अपमान बना वरदान – शैलेश सिंह “शैल : Moral Stories in Hindi

देखो बहू… हमारे खानदान में कभी किसी महिला ने नौकरी नहीं की है। हम इतने रसूखदार पहले से ही थे कि किसी को कभी जरूरत ही नही पड़ी। रही बात शिक्षा की तो सभी महिलाएँ शिक्षित हैं। मैंने खुद ने अपने समय में मास्टर किया था। तुम्हारी दादी सास भी बारहवीं तक पढ़ी थी।

रमा की सास उसे ताने मारती रही , रमा ने पढ़ाई के साथ साथ संस्कार भी सीखा था, यदि ऐसा नही होता तो दो टूक जवाब दे ही सकती थी कि ऐसी पढ़ाई का क्या जब ज्ञान शून्य है। पर उसने जवाब नही दिया। रमा का विवाह इंजीनियर शेखर से हुआ था। शेखर एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत था। पिता रिटायर्ड थे।

परिवार में और भी भाई, चाचा , ताऊ भी थे जो अपनी अपनी जगह अच्छे पदों पर थे।  रमा ने नर्सिंग की पढ़ाई की थी और उसे सेवा का शौक तो बचपन से ही था। वो जब भी अस्पताल में किसी कारणवश गई

उसे सिर्फ नर्स का जॉब ही पसन्द आया। उसे ऐसा लगता था रिश्ते तो अस्पतालों में ही बनते बिगड़ते दिखते हैं। पर उसका सपना ससुराल में चकनाचूर हो जाएगा उसने कभी सपने में भी नही सोचा था।

एक रात जब शेखर घर आया और रमा ने उसके मनपसंद खाने की थाली सजाई तो शेखर खुशी से बोल पड़ा..” हे देवी…! पति प्रसन्न हुए अब वर माँगो देवी। आपकी सारी मनोकामना पुरी की जाएगी।

रमा खुशी से झूम उठी, उसने सोचा भी नही था शेखर इतने अच्छे मूड में आ जायेंगे। आज तो पक्का मैं अपना वर माँग लूँगी।

तभी शेखर पुनः पौराणिक कथाओं की तरह उसी अंदाज में बोला..” देवी वर माँगने में इतना विलम्ब..!

नही नही नाथ…! विलम्ब तो कदापि न होगा। रमा भी शेखर के अंदाज में ही बोली…” क्या नाथ सचमुच दासी को वर देंगे..? अपनी बात पर अडिग तो रहेंगे ना..?

अब शेखर थोड़ा विचलित हुआ..! पता नही रमा क्या माँग ले। यदि ज्वेलरी हुआ तो कोई बात नही…! पर कुछ और न हो..!

नही नही देवी…! वर माँगो। हम वचन देते हैं, वरदान अवश्य देंगे।

रमा  तनिक भी  देरी न करते हुए दोनों हाथ जोड़कर बोली…” हे नाथ …!  हमें अस्पताल में नौकरी करने दिया जाय।

शेखर का दिमाग भन्ना गया…” ये क्या बात हुई। हमें तुमने फंसा दिया। रमा ये तरीका सही नही है। मैं तुम्हे इजाज़त कैसे दे सकता हूँ। तुम जानती हो हमारे घर का रिवाज।

  और शेखर वहाँ से उठकर  बैडरूम की तरफ चल दिया। रमा भी पीछे पीछे गई और शेखर को पीछे से ही बाहों में जकड़ कर बोली…” अपनी प्रिय पत्नी की इतनी भी इच्छा पूरी नहीं कर सकते। क्या ये मेरा घर नहीं और क्या आपके फैसले का कोई मोल नही। शेखर मैं जॉब के साथ साथ घर की सारी जिम्मेदारी निभाउंगी।

शेखर रमा से बहुत प्यार करता था। वो जानता था रमा की इस हॉबी को। रमा के स्वभाव से वो पिछले आठ महीने से परिचित था। उसने अब जरा सा भी नही सोचा और रमा के माथे पर एक चुम्बन अंकित करता हुआ बड़े रोमांटिक अंदाज में बोला..” मेरी प्रियतमा की बातों को दरबार में सभी के सामने रखा जाएगा और उस पर अमल भी किया जाएगा।

रमा खुशी से बावरी हो गई।

सुबह जब ये बात शेखर ने माँ को बताई तो माँ आगबबूला हो गई…” अब क्या यही सब देखना बाकी रह गया था। बहू तूने रात में कौन सा मंत्र फूंक दिया जो शेखर ने अकेले ये फैसला ले लिया।

रमा कुछ न बोली, शान्त खड़ी रही। माँ चिल्लाती हुई बोली…” मरहम पट्टी करती हुई क्या  अच्छी लगेगी इस घर की बहू। मरीजों का मल मूत्र -साफ करने का बड़ा मन है। अस्पतालों का हुलिया देखा है कभी, वहाँ किस हाल में और कैसे व्यवहार में रहती हैं नर्स।

माँ यदि रमा का मन उसी में है तो जाने देते हैं ना…!

नही शेखर..! मैं इसकी  इजाजत नहीं दे सकती। क्या तुझे पैसों की ज्यादा जरूरत है, यदि ऐसा है तो बोलो। अब क्या उसके पैसों से घर की रसोई चलेगी।

माँ इसमें बात पैसों की नही है, उसका  शौक है।

बड़ी देर से अपनी पत्नी और बेटे की बात सुन रहे घर के मुखिया अर्थात शेखर की पापा बोले…” यदि इतना ही शौक है तो हमारा परिवार बहुत बड़ा है बहू…! मेरी बूढ़ी माँ, मेरी चाची उन सभी की सेवा करो। उन्ही की देखभाल करो। अच्छा हुआ किसी डॉक्टर लड़की से विवाह नहीं किया वरना घर में ही अस्पताल खोलना पड़ता।

इतना कहकर पापा जी वहाँ से चले गए । समय शेखर का भी हो गया था इसलिए वो भी ऑफिस के लिए निकल गया।  शेखर ने बात को वही रोकने को कहा था इसलिए रमा किचन में चली गई।

पापा जी के  ताने ने रमा को और मजबूत बना दिया। उसे ऐसा लग रहा था जैसे बार बार उसके नौकरी को छोटा समझा जा रहा है। उधर  शेखर की माँ को ये बात हजम नहीं हो रही थी कि उनकी बहू इतना आगे जाकर बात करेगी। खाने के समय जब वो माँ के पास थाली लेकर गई तो माँ ने मुँह फुला लिया।

   ” हम तुझ जैसी बहु से बात भी नही करेंगे। मेरे और भी बेटे है, बहु है, जा तू यहॉं से।

रमा को अब पक्का यकीन हो गया  कि उस ने सही फैसला ले लिया था इसलिए वो अपनी सास से  बोली..” माँ मुझे जाने दीजिए। क्यो जिद पर अड़ी हैं।

माँ गुस्से में बोली…” जा..! चली जा यदि यही जिद है तो। पर एक बात याद रखना… तुम्हारे हाथ के निवाले तो मैं ना खाऊँगी। या तो अस्पतालों में सेवा करो या तो घर में। मेरी अन्य बहुओं की तरह स्थान न मिलेगा

कभी इस घर में। मेरी मति मारी गई थी जो तुझ जैसी लड़की से ब्याह दिया अपने  बेटे को  और  बेटा जो सिर्फ तेरी सुनता है। उस दो कौड़ी की नौकरी में क्या रखा है..!  क्या तुम्हारे माता पिता ने तुम्हे जरा सा भी संस्कार नही दिया है कि सास की बात मानी जाए। या तुम पहले से ही बिगड़ी हुई थी।

इन सब बातों ने रमा को अंदर तक झकझोर दिया। घर के सभी सदस्यों के बीच इतना अपमान तो एक संस्कारी लड़की ही सह सकती थी। उसने अब ठान लिया था कि कुछ भी हो मुझे नौकरी करना ही पड़ेगा।

रमा को नौकरी करते हुए चार महीने हो चुके थे। इस दौरान घर में उससे कोई काम नही करवाया जाता। वो घर पर सिर्फ अपना काम करती। खाना पीना उसे किसी मेहमान की तरह दिया जाता। उसी दौरान कोविड आया और भारत के साथ साथ पूरी दुनिया कोविड से लड़ रही थी। एक समय ऐसा भी आया कि बहुतों की जॉब चली गई।

बहुत सी कंपनियां बंद भी हो गई। महामारी ने सभी के घरों में दस्तक दिया और जिनकी इम्युनिटी कम थी ज्यादातर को अपनी चपेट में ले लिया। ऐसे में शेखर , उसकी दादी, उसके पापा तीनो को कोरोना ने जकड़ लिया था। अस्पतालों में मारामारी थी तब रमा के अस्पताल के डॉक्टर ने ही सलाह दिया को घर पर मरीजों की देखभाल कीजिये।

रमा तो है ही देखभाल के लिए। अस्पताल से बढ़िया रहेगा होम क्वारंटाईन । हालाँकि शेखर के पापा रमा की सेवा स्वीकार नही करना चाहते थे पर आज जब रमा के अलावा उनके करीब कोई नही गया तब सबको याद आया रमा पर टिप्पणी कसना।

दवा, सेवा करने के बाद भी शेखर और उसके पापा तो ठीक हो गए पर दादी को नही बचा पाए। दादी की काम क्रिया के दौरान शेखर की माँ और उसकी भाभी को कोरोना हो गया। इधर शेखर अपनी नौकरी से भी हाथ धो बैठा। एक एक करके घर के सभी लोग वायरस से प्रभावित हुए और उन सभी की सेवा सिर्फ और सिर्फ रमा ने किया। खाना दवा से लेकर हर एक सेवा तक सारी व्यवस्था। घर के साथ साथ उसने अस्पताल भी देखा और घर की आर्थिक मदद भी की। 

   सब कुछ ठीक हो गया था तब एक दिन सासु माँ ने रमा के लंचबॉक्स को तैयार किया और बड़े स्नेह से बोली…” बहू हम सभी को क्षमा कर देना। हमने तुम्हारी दूरदर्शिता और दर्द दोनों को नही समझा। अब तुम हरतरफ से आज़ाद हो अपनी तरह की जिंदगी जीने के लिए। हमारी ही सोच संकुचित थी बेटी। हमने तुम्हारा बहुत अपमान किया।

रमा भावुकता में  अपनी सास के सीने से लग गई और बोली…” माँ वो अपमान ही तो वरदान बना। मैं उस अपमान को आपका आशीर्वाद समझ बड़ी तेजी में काम करने लगी थी। मेरा लक्ष्य ही था आपके दिल मे जगह बनाना और अब देखिए मैं आपकी बहू और बेटी दोनों बन गई।

समाप्त…

लेखक – शैलेश सिंह “शैल,,

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