बेटी के मोह में पढ़ कर सही गलत का फर्क करना भूल गई थी। – दीपा माथुर : Moral Stories in Hindi

कल शाम से चुलबुली नंदिता ने घर  को अधर कर रखा था। भाग भाग कर काम कर रही थी ।उसकी ननद शेली अपने पति  और बच्चो के साथ नंदिता की शादी के बाद पहली बार आ रही थी। हालाकि शादी को साल भर हो गया था पर लोकेडाउन की वजह से किसी का आना जाना नहीं हुआ था  और उससे पहले दीदी के ससुराल में उनकी ननद की शादी थी।

नंदिता बहुत ही उत्साहित हो रही थी,होती भी क्यों नहीं अतिथि सत्कार तो उसमे कुट कुट कर भरा था। जब से नंदिता घर में आई है।घर तो मानो फूलों सा महक उठा था।

मम्मी जी रस मलाई बनी या नहीं ,अब दीदी के आने में मात्र आधा घंटा बाकी है।मम्मी जी मुस्कुरा दी बोली” हा

हा बेटा सब तैयारी है।अब थोड़ा सा आराम कर लो,ये तो यूहीं चलता रहेगा।अरे मम्मा दीदी रोज़ रोज़ थोड़ी आती है।

नंदिता कभी कभी सोचती हूं,मैने  ऐसे कोनसे पुण्य किये होंगे जो तेरी जैसी बहू मिली है।”और मुझे आप जैसी मम्मी, नंदिता ने कहा और दोनों हस दी।

इतने में डोर बेल बज गई नंदिता दौड़ती हुई  गेट खोलने गई आइए दीदी ,जियाजी आपका स्वागत है।दोनों के चरण स्पर्श कर बच्चो को प्यार करती हुई अंदर ले आई, शैली अंदर आकर बेग सोफे पर पटक कर बोली,मम्मी आपको नहीं लगता आपने नंदिता को ज्यादा सिर पर  चढ़ा रखा है! कितना बोलती है?

मम्मी जी कुछ बोलती इससे  पहले ही नंदिता पानी लेकर आ गई ।मुस्कुराती हुई बोली दीदी आप फ्रेश हो जाइए मै  चाय नाश्ता लगा देती हूं।

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डाइनिंग टेबल पर चाय नाश्ता लग चुका था।जियाजी ने जेसै ही समोसे खाए तारीफों के पुल बांधने शुरू कर दिए ” नंदिता जी। क्या समोसे बनाए है” पिताजी ने भी सहमति मै कह दिया हमारी नंदिता तो हर कार्य मै होशियार है।

तो क्या हम ऐसे ही है ।और तो और मैने तुम्हें कभी समोसे नहीं खिलाए शैली तो ऐसे टूट पड़ी जैसे खिसियाई बिल्ली खंभा नोचे।जियाजी ने पुनः बात संभाली “अरे भाई आप के तो हाथ का रोज़ ही खाते है।”

दोपहर में आराम करते समय शेली को मम्मी से अकेले में बात करने का मौका मिला ,मोका चूकने वाली कहा थी शैली ,तुरंत बोल पड़ी मम्मी  अभी तो नंदिता नई नई है। इसीलिए आप सभी की चापलूसी कर रही है।बिना मा बाप की है।पैसा कभी देखा नहीं। यहां आते ही ऐश हो गए ।मम्मी अब भी वक्त है संभल जाओ ।मम्मी शैली के सामने हाथ बांध कर खड़ी हो गई।और बोली और कुछ……..

ऑफ हो मम्मी आप कब समझोगी हाथ पकड़ कर पलंग पर बिठा देती है। फिर कहती है।देखो मम्मी पहली गलती आपकी  नंदिता को ऊपर वाला कमरा देना ही नहीं था। मेरी तरह उपर की सफाई में पूरा दिन लगा देगी फिर करती रहना अकेली सारा काम हूं!

अच्छा और दूसरी ? मम्मी बोली

मुझे देखो कभी सासू जी को नहीं पूछा हमेशा अपने अनुसार ही चली हूं । आज सब मुझसे डरते है। मम्मी ये सब मैने उस घर में अपनी जगह बनाने के लिए किया।पिताजी की सारी जायदाद आज हमारे पास है।

पर मम्मी मै ये  नहीं चाहती कि आपके साथ भी ऐसा ही कुछ हो।इस घर में तो आपकी ओर पिताजी की ही चलनी चाहिए। और तो और मम्मी…..

“बस करो शैली   ”   ;मम्मी ने गुस्से में कहा    

फिर थोड़ा रुक कर बोली ;”

बेटी के मोह में पढ़कर सही गलत का फर्क करने की भूल में नहीं कर सकती जो सत्य है उसे स्वीकार करना सीखो।

” कद  बढ़ा नहीं करते , एडिया उठाने से ।किसी घर में सम्मान ,ऐश्वर्य पाने के लिए विनम्रता जरूरी है।आज नंदिता को साल भर हो गया सभी के दिल मै जगह बना ली है और हा केवल घर में ही नहीं समाज में भी सभी इसे बहुत चाहते है।सिर्फ इसीलिए की ये सबसे प्यार से बात करती है। जहां झुकना होता है। वहां झुकती भी है,अपनी बात कहनी होती है धीरे से हसती हुई कह भी देती है।हम सभी यहां प्यार से रहते है। क्यू आग लगाने का काम कर रही हो ।और  तुम क्या सोचती हो जो तुम कर रही हो अच्छा कर रही हो? अरे घर में जगह डर से नहीं, मन से बनती है।जायदाद का क्या है।वैसे भी तुम्हारी ही है।आज नहीं तो कल मिल ही जाती जल्दबाजी भी क्या थी।

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आपको नहीं  है मम्मी जल्दी, पर मेरे सास ससुर यदि दीदी को  कुछ दे देते तब?

ये तुम्हारा वहम मात्र है। और हा मै तो तुम्हे  एक बात ये भी  कहूंगी कि यदि पीहर का दरवाजा खुला रखना है। तो जो भाई और मम्मी ,पापा खुश होकर दे रहे है उसे ही स्वीकार करो । अब तुम्हारा ससुराल ही तुम्हारा घर है ।वहीं सबके साथ प्यार से रहो ।

ऐसा नहीं है कि इस घर में तुम्हारा स्थान नहीं है। पर तुम्हारी भाभी पहले है ” शैली किसी को मन से अपना बनाना नंदिता से सीखो फिर यही कहूंगी

“कद बढ़ा नहीं करते , एडिया उठाने से।

उचाईया तो,मिलती है सिर झुकाने से।

मम्मी ने शैली को समझाते हुए।उसके सिर पर हाथ रखा।

हा मम्मी मै घबरा गई थी कि कहीं नंदिता आप लोगो के साथ मेरी तरह व्यवहार नहीं करने लग जाय इसीलिए आपको पहले से सावधान करना चाहती थी।पर अब लग रहा है मैने मेरे ससुराल में अच्छा व्यवहार नहीं किया । काश मुझे नंदिता जैसी समझ होती खैर मम्मी अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा अब मै वहां भी सबको प्यार से रखूंगी। हालाकि विश्वास जीतने में टाइम लगेगा पर आपके आशीर्वाद से जल्दी ही  जीत ही लूंगी।

चलो मम्मी नंदिता अकेली थक जाएगी उसका हाथ बंटाती हूं।कहते हुए दोनों कमरे से बाहर निकल गई।

शैली के इस बदले रूप ने सबको खुश कर दिया था।

लेखिका : दीपा माथुर

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