यार! सोहा तू इन सब बातों को इतना सीरियसली क्यों लेती है? ये दुनियां हकीकत से बहुत दूर होती है, ये सब व्यूज और पैसे के लिए कुछ भी पोस्ट करते हैं। लेकिन सोहा पर अपनी सहेली खुशबू की बातों का कोई असर नहीं होता था।
फेसबुक, इंस्टाग्राम की पोस्ट और reels देख देख कर उसका असर सोहा के मन पर गहराता जा रहा था, नतीजन उसके कोमल मन में ससुराल की छवि एक बुरी जगह के रूप में बन गई थी।
MBA पूरा होते ही उसकी शादी सुसम्पन्न घर में हो गई, शादी करके जब सोहा ससुराल आई, तो उसे वहां की छोटी से छोटी बात भी बुरी लगती, और उनमें बुराई नजर आती, बात बात पर उदास हो जाना, और पलट कर जवाब देने को वो सही समझने लगी।
एक दिन किसी बात पर वो पति अंशुल पर बिफर पड़ी, सोहा उसकी कोई भी बात सुनना और समझना नहीं चाहती थी, अपनी बात को ही जोर दे कर बोले जा रही थी, उसकी तेज चिल्लाने की आवाज बाहर कमरे में बैठी सुमिता को सुनाई दे रही थी। अपनी प्यारी बहू का यह रूप देख सुमिता उदास मन से कमरे से बाहर निकल कर आंगन में आ कर बैठ गई।
शाम की चाय के बाद सुमिता ने बहू को पास बुलाया और सामान्य सी इधर – उधर की बातें करते हुए, उसके मन को टटोलते हुए, पूछा; कि क्या बात है बेटा क्यों परेशान हो? मुझे बताओ शायद मैं कोई मदद कर सकूं, पर सोहा कुछ न बोली, लेकिन उसका उदास चेहरा देख; सुमिता बैचेन हो,
बोली बेटा; जीवन में कभी परिस्थितियां ऐसी आ जाती हैं, जब अधीर होने से काम नहीं चलता, कभी कुछ नहीं सूझता हो तो मन को शांत रखना होता है। दुःखी होने या दोषारोपण करने से समस्या समाधान नहीं होती।
तू अपने आप को और इस नए रिश्ते को समय दे। कभी आपस में तकरार हो जाए तो उसे बड़ा रूप न लेने देना, प्यार में खट्टी मीठी नोंक झौंक को पल दो पल में सुलझा लो यही तो प्रेम की ताकत होती है।
तू बहू है, पर मेरे दिल ने तुझे बेटी सा मान लिया है, तुझे उदास देख मुझे कैसे चैन मिल सकता है! प्यार से सर पर हाथ फेरते हुए उन्होंने उसे गले लगाते हुए,
अपनी ओर इशारा करते हुए कहा;- मां! से कभी भी मन की बात कह सकती हो, एक बार विश्वास करो, तुम मेरी अपनी और सब तुम्हारे अपने हैं! सासू मां के गले लगते ही वो फ़फ़क कर रो पड़ी,
सुमिता ने छेड़ते हुए कहा, गलतियों पर समझाने के साथ मैं डांट भी सकती हूँ, चलो अब मुंह धुल के पानी पी लो।
सोहा सोचने लगी मैं कितनी बुद्धू थी जो सुनी सुनाई बातों पर विश्वास कर बैठी, काश ऐसी समझने वाली मां जैसी सास हर लड़की को मिले।
स्वरचित – स्मृति गुप्ता