“मेरी तो किस्मत ही काली स्याही से लिखी गई है..कितना भी कर लूं किसी के लिए कोई मुझे प्यार नहीं करता।” नेहा रोते रोते अपनी सहेली रिया से बोली।
“नेहा हो सकता है तेरा सोचने का तरीका गलत हो..तुझे किसी का प्यार दिखाई ही नहीं देता हो।”
“रिया यही तो प्रॉब्लम है..सब मुझे ही गलत समझते हैं पर परिवार वालों के व्यवहार को कोई नहीं देखता। बचपन से ही मेरे साथ ऐसा होता आया है..मेरी बड़ी बहन को माँ बाऊजी बहुत लाड प्यार करते थे क्योंकि वो उनकी पहली संतान थी। मैं दूसरी बेटी थी मेरे बाद भाई हुआ तो वो उनका लाडला बन गया।
सोचा शादी होगी तो शायद पति व ससुराल वाले ऐसे मिलें जो मुझे बहुत प्यार देंगे। पर मेरी तो किस्मत ही काली स्याही से लिखी गई थी उसको कौन बदल सकता था?कहने को मैं उनकी बड़ी और इकलौती बहू थी पर सारा लाड प्यार नन्द से किया जाता था क्योंकि वो उनकी छोटी और इकलौती बेटी थी।
पति भी अपनी छोटी बहन पर जान लुटाते थे। गलती उसकी हो तो भी मुझे ही डाँटते थे। कहते थे वो छोटी है गलती कर दी तो क्या हो गया? सासू माँ को पोता चाहिए था पोती नहीं। मेरा बेटा हुआ सोचा अब तो सासू माँ मुझसे खुश होंगी और अपना थोड़ा स्नेह मुझपर लुटाएंगी। पर ऐसा नहीं हुआ उनके लिए तो उनकी बेटी ही लाडली बनी रही।
मैंने अपनी किस्मत से समझौता कर लिया और माँ बेटी बहू पत्नी के फर्ज हँसकर निभाती रही। बेटा बड़ा हो गया उसकी शादी की तैयारी होने लगी..मेरी ख्वाहिश थी कि बहू तो मैं अपनी पसंद की लाऊँगी..मगर बेटे ने अपनी पसंद की लड़की से शादी कर ली। मैं खुश थी क्योंकि बेटा खुश था। मैंने अपनी बहू को बेटी जैसा ही प्यार दिया
इस कहानी को भी पढ़ें:
पर उसका दिल भी अपनी माँ के लिए ही धड़कता था। बेटे को तो जैसे मुझसे कोई लेना देना नहीं था उसके लिए उसकी पत्नी ही सब कुछ थी। पति के जाने के बाद लगा अब तो बेटे के दिल में मेरे लिए थोड़ी सहानुभूति होगी.!! थोड़ा प्यार जागेगा..!! लेकिन नहीं..अब तो वो और शेर हो गया।
बात-बात पर मुझे धमकाता रहता है…हमारे साथ रहना है तो हमारे हिसाब से चलना होगा वरना जहाँ जाना है वहाँ चली जाओ। अब तू ही बता मेरा बेटे के सिवा और कौन है.?कहाँ जाऊँ मैं.?घर का सारा काम करती हूँ ताकि बेटा बहू खुश रहें पर खुश होना तो दूर मुझसे सीधे मुँह दोनों बात तक नहीं करते।
पोते पोती को भी मेरे पास नहीं आने देते। जब वो मेरे पास आएँगे नहीं तो उनके मन में भी मेरे लिए प्यार कैसे होगा?भाई बहन सब अपने-अपने परिवार में व्यस्त हैं उन्हें भी अपनी विधवा बहन की सुध लेने की फुर्सत नहीं मिलती।सोचती हूँ कौन है इस दुनिया में मेरा?किसके लिए जिऊँ?जब किसी को मेरे से मतलब नहीं प्यार नहीं।
” नेहा की बातें सुनकर रिया की आँखें भर आईं। नेहा के सर पर प्यार से हाथ रखकर बोली- “देख नेहा जब तक जीवन है तो जीना ही पड़ेगा। किस्मत को कोसने से अच्छा क्यों ना तू ऐसा कुछ कर जिससे तेरा शेष जीवन अच्छे से व्यतीत हो जाए और तुझे किसी के प्यार की जरूरत ही ना पड़े।”
“तू ही बता रिया मैं क्या करूँ?”
“पहले तो तू खुद से प्यार करना सीख। देख अपनी हालत कैसी बना रखी है? घर का काम जितना होता है उतना ही किया कर। एक दो दिन बहू बेटे बोलेंगे फिर अपने आप चुप हो जाएंगे। पति के पैसों पर तेरा हक पहले बनता है। तू अपने पर भी थोड़ा खर्च किया कर। तुझे लिखना पसंद है ना
तो अब ऐसे बहुत सारे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म हैं जहाँ पर तू लिख सकती है। तेरे साथ बहुत सारे ऑनलाइन पाठक जुड़ जाएंगे जिनकी प्रतिक्रियाओं के रूप में तुझे स्नेह व सम्मान दोनों मिलेगा। एक बार ये सिलसिला शुरू हो जाएगा फिर तुझे किसी के प्यार का मोहताज नहीं होना पड़ेगा।”
“ठीक कह रही है तू रिया। जब तक जीवन है जीना तो पड़ेगा।क्यों ना इस जीवन का सदुपयोग कर आत्मसम्मान से जिआ जाए ?जैसा तू ने कहा है अब से मैं वैसा ही करूँगी।”
इस कहानी को भी पढ़ें:
“ये हुई न बात ! अब कभी ना कहना..कि कोई मुझे प्यार नहीं करता।” कहकर रिया ने नेहा को गले से लगे लगा लिया।
नेहा ने लेखन से जुड़कर अपने जीवन को एक नई दिशा दी।वह एक सफल लेखिका बन गई थी।उसे लाखों पाठकों का प्यार व सम्मान मिल रहा है।अब वो अपनों के प्यार की मोहताज नहीं थी।आत्मसम्मान से परिपूर्ण नेहा के लिए जिंदगी का सफर सरल व सुखद हो गया था।
लेखिका : कमलेश आहूजा