सदमा – सुनीता मिश्रा

आज दिन बहुत  बढ़िया बीता,बिट्टू को उसके स्कूल मे ड्राईंग प्रतियोगिता मे प्रथम पुरस्कार मिला,रूनझुन स्कूल मे डान्स प्रतियोगिता मे सैकेण्ड रही।यूँ तो नीता के दोनो बच्चे होशियार है।खुशी इस बात की थी की एक ही दिन दोनो को अपने अपने स्कूल मे सम्मानित भी किया गया।इसी बात पर  प्रकाश ने परिवार को ग्रैंड होटल मे डिनर दिया।

रात साढ़े नव बजे वो लोग खाना खाकर घर लौटे,प्रकाश ने टी वी ऑन किया ,जी चैनल पर  कमल हासन,और श्री देवी की फिल्म सदमा  चल रही थी।बच्चे तो नींद मे थे,जाकर  अपने अपने बिस्तर पर सो गये।नीता प्रकाश से बोली–मैने ये फिल्म नही देखी,सुना है बहुत अच्छी है।आप चाहे तो सो जाईये,मै इसे देखूंगी।”प्रकाश ने भी फिल्म  देखने की अपनी सहमति जताई।फिल्म रात करीब साढ़े बारह पर खत्म हुई।दिन भर की थकान और रात मे देर होने की वजह से दोनो हो थक गये थे अत:जल्दी ही नींद के आगोश मे समा गये।

सुबह  सुहानी न हो पाई।नीता ने सुना बड़े जोर जोर से आवाजे आ रही थी।लग रहा था कई लोग गेट  पीट रहे है।जैसे गेट तोड़ ही डालेंगे धम्म  धम्म की आवाजें बता रही थी की गेट फांद कर कुछ लोग अंदर आ गये है।इतनी सुबह सबेरे कैसा शोर घर के बाहर,नीता उठ बैठी,उसे डर लगने लगा ।

कालोनी मे उस समय बहुत कम मकान बने थे । नीता के घर के आस पास तो कोई घर नही बना था।प्रकाश भी शोर शराबा सुन उठ गया।वह दरवाजा खोलने लगा नीता ने मना किया।पर प्रकाश दरवाजा खोल बाहर आया,पीछे पीछे नीता भी  आई।बच्चे छोटे थे,वे बेखबर सो रहे थे।प्रकाश को देखते ही करीब आठ दस लोग जोर से बोले–ये जमीन पर तुमने कैसे कब्जा किया।ये हमारे हिस्से मे आती है,अभी और इसी बखत भागो इंहा से”इतना कह एक ने बन्दूक से हवाई फायर कर दिया।

नीता और प्रकाश एकदम सकते और सदमे मे आ गये।

“खाली करो ये जगह,अपने बाप की समझी जमींन जो मकान तान फुलवारी लगा डारी,,न गये तो छट्टी का दूध याद दिला देँगे,अब्भी तो जाय रये है समझे “और एक फायर हुआ और ट्रेक्टर पर लद सब चले गये।


नीता और उसके पति प्रकाश सीधे सरल दम्पति,खर्चो को काटकर बचत की ,नीता ने अपने जेवर गिरवी रखे,लोन लिया,अपने एक मित्र के माध्यम से शहर से दूरी पर 2400sq f का प्लाट ले,800sq f मे छोटा सा घर बना ,शेष जमीन  पर बगीचा बना लिया,जहाँ आम अमरूद के पेड़,सब्जियां,और फूल लगाए।नीता ने तो रोना शुरु कर दिया।प्रकाश ने समझाया “हमारी मेहनत की कमाई का घर है ये।ऐसे कैसे लुटेरे लूट लेंगे।”

पति पत्नी ने अपने कागजो को लेकर निगम आफिस,नेता ,जितना उन लोगो से बन सकता था,चक्कर काटने शुरु किये।प्रकाश कलोनाईजर से भी मिलने गया,लेकिन कलोनाईजर  बाहर दूसरे शहर चला गया था।

गुंडे दो चार दिन मे आते बन्दूके साथ होती।धमकी देते,और चले जाते।एक दिन तो गज़ब हो गया।गुण्डा पार्टी फटफटिया पर बन्दूकें लिये आई।बगीचे की एरिया पर सफेद  चूने से लाइनिंग की,हवा मे फायर कर भाग गये।प्रकाश और नीता बहुत डर गये।पुलिस मे रिपोर्ट की,थानेदार ने सलाह दी ,कुछ ले,दे,कर मामले मे धूल डालो।स्थानीय ठूल्लू है साले,पैसे चाहिये उनको 25,30,हजार दे के सुलटा लो”कहने को तो कह दिया थानेदार ने।इतने पैसे यूँ ही दे देना,न तो प्रकाश की हैसियत थी।न गलत बात पर वह झुकना चाहता था।

पति पत्नी की नींद गायब हो गई ।कितनी मुश्किलो से एक एक पैसा जोड़ा,बच्चो की ख्वाइशों को दफन किया।रूनझुन तो समझदार थी,बिट्टू बहुत छोटा था ,कहता था–मम्मा इस दिवाली पर भी नये कपड़े नही बने,न ही वो खिलौनों वाली बड़ी सी कार खरीद कर दी।हर बार यही कहते हो ,जब  अपना घर तैयार हो जाएगा तब खरीदेंगे।कब तैयार होगा घर अपना।

नीता की आंखों मे आँसू छलक आये।


नीता को मार्किट जाना था,सब्जी लेने ।उसने रूनझुन से बिट्टू का ध्यान रखने,और दरवाजा ठीक से बंद करनेके लिये कहा  और निकल पड़ी ।रास्ते मे उसे अपनी सहेली मिली।बातो ही बातों मे नीता ने उसे अपनी परेशानी बताई ।ये भी बताया की निगम ऑफिस के अफसरों ने भी कोई हैल्प नही की।नीता की सहेली ने कहा—तुम निगम कमिश्नर से मिलो।वे बहुत सज्जन व्यक्ति है।मै नगर निगम मे ही काम करती हूँ ।जहाँ तक मुझे उम्मीद है वो तुम्हारी समस्या पर ध्यान देँगे”।

नीता ने ये बात प्रकाश को बतलाई,हालाकि प्रकाश  इस बात पर राजी नही था,उसे लगा ये बड़े अफसर हमारी परेशानी को कहाँ समझते है।कह देँगे अर्जी डाल दो और जाओ।पर नीता ने कहा एक बार मिल लेने मे हर्ज़ ही क्या है ।

प्रकाश और नीता कमिश्नर  साहेब से मिले।लिखित  अर्जी दी,और  प्रकाश ने थोड़े मे अपनी व्यथा बयान की।बीच बीच में नीता भी बोलती,पर बोलते-बोलते रो पड़ती।कमिश्नर साहेब ने धैर्य से सारी  बाते सुनी,सम्बंधित आधीस्थ को बुलवाकर,जगह के कागजात देखें ।बोले-आप चिंता न करे ,न ही घबराएं ।

घर जाएं मै देखता हूँ “

निगम से कर्मचारी आये,जगह की नाप जोख करने।उसी दिन शाम को वही गुंडे फटफटिया पर आये।बन्दूक नही थी हाथ मे।आते ही नीता से बोले “प्रकाश साहेब अभी ऑफिस से लौटे नही शायद।बहिन जी हमे माफ करना हमे पता नही था  कमिश्नर साहेब आपके भाई है,नई तो काहे आप लोगो को धमकियाते ।”

प्रकाश के घर आते ही नीता ने सारा किस्सा सुनाया ,प्रकाश हँस पड़ा बोला–हर बार, “जिसकी लाठी उसकी भैंस ” नहीं होती,कभी कभी ईमानदारी की भैंस ईमानदार के पास ही रहती है।

सुनीता मिश्रा

भोपाल

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