गोल्ड ही नहीं बोल्ड भी बहू चाहिए – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

मम्मी….. दादी मुझे ऐसा क्यों बोल रही है कहाँ जईबु बहिनी….. जहाँ जईबु आग लगा देबू ….(कहां जाओगी बहन यूपी में स्त्रीलिंग को बहन का संबोधन करके बोलते हैं) जहां जाओगी वहां आग ही लगा दोगी।

      सौम्या , अरु की बात सुनकर हँसने लगी और प्यार से समझाते हुए बोली…. नहीं बेटा , दादी तेरे से बहुत प्यार करती हैं वो चाहती है कि तू बड़ी होकर सर्वगुण संपन्न बने…. इसीलिए अच्छा बनाने के चक्कर में तुझे टोका- टाँकी करती रहती हैं…. तू उनके बातों का बुरा मत माना कर… वो तुझे बहुत प्यार करती है….. सौम्या ने अरु को समझाना चाहा….।

मम्मी , मैं जानती हूं दादी मुझे प्यार करती हैं पर पंछी से कम…. पंछी को मुझसे ज्यादा प्यार करती हैं।

    संयुक्त परिवार में बड़े बेटे की बेटी अरु बचपन से ही पढ़ने में तेज, निडर , साहसी, स्वतंत्र विचारों वाली लड़की थी …वह पढ़ लिख कर कुछ बनना चाहती थी जिसमें उसके माता-पिता सौम्या और सुधीर पूरा सहयोग कर रहे थे।

    अरु 12वीं के बाद बाहर पढ़ने चली गई ….पढ़ लिख कर एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करने लगी। जैसी जिंदगी की कल्पना अरु ने की थी उसने अपनी मेहनत व लगन से उसे पा लिया था…. अच्छे आधुनिक कपड़े पहनना अच्छी लाइफ स्टाइल उसे काफी पसंद थी जिसे वह पूरा करके काफी खुश थी।

         इधर परिवार में छोटे बेटे की बेटी पंछी दादी की छत्रछाया में गृहकार्य में दक्ष, सुघड, कम बोलने वाली , सर्वगुण संपन्न बिटिया के रूप में बड़ी हुई उसने बाहर पढ़ने जाना चाहा पढ़ने ….तो दादी व पंछी के पापा ने बाहर ना भेजने का फैसला लिया …उनका मानना था की बाहर जाने से लड़कियाँ बिगड़ जाती हैं और शांत स्वभाव होने के कारण पंछी ने इसे सहर्ष स्वीकार भी कर लिया।

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           स्वभाव से शांत पंछी घर के सभी सदस्यों की प्रिय थी …और सभी पंछी की बहुत तारीफ किया करते थे।

कभी-कभी तो अरु के सामने भी कुछ ऐसा बोल दिया जाता था जैसे एक लड़की के लिए घर का काम, खाना बनाना , धीरे बात करना, जवाब ना देना जैसे गुण ही महत्वपूर्ण है जिसमें पंछी संपूर्ण बैठती थी….. घर के सभी सदस्य …..लड़की एकदम सोना है …… ऐसा बोलते थे।

          पर अरु इन बातों का कभी बुरा नहीं मानती थी …क्योंकि वह जानती थी छोटी जगह है ये लोग अभी दुनिया देखे ही नहीं है ….दरअसल जिन चीजों को ये प्राथमिकता देते हैं वह जिंदगी में उतने महत्वपूर्ण भी नहीं है जिसके बिना काम ना चल सके। खैर….!

       समय बीतता गया ….अरु ने अपने माता पिता के सहमति से अपनी कंपनी में कार्यरत एक लड़के से शादी कर ली। शादी की खुशियों में पूरा परिवार शामिल था शादी के कार्यक्रम के दौरान पंछी के पापा बड़े गर्व से बोले …..

    ” बेटा अरु यदि तू बोल्ड है तो पंछी गोल्ड है ” …..और सभी हंसने लगे।

धीरे धीरे समय बीतने लगा…. पंछी की पढ़ाई भी पूरी हो गई घर में सभी को अति विश्वास था की इसकी शादी तो जल्दी लग जाएगी ….इतनी गुणी बिटिया है कौन बहू नहीं बनाना चाहेगा। खुद पंछी भी अपनी तारीफ सुन सुन कर सोचती थी रिश्ते तो उसके लिए खुद ब खुद चलकर आएंगे।

       इसी बीच एक परिचित ने एक रिश्ते के बारे में बताया। निश्चित समय पर लड़के वाले आए बातों का सिलसिला शुरू हुआ सभी पंछी की तारीफ में लगे हुए थे….

     दिखने मैं पंछी सुंदर तो थी ही , गुणों की भंडार भी जो थी। खैर पंछी के मुँह में तो जैसे आवाज ही नहीं है इतना धीरे बोलती है की बगल वाला भी ना सुन पाए ….तारीफ करते हुए दादी ने कहा …..खाना बनाने से लेकर सभी कामों में निपुण है हमारी पंछी । बिल्कुल सोना है सोना ….हमारी पंछी।

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हाँ – हाँ बहन जी…. दादी की बातें सुनकर लड़के की मम्मी बोलीं….पंछी में बहू बनने के सभी गुण हैं और सुंदर भी है। …..

     पर हमें माफ करिएगा…. हमें गोल्ड नहीं बोल्ड बहू चाहिए …..जो समय के साथ साथ पूरे परिवार को लेकर चले व अपनी और पूरे परिवार की हिफाजत कर सके।

     पहली बार पंछी व परिवार के सदस्यों को एहसास हुआ कि लकीर के फकीर रहने की अपेक्षा वर्तमान परिवेश में विचारों में परिवर्तन कर समय के अनुसार चलना ही उचित है…

यदि लड़के और लड़कियों में समान का दर्जा उचित है तो कार्यों में भी समानता लाने की कोशिश करनी ही चाहिए…!

       आज के परिवेश में बच्चियों की परवरिश में दोनों प्रकार… ” गोल्ड और बोल्ड ” दोनों का समावेश होना चाहिए …ताकि वह घर और बाहर दोनों जगह सामंजस्य स्थापित कर सके..।

(स्वरचित और सर्वाधिकार सुरक्षित रचना)

  संध्या त्रिपाठी

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