साथ निभाऊंगा प्रिया – ऋतु गुप्ता : Moral Stories in Hindi

तुम अब ज्यादा दुखी मत  हुआ करो प्रिया, मां को तो कुछ ना कुछ कहने की आदत है ही, तुम्हारी अब वह हालत नहीं की ज्यादा सोचो। प्रवीण ने प्रिया को संभालते हुए कहा

तो प्रिया जो अभी तक अपनी मोटी मोटी आंखों में बड़े बड़े आंसुओं को रोक रही थी ,प्रवीण की इन बातों को सुनकर उसके सूखे गालों पर लुढ़क गए ,प्रवीण ने प्रिया के आंसू पौंछते हुए उसे अपने गले लगा लिया।

प्रिया ने कहा, क्या करूं प्रवीण कुछ भी कर लूं पर मां कुछ ना कुछ मेरी गलती ढूंढ ही लेती है ,अब मुझसे और सहा नहीं जाता,गरीब घर की जरूर  हूं पर अपने मां बाप के लिए कुछ गलत नहीं सुन सकती।

मैं तो कितना चाहती हूं कि सब काम करूं पर इस समय मैं थोड़ा काम करके भी थक जाती हूं और तुम्हें तो पता है ना कि डॉक्टर ने मुझे स्ट्रैस और ज्यादा काम का लोड लेने के लिए 3 महीने बिल्कुल सख्त मना किया है। 

प्रवीण ने कहा पिया तुम बिल्कुल फिक्र ना करो,अब मैं  हर घड़ी तुम्हारा साथ निभाऊंगा। मैं समझ चुका हूं कि जितना मां-बाप का सम्मान जरूरी है जिंदगी में ,उतना ही सम्मान पत्नी का भी होना बहुत जरूरी है ।आज शादी के लगभग 7 वर्ष बाद हम दोनों माता-पिता बनने जा रहे हैं ना जाने कितने कष्टों और परेशानियों के बाद हमें यह सुख मिलने जा रहा है ।

तुमको मिले हर संताप, हर कष्ट और हर ताने का मैं जिम्मेदार हूं। मैं कभी भी अपने परिवार के आगे कुछ कह ना सका, कमी मुझ में थी, तुम तो मां बन सकती थी, फिर भी तुमने न जाने कितनी बार बांझ, मनहूस जैसे शब्दों के  कड़वे घूंट भी मेरे लिए पी लिए।

अब जब डॉक्टर के इतने इलाज के बाद हमें यह खुशी मिलने जा रही है तो तुम्हारा इस हालत में खुश रहना बहुत जरूरी है। 

क्या सिर्फ में कहने को पति रह जाऊं, अब चाहे कोई मुझे कितना भी जोरू का गुलाम कह ले, मैं जो सही है उसी का साथ दूंगा और अपने घर आने वाली खुशी का स्वागत हम दोनों अपने हंसते हुए चेहरे के साथ करेंगे।

मैं कितनी ही बार सुनता हूं मां तुम्हें गरीब घर की कहती है ,पर मैं ये भी जानता हूं कि मेरा ननिहाल भी कोई ज्यादा ऊंचे पैसे वाला नहीं रहा, अरे प्रिया आदमी पैसों से बड़ा नहीं होता उसका दिल उसके आदर्श बड़े होने चाहिए ,मैं सब  समझ चुका हूं।

 अब बस तुम अपना ध्यान रखो जिससे कि आने वाला बच्चा स्वस्थ हो। अच्छा चलो अब तुम आराम करो मैं बाजार जाकर तुम्हारे लिए जूस लेकर आता हूं, इतना कहकर प्रवीण बाजार चला गया।

प्रिया भी अब अपना मन कुछ शांत महसूस कर रही थी और कुछ अच्छा पढ़ने  की कोशिश करने लगी। तभी उसकी सास शांति देवी की कड़क आवाज सुनकर वह फिर से सहम गई ।उसकी सास शांति देवी सिर्फ नाम से ही शांति थी अन्यथा तो वह नाम के बिल्कुल विपरीत थी। उन्हें घर में शांति बिल्कुल भी पसंद नहीं थी। वो जब तब प्रिया को लेकर कुछ ना कुछ हंगामा खड़ा किया रखती।

वह प्रिया के कमरे में आई और कहने लगी ज्यादा बड़े बाप की बेटी है, जो आराम फरमा रही है,ये तेरा मायका नहीं जो महारानी जैसा कहे वैसा हो जाए हमने तो तीन-तीन बच्चे को  यूं ही काम करते-करते जन्म दिया ,एक तू है जो सात साल बाद मां बन रही है, उसमें भी महारानी आराम फरमाती रहती है। जितना काम करेगी उतना ही सही होगा।

ये डॉक्टर तो बिल्कुल पागल बना देते हैं उन्हें बिल्कुल भी पता नहीं की इतना आराम भी सही नहीं है। चल अब उठ धीरे-धीरे शाम के खाने की तैयारी अब तुझे ही करनी है, प्रवीण के पापा भी आने वाले होंगे, उन्हें समय से खाना खाने की आदत है, और मुझसे अभी इस उम्र में इतना काम नहीं होता, एक ये  प्रवीण है जो हरदम तेरे आगे पीछे चक्कर लगाता रहता  है,यूं नहीं की तुझे कुछ काम करने को कहे। 

इस पर  प्रिया कहती है मां जी डॉक्टर ने थोड़े कॉम्प्लिकेशन बताए हैं, इसलिए तीन महीने का फुल बेडरेस्ट बहुत जरूरी है, मैं भी बहुत काम करना चाहती हूं पर क्या करूं, जल्दी  ही थक जाती हूं,यह समय तो जैसे तैसे निकालना ही है। 

इस पर शांति देवी कहने लगी यह सब तो इन डॉक्टर्स के चोंचले होते हैं, आराम करना है तो अपने मायके चली जा, यह तेरे पिता का घर नहीं है जो महारानी हर समय आराम फरमाती रहे।

तभी प्रवीण जूस लेकर घर आता है उसने अपनी मां की सारी बात सुन ली उसने अपनी मां से कहा मां आप क्या एक मां होकर भी नहीं समझ सकतीं ,कि यह समय कैसा है, और वह भी जब इतने समय बाद प्रिया मां बनने जा रही है। आप खर्चै की चिंता ना करें, मैं एक आया का इंतजाम कर दूंगा, इससे 

पहले मैंने जब भी आपसे आया के लिए बात की है आपने ही मना किया है, लेकिन आज बहुत ये जरूरी है, और अब आप काम की चिंता ना करें, लेकिन प्रिया कहीं नहीं जाएगी, मैं ही उसका अच्छे से ध्यान रखूंगा। आपका बेटा इतना तो काबिल है कि अपने माता-पिता, पत्नी और परिवार को पाल सके

और एक और बात और मां मायका तो ये आपका भी नहीं है ,आप दोनों का इस घर में एक ही रिश्ता है, बस आप रिश्ते में बड़ी है ……तो आप अपना बड़प्पन दिखाकर यह छोटी-छोटी कटाक्ष दूर कर दें मां ,और घर का माहौल शांत ,सुंदर और प्रेममय बनने दें,  नहीं तो ऐसा ना हो मुझे प्रिया  के साथ अलग घर लेकर रहना पड़े ।

इतना सुनकर शांति देवी पछतावे के आंसू  कह लों या घड़ियाली आंसू,वो बहाने लगीं उन्हें लगा कि कहीं इस बुढ़ापे में ज्यादा जोर जबरदस्ती के चक्कर में बेटा भी ना अलग हो जाए।

बेटे के मुंह से यह बात सुनकर शांति देवी आज समझ चुकी थी कि अब यह सिर्फ जिम्मेदार बेटा ही नहीं है एक जिम्मेदार पति भी बन चुका है।

ऋतु गुप्ता 

खुर्जा बुलन्दशहर 

उतर प्रदेश

#पछतावे के आंसू

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!