लक्ष्मी मात्र सोलह वर्ष की उम्र में व्याह कर रघु के घर आ गई। गरीब किसान की बेटी थी। मां बापू दूसरों के खेतों पर काम करने जाते, पीछे वह घर का काम एवं छोटे भाई बहनों का ख्याल रखती। ससुराल आकर भी खेलने-खाने की उम्र में घर गृहस्थी के कामों में झोंक दी गई।
कमोवेश यहां भी वही पारिवारिक स्थिति थी। छोटा सा जमीन का टुकड़ा था जिसमें गुजर नहीं होती थी सो सास-ससुर दूसरों के खेतों में काम करने जाते पीछे उसके नाज़ुक कंधों पर घर गृहस्थी की पूरी जिम्मेदारी के साथ छोटी ननदों एवं देवर को सम्हालने की जिम्मेदारी।
समय बीतने के साथ ही वह दो वर्ष में ही कच्ची उम्र में ही एक बेटी की मां भी बन गई ।अब दोहरी जिम्मेदारी बच्चे को भी सम्हालना घर गृहस्थी के साथ -साथ।सब कुछ ठीक चल रहा था कि यकायक उसकी सास सुखिया की तबीयत अचानक बिगड़ गई खेत पर काम करते -करते।
जैसे -तैसे उसे घर लाए सोचा गर्मी में काम करने से ऐसा हुआ होगा, किन्तु जब वह ठीक नहीं हुई तो गांव में काम करने वाले एक झोला छाप डॉक्टर को दिखाया वह दो दिन दवा देता रहा पर कोई आराम नहीं आया तब वह बोला शहर ले जाओ बड़े डाक्टर को दिखाओ तब तक देर हो चुकी थी।।
कैलाश उसका पति किसी से पैसे उधार ला उसे ले जाने की तैयारी कर रहा था तभी उसने दम तोड दिया।अब तो घर में हाहाकार मच गया। छोटे-छोटे बच्चे मां से लिपट रोने लगे। लक्ष्मी की समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। इतनी बड़ी जिम्मेदारी वह कैसे सम्हाले । कभी वह बच्चों को चुप कराती कभी अपनी बेटी को सम्हालती कभी सासु मां के अन्तिम संस्कार के कार्यों में जुट जाती।
उसके पास तो रोने का भी समय नहीं था। एक हूक सी उठती हृदय में रोना चाहती पर जिम्मेदारीयां इतना भी समय नहीं दे रहीं थीं।वह फिरकनी की तरह चुपचाप कर्तव्य निर्वहन में लगी थी।सब रिश्तेदार आए पूर्ण रूप से विधी -विधान से सारा क्रिया कर्म किया गया और पंद्रह दिन
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होते -होते सब विदा हो गए।अब रह गई लक्ष्मी अकेली चार बच्चों की, और पति एवं ससुर की जिम्मेदारी के साथ।जब भी वह परेशान होती सासु मां को याद करती कैसे उनके रहते उसे कभी जिम्मेदारी का अहसास ही नहीं हुआ था सब कुछ वे निपट लेतीं थीं उसे सोचने की कभी जरूरत ही नहीं पड़ी, केवल काम करने से मतलब था। ननदें, देवर उसी के आसपास मंडराते रहते।उसे भाभी मां कह उससे चिपक कर रोने लगते तब उन्हें दिलासा देते -देते कब वह उनकी मां वन गई स्वयं उसे पता ही नहीं चला।
समय चक्र कब किसके लिए रुका है।वह चलना कब बंद करता है।नियती भी भविष्य में न जाने क्या क्या रहस्य छुपाए रखती है जो समय आने पर दर-परत खुलते जाते हैं, वही यहां भी हुआ।
दोनों ननदों एवं देवर की परवरिश में लगी लक्ष्मी जो उनसे उम्र में चार-पांच वर्ष ही बड़ी थी कब उनकी भाभी से मां बन गई उसे एहसास ही नहीं हुआ। उनकी
पढ़ाई -लिखाई पर ध्यान देती समय पर खाना पीना, एवं अन्य आवश्यकताओं का ध्यान रखती। इस बीच वह एक बेटी की मां और बन गई। बहुत ही कठिनाईयों से वह सब कर पा रही थी। गांव में जितना स्कूल था उतनी पढ़ाई कर देवर को शहर पढ़ने उसकी इच्छानुसार भेज दिया।बडी नंद की पढ़ाई पूरी होने पर उसकी शादी हो गई।वह अच्छे घर में गई थी तो इतना सुख पाकर सब भूल गई । मायके का नाम ही नहीं लेती।देवर भी पढ़-लिखकर कर इंजीनियर बन गया और शहर में ही अच्छी नौकरी पर लग गया
और दो साल बाद उसने अपने साथ काम करने वाली लड़की से शादी कर ली।वह भी भूल गया अपने भाई ,बापू को जिन्होंने कितनी मुश्किलों से उसे पढ़ाया था। कैसे जमीन गिरवी रख उसे पैसा भेजा इस आस से कि पढ़कर वह घर के हालात सुधारने में मदद करेगा।
भूल गया अपनी भाभी मां को जिसने हर पल उसकी सुख-सुविधा का ध्यान रखा।
उसे अब घर परिवार से कोई मतलब नहीं था। अपने सुखों में डूबा आराम से रह रहा था। यहां परिवार अभावों में तिल -तिल मर रहा था।
छोटी ननद की गांव में पढ़ाई पूरी होने के बाद उसने आगे पढ़ने की इच्छा जताई तो भाभी ने देवर से कहा भैया सुजाता आगे पढना चाहती है तुम अपने पास रख कर उसे पढ़ा दो उसकी आगे पढ़ने की बहुत इच्छा है और वह पढ़ने में भी बहुत होशियार है।
अरे नहीं भाभी मां, मैं उसे कैसे रख सकता हूँ हमारा खर्च ही मुश्किल से चलता है और कौन उसकी जिम्मेदारी उठाएगा। रश्मि (देवरानी) भी तो नौकरी करती है उसके पास इतना समय कहां है।ऐसा करो आप उसे होस्टल में रख दो।
पर भैया होस्टल में रखने के लिए खर्च कहां से आयेगा , अभी तो हम आपको भेजने के लिए जो पैसों के बदले जमीन गिरवी रखी थी वहीं कर्ज नहीं चुका पाये हैं
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अब तो हमारे पास गिरवी रखने को भी कुछ नहीं बचा है।
भाभी मां क्या करेगी सुजाता ज्यादा पढ़कर उसकी तो अब शादी करवा दो।
भाभी अवाक रह गई उसकी बातें सुनकर। सुजाता भी पास ही बैठी थी सो उसकी आंखों में भी आंसू आ गए। पर लक्ष्मी ने हार नहीं मानी उसने बड़ी ननद को फोन कर सहायता मांगी तो उसने भी टका सा जवाब दे दिया।
नहीं भाभी मां मैं यहां ससुराल में सबके साथ रहती हूं, मेरे घर वालों को यह बात पंसद नहीं आएगी। फिर सुजाता बड़ी हो गई है यहां कुछ ऊंच-नीच हो गई तो। मैं यह जिम्मेदारी नहीं ले सकती आप तो उसकी शादी कर दो अपने घर जाए और आप भी उसकी जिम्मेदारी से मुक्त हो अपने बच्चों का ध्यान रखो।
मंजू तो क्या तुम सब मेरे बच्चे नहीं थे जो ऐसा कह रही हो।
नहीं भाभी मां मेरा वो मतलब नहीं था।
तो क्या मतलब था। क्या सुजाता मेरी बेटी नहीं, जो मैं उसके भले के बारे में सोच कर क्या ग़लत कर रही हूं।आज तो तुमने मेरी परवरिश पर ही सवालिया निशान लगा दिया।
नहीं भाभी मां आप दिल पर न लें मैंने तो बस चलने की ही बात कही थी। अच्छा अब मैं फोन रखती हूं।
लक्ष्मी मन मार कर रह गई।अब वह क्या करे। उनके पास तो कुछ भी नहीं है। आखिर सुजाता की शादी का निर्णय ले परिवार ने उसकी शादी कर दी।उसे भी संपन्न तो नहीं कहेंगे किन्तु अच्छा खासा खाता पीता परिवार मिला। पति बैंक में मैनेजर था एवं ससुर भी अभी नौकरी में थे। एक छोटी ननद और देवर।
सास-ससुर काफी सुलझे विचारों के थे सो उन्हें जब पता चला कि सुजाता आगे पढना चाहती थी किन्तु साधन न होने से नहीं पढ़ पाई तो उन्होंने उसकी पढ़ाई शुरू कराने की सोची। अगले सत्र में ही उसका बेटी के साथ ही कॉलेज में प्रवेश करवा दिया।बी ए करने के बाद उसने प्रतियोगि परीक्षाओं की तैयारी की और उसका चयन प्रोबेशनरी ऑफिसर के पद पर बैंक में हो गया।
सुजाता को मायके की गरीबी की चिन्ता हर समय रहती ।वह अपनी बड़ी बहन एवं भाई की तरह भाभी मां के निभाए उनके प्रति कर्तव्यों को नहीं भूली थी।वह इतनी खुदगर्ज एवं एहसान फरामोश नहीं थी कि भाभी मां के प्यार एवं एहसान को भूल जाती।वह जब-तब मायके आती रहती और किसी न किसी रूप में उनकी मदद करती। भाभी मां की परेशानियों को समझते वह उन्हें हर तरह से मदद करने को तत्पर रहती। आते ही घर का काम सम्हाल लेती कहते हुए भाभी मां मैं आ गई अब आप कुछ आराम कर लो। लक्ष्मी के लाख मना करने पर भी वह उन्हें एक बेटी की तरह प्यार से चुप करा देती।
उसे देख लक्ष्मी सोचती कि पांचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं उसने तो तीनों बच्चों की मां बनकर प्यार दिया था किन्तु बड़ी ननद और देवर कितने खुदगर्ज निकले जिन्होंने पलट कर घर की तरफ मुंह नहीं फेरा कि उनकी भाभी मां जीती है या मर गई। और एक यह सुजाता है जो बेटी से भी बढ़कर अपना फर्ज निभाती है,
हमारे दुख -दर्द को समझती है। पैसों से मदद कर हमारी जमीन छुड़वा दी, जो यही सोचकर गिरवी रखी थी कि देवर बड़ा ऑफिसर बनकर खूब कमायेगा तो छुड़वा लेंगे किन्तु उसने तो पूछा तक नहीं कि उसकी पढ़ाई का खर्च कैसे भेजा। मैं तो उसमें अपने बेटे की छवि देखती थी पर क्या वह मुझे वास्तव में भाभी मां समझ पाया।एक सुजाता है जो छोटी होते हुए भी अपने परिवार की अपनी भाभी मां की कठिनाइयों को समझ
उन्हें उबारने में लगी है।सच ही मेरी काबिल बेटी जो है। ईश्वर उसे हर खुशी से परीपूर्ण रखे।
शिव कुमारी शुक्ला
18-12-24
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित
साप्ताहिक भविष्य****भाभी