढ़ाई का साधन ना होने से उसकी पढ़ाई बंद होगई और एक दिन पड़ोस की रचना आंटी ने एक विवाह प्रस्ताव उसकी माँ को दिया उसके लिए –बिना दहेज के। लड़का विधुर था और टीबी का मरीज था लेकिन मजबूरी इंसान से सबकुछ करा देती है।

माँ ने चटपट उसके हाथ पीले कर दिये लेकिन शादी के कुछ दिन बाद ही उसका पति इस दुनिया से चल पड़ा और अब होगई वो विधवा।ससुराल वालों ने उसे घर से निकाल दिया– कहाँ जाती बेचारी फिर माँ के यहाँ आगई।माँ भी काम की अधिकता के कारण बीमार होगई और इस दुनिया से चलबसी।

अस्सी बरस की दादी थी  और बहनों के ब्याह भी होगए थे– एक भाई और भाभी भी थे।भाभी रोज ताने देती कि,” बैठी बैठी– बेशर्मो की तरह रोटी तोड़ती रहती है– काम की ना काज की सौ मन अनाज की,” ऐसे ही सबके सामने उलाहना दे देकर उसका अपमान करती रहती– दादी भी पतोहू की बातों से परेशान हो उसको उल्टा सीधा बोल देती।

    अब एकदिन तो भाभी ने हद ही करदी– उसके सिर पर बेलन उठाकर दे मारा और घर से निकाल दिया– इतना अपमान असहनीय था शोभा के लिए और उसने जान देने की ठान ली– चल पड़ी गंगा मैया को अपना जीवन समर्पित करने के लिए और जैसे ही वो कूद रही थी पीछे से किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया–

उसने मुडकर देखा तो एक सजीला नौजवान था– उसने रोते हुए कहा कि,” मुझे क्यूँ बचाया– मैं जीवन से तंग आगई हूँ– मुझे मर जाने दो,” इसपर वह युवक बोला,” क्यूँ मरना चाहती हो– क्या तुम कुछ कर नही सकती, ” शोभा बोली ,”मैं विधवा क्या कर सकती हूँ,” तो वो नौजवान बोला,” चलो– मेरे साथ– मैं एक एनजीओ चलाता हूँ–

जहाँ तुम्हारे जैसी युवतियाँ आती हैं सताई हुई,” शोभा में थोड़ी हिम्मत आयी और वो उसके साथ चलदी। उस युवक ने उसकी पढ़ने में रुचि देखकर उसको बी.ए और फिर एम.बी.ए कराया और उसको बहुत अच्छी नौकरी मिल गई। वो एक आफिस में उच्च पद पर आसीन होगई। उसको बहुत अच्छी तनख्वाह मिलने लगी।शोभा के जीवन की दिशा ही बदल गई। उसकी भाभी ने जो उसका अपमान किया था– आज वही अपमान उसके लिए वरदान बन गया। उसी के ही सहकर्मी आफिसर से उसका पुनर्विवाह होगया– बहुत खुश थी शोभा अब।

   शोभा नौकरी करने के साथ साथ अपने पति के सहयोग से ऐसी युवतियों की सहायता करने लगी जो समाज के द्वारा सताई गई थीं और परिवार ने अपमान करके घर से निष्कासित कर दिया था।

   अब एकदिन वो अपने पति के साथ कार से अपनी दादी और भाभी भैया से मिलने घर गई लेकिन उसने वहाँ जाकर देखा तो सन्न रह गई– उसकी भाभी जो ताने देकर उसे तंग करती थीं– बीमार थी– भैया की नौकरी छूट गई थी– बच्चे फटेहाल थे।उसकी आंखों में आंसू आगये।भाभी ने जब उसे खुश देखा तो वो बहुत शर्मिदा हुयी और इससे माफी मांगने लगी अपने दुर्व्यवहार के लिए किंतु शोभा बोली कि,” भाभी– यदि आप मेरा अपमान ना करती तो

मैं घर से ना निकलती और अपनी मंजिल ना पाती– आपके द्वारा किया अपमान वरदान बन गया– आज मैं आत्मनिर्भर हूँ और मेरे पति बहुत अच्छे हैं, आप चिंता ना करो– मैं हूँ ना– सब ठीक हो जायेगा,”– भाभी की आँखें पश्चाताप के आँसू बहाने लगी– सब मैल धुल गया।

    शोभा के पति,ने उसके भाई को अच्छी नौकरी दिलवा दी। शोभा ने भाभी का अच्छे हास्पिटल में इलाज कराया और वे स्वस्थ होगई। दादी भी खुश थी और शोभा और उसके पति पर आशीर्वाद की वृष्टि करने लगीं। शोभा ने भाभी को भी एनजीओ में सुपरवाइजर बनवा दिया– भाभी की मानसिकता भी बदल दी शोभा ने।

    जीवन बदल गया शोभा का– अपमान ने वरदान के रास्ते खोल दिए उसके लिए। अपमान बनगया वरदान– खुशियों के हजारों दीप जल उठे शोभा के जीवन में।।
लेखिका: डॉ आभा माहेश्वरी अलीगढ

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