सरोज! अब मेरी भी टिकट बुक करवा दो । ब्याह के पूरे एक महीने पहले आ गई थी । सारे काम बढ़िया से निपट गए , बहू- बेटा भी घूमफिर कर आ गए । ब्याह की थकान भी उतर गई , भई ! अब मत रुकने को कहना ।
चलो ठीक है जीजी ! कल अर्जुन से कहकर टिकट करवा देती हूँ । पर एक बात तो बताओ …. रह जाओ ना जाड़े-जाड़े , यहीं पर । अकेली ही तो हो , ठंड कम हो जाएगी तो चले जाना । वैसे कल अर्जुन के पापा भी कह रहे थे कि जीजी को सर्दी के बाद ही भेजेंगे ।
ये तो तुम दोनों का प्यार और सम्मान है पर अभी ऐसी उम्र ना हुई कि खाट पर बैठ जाऊँ । घर बंद पड़ा है डेढ़ महीने से , फिर आ जाऊँगी । नई बहू आई है । अभी उसे सिखाओ अपने तौर- तरीक़े…..
ठीक है जीजी, जैसी आपकी मर्ज़ी । आपका बहुत सहारा मिला । अर्जुन की बुआ और चाची भी कह रही थी कि सविता जीजी लगती ही नहीं कि तुम्हारी बहन है, ऐसा लगता है कि वो हम सब की बड़ी बहन है और सबसे बड़ी बात कि आपके बताए रिश्ते की भी सबने तारीख़ की है ।
और पाँच/ छह दिन बाद सविता वापस चली गई । पंद्रह दिन में नई बहू के साथ जीवन सामान्य तरीक़े से गुजरने लगा । एक दिन सरोज ने अपनी बड़ी बहन को फ़ोन करके कहा——
जीजी ! अजीब मुसीबत आ गई । पृथा कुछ दवाई खाती है, वो भी छिपकर ….. पहले तो लगा कि वैसे ही दर्द- वर्द की दवा खा रही होगी… पर वह तो तीन टाइम बंधी दवाई खाती है । शक तो इसलिए हो रहा है कि पूछने पर सही बात न बताकर , बहाने बनाने लगती है या दवाई ेलेने की बात से मुकर जाती है ।
आज तो हद कर दी , दवाई लेने अकेली गई । मैंने पूछा तो बोली कि सिरदर्द की दवा लेने जा रही हूँ । मैं कहती रह गई कि घर में है पर बोली कि उसे इसी दवा से आराम मिलता है । क्या फ़ोन करके पृथा के मायके वालों से पूछूँ?
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ये तो सचमुच सोचने वाली बात है सरोज ! पर बहू का विश्वास जीतना बहुत ज़रूरी है वरना वो कभी नहीं बताएगी । और सुन ,परेशानी में उतावली मत हो । समधियों से बात करके केवल संबंध बिगड़ेंगे क्योंकि अगर वे सीधे- सच्चे होते तो पहले ही बात करते .…. सोच- समझकर कदम उठाने की ज़रूरत है । चल फिर बात करूँगी… मंदिर के लिए निकली हूँ घर से ।
सरोज को समझ नहीं आ रहा था कि बहू का विश्वास कैसे जीतूँ? वह तो पूरी कोशिश करती है कि पृथा को किसी भी बात की परेशानी ना हो, वह उसी तरह रहे जैसे अपने मायके में रहती थी । बहुत सोच- विचार के बाद सरोज ने फ़ैसला किया कि आज की घटना का ज़िक्र अर्जुन से नहीं करेगी…. बताने पर वह पृथा से दवा और केमिस्ट की दुकान पर अकेले जाने के बारे में पूछेगा और इस तरह वह बहू पृथा का विश्वास कैसे जीत सकेंगी ।
समय बीतता गया । सरोज बहुत सावधानी से पृथा पर नज़र रखती पर उसने दवा के बारे में उससे कोई बात नहीं पूछी हालाँकि अर्जुन ने अवश्य दो चार बार माँ से कहा—-
मम्मी, रात भी मैंने देखा कि पृथा ने सोने से पहले दवाई खाई । जब मैंने पूछा कि तबीयत तो ठीक है…. दवाई क्यों खा रही हो तो साफ़ मना कर दिया कि कौन सी दवाई… मैं तो पानी पी रही थी । ग़ुस्सा तो बहुत आया पर चुप रहा ।पता नहीं, कहाँ रखती है दवा … ख़ाली पैकेट भी नज़र नहीं आता ।
अरे बेटा…. कई बार मैं भी तेरे पापा से छिपकर दवाई खाती हूँ ।तुम मर्द लोग चैन से जीने कब देते हो ? अगर अपने दर्द की बात बता भी दो…. तब भी यही सुनने को मिलता है कि कोई दिन जाता भी है बिना दर्द के ? इसलिए चुपचाप दवाई खाने में ही भलाई है…. चल बिना वजह शक करने की बीमारी मत पाल ।
बेटे को तो सरोज ने कह दिया पर वह दिन – रात यही सोचती कि अगर बहू को कोई बीमारी थी तो उसके माता-पिता ने धोखे से अपनी बेटी क्यों ब्याह दी ? पर दूसरे ही पल मन को समझाती — अगर शादी के बाद बीमार हो जाती तो क्या करती ? और फिर समाज ही ऐसा है कि जानते- बूझते कौन बीमार लड़की से शादी करता है । क्या वह खुद अपने बेटे से किसी ऐसी लड़की का विवाह होने देती ?
सरोज लाख कोशिश की कि किसी तरह दवाई का ख़ाली पैकेट मिल जाए तो किसी डॉक्टर को दिखाकर कुछ तो बीमारी का सुराग मिले । यहाँ तक कि वह मौक़ा मिलने पर डस्टबीन भी छान डालती ।
लोगों की नज़रों में तो सब बहुत बढ़िया चल रहा था पर सरोज दिन-रात चिंता में घुली जाती थी…इकलौता बेटा, हे ईश्वर! सब ठीक रखना । उन्होंने तो बहू के मायके वालों और बड़ी बहन पर विश्वास करके ही ब्याह कर दिया था वरना लोग तो न जाने कहाँ-कहाँ से और कैसी- कैसी खोजबीन करते हैं । सरोज ने पति से भी इस बारे में ज़्यादा बात नहीं की ।
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एक तो बहन ने रिश्ता बताया था और दूसरे पति बड़ी जल्दी घबरा जाते थे । बस सविता जीजी से कभी-कभी मन की बात कर लेती थी … वो भी इतनी सँभलकर कि जीजी खुद ही अपराध बोध से ग्रस्त ना हो जाएँ ।
पृथा से अपने मन की सभी बात खुलकर करती ताकि पृथा का विश्वास बढ़े और वह सास को हमराज़ बना ले । देखते ही देखते शादी को एक साल गुजर गया । आस- पड़ोस वाले भी कभी सरोज से और कभी पृथा से खुश- खबरी की बात करने लगे । सरोज ने गौर किया कि जब भी पृथा बच्चे की बात सुनती , उसका चेहरा एकदम पीला पड़ जाता और वह तुरंत वहाँ से उठकर चली जाती ।
एक दिन सरोज बहू के बालों में तेल लगा रही थी । तभी पृथा ने कहा—
मम्मी जी! मैं बच्चा नहीं चाहती । आपको कोई आपत्ति तो नहीं?
एक बेहूदी सी बात को अचानक सुनकर सरोज अवाक रह गई पर अपनी ज़ुबान और भावनाओं पर नियंत्रण रखते हुए कहा—
बेटा ! बच्चे तो परिवार को सजा देते हैं । एक स्त्री माँ बनकर पूर्णता प्राप्त करती है पर अभी खेलो-खाओ …. कौन सी जल्दी पड़ी है । हर चीज़ का समय निश्चित है । अच्छा…. इस बार माँ के पास जाएगी ना तो अपने बचपन की कुछ फ़ोटो लेकर आना ..देखूँ तो मेरी बिटिया बचपन में कैसी दिखती थी ।
इस तरह सरोज ने बात को मोड़ दिया । ख़ैर लाख कोशिश करने पर भी सरोज को दवाई से संबंधित ना तो कोई सबूत मिला और ना ही जानकारी । अब सरोज ने सब कुछ भगवान पर छोड़ दिया ।
मम्मी जी! कल मम्मी- पापा आपसे मिलने आ रहे हैं ।
कल ? सब ठीक तो है बेटा ! अभी हफ़्ता पहले ही तो तुम उनसे मिलकर आई हो ….
हाँ, तो मैंने कब कहा कि वो मुझसे मिलने आ रहे हैं । वो तो बस आपसे मिलने आ रहे हैं ।
एक दिन पृथा ने ख़ुशी से चहकते हुए कहा । सरोज की समझ में नहीं आया कि आख़िर समधी उससे मिलने क्यों आ रहे हैं? पृथा की शादी को सवा साल के क़रीब हो गया, आज तक उसे इतना ख़ुश नहीं देखा । पति भी दोस्त के बीमार पिता को देखने शहर से बाहर गए हैं । कहीं बहू की बीमारी के बारे में तो कोई बात करने नहीं आ रहे ? तरह-तरह की आशंकाओं से उनका मन घिर गया । दफ़्तर से आते ही अर्जुन से बोली—-
बेटा ! कल पृथा के मम्मी- पापा आ रहे हैं तो तुम छुट्टी ले लेना ।
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मम्मी-पापा आ रहे हैं पर क्यों ?
ये कैसा सवाल है अर्जुन! तुम्हारे पापा यहाँ नहीं है तो तुम घर पर ही रहना ।
अगले दिन सुबह नौ बजे के क़रीब पृथा के मम्मी-पापा ढेर सारे फल- मिठाइयाँ और उपहार लेकर पहुँच गए । चाय- नाश्ते के बाद पृथा की मम्मी अपनी जगह से उठकर सरोज के पास गई और हाथ जोड़कर कहा—-
हम बड़े भाग्यशाली हैं जो अर्जुन जैसा दामाद मिला । काश ! आप जैसी सास हर बेटी को मिले ।
हम जानते हैं कि पृथा की दवाई आपसे छिपी नहीं रही पर सरोज जी , आपने जिस सहनशीलता और समझदारी से केवल अर्जुन को ही नहीं बल्कि पृथा का मनोबल बनाए रखा वो तो शायद मैं भी नहीं कर पाती । ये रही पृथा की पिछले हफ़्ते की रिपोर्ट एकदम सामान्य और अब उसे दवाई खाने की भी ज़रूरत नहीं ।
देखा मम्मी! मैं कहता था ना कि पृथा कोई दवा खाती है…पर आप मुझे ही कुछ-कुछ कहके समझा देती थी ।
मैं जानती हूँ अर्जुन! पर बहनजी! क्या रिश्ते के समय ये सारी बातें नहीं बतानी चाहिए थी ?
माफ़ कीजिए पर हमारी मजबूरी थी । शुरू में हमने जहाँ भी पृथा की शादी की बात चलाई, बीमारी की बात बताई पर सच जानने पर कोई शादी के लिए तैयार ही नहीं हुआ । उल्टा पृथा को पागल कहकर रिश्ता ठुकरा दिया गया । मेरी बेटी केवल मानसिक बीमारी का शिकार थी ।
तीन साल पहले पृथा और उसकी पक्की सहेली मानसी स्कूल टूर पर गई थी । वहीं किसी लड़के ने मानसी के साथ छेडखानी की तो मानसी ने उसकी शिकायत प्रिंसिपल से और पुलिस से कर दी । उस लड़के को कॉलेज से निकाल दिया गया तथा कुछ दिन वह जेल में भी रहा ।
बस उसने मानसी से बदला लेने का बड़ा घटिया तरीक़ा निकाला । एक दिन शाम के समय मानसी ट्यूशन से लौट रही थी । पाँच/ छह लड़कों ने कुछ सुँघाकर मानसी को ले गए । एक हफ़्ते बाद पुलिस ने मानसी की लाश बरामद की और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार उसका रेप करने के बाद ,
कुछ ज़हर दिया गया था । हमारी पृथा इस घटना से इस कदर सदमे में चली गई कि दो- तीन महीने बाद भी सामान्य नहीं हो पाई फिर हमें काउंसलर के पास जाना पड़ा और उसी की सलाह के अनुसार मनोचिकित्सक के पास । तीन महीने की दवाइयों के बाद पृथा ठीक हो गई तो डॉक्टर ने विवाह की सलाह दी साथ ही
यह भी कहा कि दवाइयाँ थोड़े लंबे समय तक चलेगी । पर हमारे समाज में मानसिक रोगी को पागल करार दे दिया जाता है । ऐसा ही पृथा के साथ हुआ जहाँ भी रिश्ते की बात चलाते तो दवाई चलने की बात सुनकर कोई रिश्ता करने को तैयार ही नहीं होता था । बार-बार रिश्ता ठुकराया जाने से पृथा दुबारा डिप्रेशन में जाने लगी …. जो दवाइयाँ कम हो चुकी थी उनकी डोज़ बढ़ गई ।
आप बताइए बहनजी, क्या करते ? इसलिए आपको कुछ नहीं बताया । ये रही सारी रिपोर्ट, आप चाहे जिस डॉक्टर को दिखा लें । दवाइयों की डोज़ धीरे-धीरे कम करके पूरी तरह बंद हो चुकी हैं ।
सरोज बहन , आपने सास के रुप में पृथा को नया जन्म दिया है । लोग तो केवल झूठे वादे करते हैं , बहू को बेटी बनाने के पर आपने बिना दिखावे , बिना शोर किए बहू को बेटी समझ उसकी “ थू-थू “ होने से बचा लिया ।
उस दिन पृथा के माता-पिता तो कृतज्ञता के भाव लिए चले गए पर सरोज और पृथा के बीच एक अटूट संबंध जुड गया । छोटी से छोटी बात दोनों एक-दूसरे से ऐसे साझा करती मानो अल्हड़ युवतियाँ । आख़िर एक दिन पृथा ने सरोज को वो ख़ुशख़बरी दी , जिसे सुनने के लिए सरोज के कान तरस रहे थे । और जिस दिन पृथा ने दो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया, पूरा घर किलकारियों से गूंज उठा ।
करुणा मलिक
# काश ऐसे समझने वाली सास हर घर में हो