अपना सा मुंह लेकर रह जाना – पूजा शर्मा : Moral Stories in Hindi

राधा अपने बेटे को तीन-चार बार फोन मिला चुकी थी, लेकिन उधर से कोई जवाब ही नहीं आ रहा था घंटी जरूर जा रही थी

थोड़ी देर में उसने दोबारा फोन मिलाया तो उधर से राजन की आवाज आई मां आप बार-बार फोन क्यों करती रहती हो मेरी मीटिंग चल रही थी मुझे डिस्टर्ब मत किया करो ऑफिस के समय

लेकिन राजन तू तो फोन करता है ही नहीं है अपने काम से मुझे फुर्सत ही कितनी मिलती है मां बताइए किस लिए फोन किया था बेटा मैं कह रही थी कि तुम्हें देख बहुत दिन हो गए हैं कुछ दिन के लिए मेरे पास आजा बहुत याद आ रही है तेरी तुम्हारे पिता की तबीयत भी अब ठीक नहीं रहती, मां मैं कह तो चुका हूं

जब भी समय मिलेगा तब आ जाऊंगा फिलहाल तो मेरे पास बिल्कुल समय नहीं है वरना मैं घर आ जाता आप भी बार-बार फोन करके मुझे परेशान मत किया करो, मैं आपको शाम को फोन करता हूं कहकर राजन ने फोन काट दिया, अपने बेटे की बात सुनकर राधा अपना सा मुह लेकर रह गई, राधा को नहीं पता था

कि अंदर बैठे उसके पति घनश्याम जी मां बेटे की सारी बातें सुन चुके हैं। राधा अपने आंसुओं को साफ करती हुई अपने पति के पास आई और कहने लगी आज मौसम में कितनी तपन है जी, मेरा तो सारा शरीर ज़्ला जा रहा है , राधा अपना चेहरा अपने आंचल से पोछते हुए बोली, कह तो तुम सही रही हो राधा मौसम में गर्मी तो है

लेकिन तुम एक्टिंग बहुत अच्छी कर लेती हो पर हर बार की तरह मैं तुम्हारे चेहरे से सब जान ही जाता हूं। तुम ए सी में बैठी हो यहां पसीने का क्या काम, बह जाने दो इन आंसुओं को मुझसे कुछ छुपाने की जरूरत नहीं है, मैं जानता हूं तुम्हारे बेटे ने लंदन से आने को मना कर दिया,, 6 साल हो गए हैं उसे देखे हुए

जब उसे हमारी चिंता नहीं है तो हमें भी पुत्र मोह से निकल जाना चाहिए, मेरे लिए तुम हो और तुम्हारे लिए मैं हूं अब तो भगवान से यही प्रार्थना है कि हम दोनों को एक साथ ही अपने पास बुला ले, आगे तो ईश्वर की मर्जी घनश्याम जी भी अपने आंसुओं को चश्मा उतारकर पोछने लगे और राधा जी अपने पति के कंधे पर सर रखकर सिसक सिसक कर रोने लगी।

शायद यही नियति है हमारी। लेकिन पापा आप क्यों भूल गए कि आपका एक बेटा और भी है, उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो उनकी बेटी और दामाद खड़े थे दोनों बच्चों के साथ, आप अब हमारे साथ रहेंगे लेकिन बेटा हम ये घर छोड़कर नहीं जा सकते , क्यों पापा अब आप दोनों की तबीयत भी ठीक नहीं रहती है

मैं आपसे कब से कह रहा हूं लेकिन अब मैं आपकी एक नहीं सुनूंगा रचना ने मेरे माता-पिता की सेवा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी आज वह उनकी चहती बहू बन चुकी है उन्होंने ही हमें आपको ले आने के लिए कहा है और अगर नहीं जाओगे तो वह खुद लेकर चले जाएंगे आप अपने समधी समधन की बात कैसे टालोगे रचना ने भी अपने पति की हां में हां मिलाई

मुकेश सही कह रहे हैं पापा, आपने बचपन से मुझे भी तो बेटे की तरह पाला है क्या मैं आपकी औलाद नहीं हूं, घनश्याम जी और राधा जी से कुछ कहते नहीं बन रहा था उनकी आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने अपने बच्चों को गले लगा लिया

पूजा शर्मा स्वरचित

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