*हटना आवरण का* – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

    शादी तय होते ही मम्मी ने समझाना शुरू कर दिया था कि बेटी हर हाल में तुझे अवनीश के साथ अपनी सास से अलग होना है।अवनीश का दूसरा भाई है तो सास उसके पास रह सकती है।

      जब पहली बार मम्मी ने मालिनी को यह समझाया तो उसे बड़ा अजीब सा लगा।उसे लगा था कि जिस घर मे अभी तक पहुँची भी नही,मम्मी पहले से पहले ही घर से अलग हो जाने का पाठ क्यो पढ़ा रही हैं?मालिनी मम्मी की बात सुन तो लेती पर उनकी बात गले नही उतरती।शादी होने में लगभग चार

माह का समय शेष था,मम्मी ने मालिनी के मन मे यह विष भर ही दिया कि उसे हर हालत में अवनीश के साथ अलग घर मे रहना है।मालिनी के दिल मे अप्रत्यक्ष रूप से बैठ गया था कि सास तो बहू के लिये खलनायिका होती है।

        अवनीश और आलोक दोनो भाई अपने अपने जॉब में थे।अवनीश कॉलेज में प्रोफेसर था तो आलोक नगर पालिका में अधिकारी।पिता थे नही,माँ ने ही दोनो की किशोरावस्था से ही परवरिश की।पति के जाने के बाद यशोदा जी ने अध्यापन कार्य करके अपने दोनो बेटो को उनके पैरों पर खड़ा किया।दोनो बेटो का जॉब अच्छा था,अच्छा वेतन मिलता था।अब उन्हें किसी बात की कोई कमी नही रह गयी थी।

     अवनीश और आलोक शादी योग्य हो गये थे।यशोदा अब चाहती थी कि अवनीश की शादी जल्द से जल्द हो जाये, घर मे बहू आयेगी तो उसका अकेलापन भी दूर होगा और उसे आराम भी मिलेगा।अपने ही नगर में चंद्रप्रकाश जी की बिटिया मालिनी उन्हें भा गयी।यशोदा जी मालिनी को देख तुरंत ही अपने गले से सोने की चेन उतार कर

मालिनी के गले मे डाल दी।चंद्र प्रकाश जी के यहां से उठने से पहले तक यशोदा जी ने मालिनी को अपने पास से उठने ही नही दिया।बार बार वे मालिनी पर दुलार उड़ेल रही थी,मानो वह उसी समय से उनकी बहू बन गयी हो।

इस कहानी को भी पढ़ें:

भाभी – सुभद्रा प्रसाद : Moral Stories in Hindi

     अवनीश और मालिनी की शादी सम्पन्न हो गयी।घर मे यशोदा जी सासू माँ के और आलोक ने देवर के रूप में मालिनी को भरपूर सम्मान दिया।मालिनी यूँ तो घर मे मिलने वाले आदर से अभिभूत थी,पर रह रह कर उसे माँ द्वारा दी सीख याद आ जाती,जो मालिनी को सामान्य नही रहने देती।

वह घर मे  माँ द्वारा दिये निर्देशो के कारण असमंजस की अवस्था मे रहती।दिल और दिमाग विपरीत दिशा में कार्य कर रहे थे।इसी ओहपोह में वह अपनी ससुराल के प्रति समर्पण भाव ला ही नही पा रही थी।

        ऐसे ही सोच विचार में एक दिन किचन से अपने रूम में जाते हुए वह फिसल कर गिर पड़ी।हाथ के बल गिरने के कारण हाथ  की हड्डी में बाल आ गया।15 दिन के लिये सीधे हाथ मे प्लास्टर चढ़ गया।इन 15 दिनों में मालिनी को बाथरूम से लेकर खाना तक की पूरी देखभाल यशोदा जी ने अपनी बेटी से भी बढ़कर की।मन की असमंजसता समाप्त हो गयी थी।मालिनी ने देखा कि माँ जिसने जन्म दिया वह तो एक दिन ही मिल कर सहानुभूति जता चली गयी और इधर सासू माँ जिससे अलग होने की शिक्षा माँ द्वारा दी जा रही थी,वही सासू माँ  पूरे 15 दिन उसके पास से हटी तक नही।

       मालिनी अब अपने पूर्ण समर्पण भाव से अपने उस घर को संभाल रही थी,जिस घर को ही तोड़ने की आकांक्षा लेकर वह आयी थी।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित।

*#काश ऐसे समझने वाली सास हर घर मे हो* वाक्य पर आधारित कहानी  

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!