कनक बड़े मनोयोग से सारी प्रक्रिया का अवलोकन कर रही थी।
वह बड़ी ही हैरानी से बड़े बड़े हवाई जहाजों को देख कर आश्चर्य चकित हो रही थी। अभी अभी उसके सामने एक एरोप्लेन लैंड किया था। उसने पिता से पूछा क्या वह आगे जाकर देख आए। पिता के हां कहने पर वह थोड़ा आगे बढ़ कर उसे देखने लगी। जब काफी देर हो गई तब सुरेश ने आवाज लगा कर बुलाया,आई पापा कहती हुई वह वापस आने के लिए मुड़ गई। वापस आकर वह बड़ी बड़ी आंखों से देख कर हवाई जहाज का वर्णन करने लगी। हां बेटा , यहां तो हर दो घंटे में हवाई जहाज आते जाते रहते है,
चल अपना बैग उठा, घर के लिए निकले, नहीं तो आखिरी बस भी छूट जाएगी। कनक ने बड़े बेमन से बैग उठाया , पर पिता से वादा लिया कि उसके विद्यालय की छुट्टी वाले दिन उसे फिर से एयरपोर्ट ले कर आएंगे। कनक पूरे रास्ते पिता से इसी बारे में बात करती आई। सुरेश एयरपोर्ट पर सामान लाने ले
जाने का काम करता था। उसे अभी यह नौकरी प्रकाश उसके मित्र ने छ महीने पहले ही दिलवाई थी। यहां पर वह बहुत अच्छे पद पर तो नहीं, पर फिर भी काफी अच्छा कमा रहा था। घर में पत्नी व ये बेटी कनक थी। आज वह जिद करके उसके साथ एयरपोर्ट देखने चली आई थी।
कनक दसवीं क्लास में पढ़ती थी। हमेशा कक्षा में प्रथम आने वाली छात्रा थी। घर में सदा पैसे का अभाव होते हुए भी उसकी पढ़ाई में , तथा लालन-पालन में सुरेश व उसकी पत्नी ने कभी कमी नहीं रखी। पर एयरपोर्ट उसके बालमन पर प्रभाव डाल गया था। और किसी न किसी बहाने से हर छुट्टी में पिता सुरेश के साथ एयरपोर्ट आ जाती ।व एयरपोर्ट पर होने वाले कार्य को बड़े ध्यान लगा कर देखती।
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ऐसे ही वह बारहवीं की परिक्षा के बाद होने वाली छुटि्टयों में काफी दिन बाद फिर से एयरपोर्ट गई। हवाई जहाज टेक आफ के लिए तैयार था। यात्रियों की लाइन तेजी से आगे बढ़ रही थी। तभी घोषणा हुई कि विमान में सवार होने वाले क्रू मेंबर्स आ जाएं और कुछ ही मिनटों में दो तीन पायलट युवतियां अपने सामान के साथ आते हुए दिखे। पायलेट अपनी वर्दी में सुसज्जित आकर्षण का केंद्र बिंदु थे। न जाने कनक को क्या हुआ वह पायलेट को आगे जाकर रोक कर उनसे बात करने लगी।
पायलेट बनने के लिए मुझे क्या करना होगा। उन्होंने ही बताया कि बारहवीं की परिक्षा पास कर वह यह कोर्स कर सकती है। उनसे बात कर जैसे उसे पायलेट बनने का जनून सवार हो गया था। उसे वर्दी में सुसज्जित युवतियां व युवक जैसे अपनी ओर कुछ करने तथा स्वयं को उस वर्दी में देखने को आतुर प्रतीत दिखते।
घर पर भी उसने कहा दिया कि उसे किसी भी हाल में पायलेट ही बनना है। पहले तो मां पिता जी दोनों ही उसके इस फैसले को सुनकर हैरानी से उसका चेहरा देखते रह गए। मां ने कहा कि वह एक लड़की है तथा इसमें बहुत पैसा चाहिए होगा इसका इंतजाम कैसे होगा। पर इसका भी इंतजाम कनक ने कर लिया।
बारहवीं के रिजल्ट आने पर उसे आगे पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति सरकार की तरफ से मिलेगी।उसी छात्रवृत्ति के होने से उसने पायलेट बनने के कालेज में एडमिशन ले लिया। पर अभी भी इसमें आने वाले खर्च का इंतजाम तो बाकी था। पिता सुरेश ने अपने गांव का मकान बेच दिया और कुछ पैसा अपने मित्र से उधार ,
उसे जल्द ही चुकाने की कहकर ले लिया। दो-तीन साल इसी तंगी के चलते आखिर कनक की ट्रेनिंग पूरी हुई। सुरेश का बाल बाल उधार में बिंध गया पर वह संतुष्ट था कि बेटी पायलेट बन गई , जो उसके खानदान में किसी लड़के ने नहीं किया वह बेटी ने कर दिखाया।
आज कनक की पहली फ्लाइट थी। कनक बड़े सारे आश्वासन के बीच भी नर्वस थी। क्या होगा , क्या वह अपने काम को पूरा कर पाएगी या नहीं, उसके साथ काम करने वाले पायलेट मैमबर उसका हौसला बढ़ा रहे थे, वहीं रोहन की बार आकर उसकी हौसला अफजाई कर चुका था। रोहन उससे आगे वाले बैच में था, व उसका अच्छा मित्र था व उसका बहुत ख्याल रखता था। पर वह इसके आगे रोहन के बारे में कुछ तय नहीं कर पायी थी।
और आखिर वह पल आ ही गया जब उसे प्लेन को टेक आफ कराना था। कनक पायलेट की सीट पर बैठ कर सब भूलकर सिर्फ प्लेन पर ही ध्यान फोकस कर एक सक्सेसफुल पायलेट का खिताब हासिल कर लौटी। कुरु मैंबर के बीच हुए तालियों के स्वागत को वह कयी
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दिन तक नहीं भुला पाई , साथ ही वह दो जोड़ी निगाहों को, यानी रोहन की उन प्रशंसात्मक नजरों को कैसे भुला सकती है, जो छोटे, बड़े हर स्टैंड में उसके साथ थी, पर विचित्र बात ये थी कि कभी उसे जताया नहीं।
अभी तो उसे घर जाकर मां पिता जी को उसकी खुशी में शरीक
करना था व उसके लिए पढ़ाई के लिए लिए गए ऋण को चुका कर अपने गांव की जमीन को वापस लाना था। तभी उसे नेपथ्य में जैसे गाना सुनाई दिया, कहीं तो मिलेंगी, ये बहारों की मंजिल।
, * पूनम भटनागर।