चलिए ना …
जल्दी तैयार हो जाइए…
पूरे 2 साल बाद जा रहे हैं…
अपने बहू बेटे के घर …
आखिर हमारा पोता जो आया है खुशियां लेकर …
मुझे तो बहुत खुशी हो रही है …
इतना दूर रहते हैं सब…
अस्पताल में पहली झलक भी नहीं देख पाई अपने पोते की…
लेकिन अब उसे जी भर के खिलाऊंगी…
राखीजी और उनके पति मनोजजी दोनों ही 70 वर्षीय हैं …
बेटा रोहन बहू के साथ नौकरी वाली जगह पर रहता है …
अभी 2 साल पहले ही उसकी शादी हुई है …
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और वो दोनों पति-पत्नी अपने पुश्तैनी घर में रहते हैं …
उन्हें खबर मिली कि बहू ने बेटे को जन्म दिया है …
पोता हुआ है ….
तो झट से जल्दी-जल्दी तैयारी करने लगी …
ठीक से ताला लगा देना बुढ़िया …
नहीं तो पता चले कि कोई चोरी कर ले जाए …
तुझे अब होश कहां पोते की खुशी में …
नहीं नहीं मैं ठीक से ही लगाऊंगी …
अब जल्दी चलिए ना …
बस ना निकल जायें…
तू तो ऐसे खुश हो रही है… जैसे सब तेरी ही राह देख रहे हैं वहां….
मनोज जी भी मन ही मन बहुत खुश हो रहे थे…
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आप मन ही मन कितने खुश है…
वह मैं ही जानती हूं…
दोनों ही बुड्ढे बुढ़िया किसी तरह इतना लंबा सफर तय कर अपने बहू बेटे के घर आ गए. …
बेटा स्टेशन पर लेने आ गया था….
वह उन्हे घर ले आया …
और बता रोहन हमारा लला कैसा हैं ,,और बहू कैसी है …
दोनों पति-पत्नी पूछ रहे थे….
हां ..
दोनों ठीक हैं…
बहू अकेले सब कैसे देख रही होगी…
मैंने तो कहा ही था ..
तुम लोगों से पहले ही आ जाऊं …
लेकिन तुमने ही कहा ..
नहीं हो जाएगा सब …
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सांवी की मम्मी पहले ही आ गई है मां…
अच्छा तूने तो बताया नहीं …
पिता मनोज बोले …
वह आपसे बात नहीं हो पाई ना पापा बीच में …
इस वजह से बस..
तभी समधन सुधा जी आई …
और दोनों को पानी देने लगी…
लीजिए..
थक गए होंगे …
लंबा सफर था…
पानी पी लीजिए…
उन्होने दोनों को सोफे पर बैठा दिया …
बेटा तुझे बताना चाहिये था कि तेरी सास भी आ चुकी है…
राखी जी फिर से बोली ..
मां बोला ना बताना भूल गया था…
मम्मी तो एक महीने पहले ही आ गई थी…
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कितनी बार बताऊं …
रोहन अबकी बार थोड़ा झल्लाते हुए बोला…
इसलिए तो आपको मना कर दिया था…
राखी जी बेटे की तेज आवाज से सहम गई …
उनका चेहरा उतर गया…
अच्छा ,,जा अब जाकर अपने पोते को देख ले..
राखी जी को उदास देख मनोज जी बोले..
अच्छा जी मैं अपने पोते को तो देख ही लूं …
चाय पी लीजिए …
फिर देख लीजिएगा…
बाहर से आएं है आप दोनों …
थोड़ा हाथ साफ कर लीजिए…
हाथ मुंह धो लीजिए …
ज़रा सेनीटाइज कर देना रोहन बेटा इनके हाथों को …
सुधा जी बोली …
मम्मी करता हूं…
राखी जी और मनोज जी दोनों मुंह दर्शक बने सब देख रहे थे…
दोनों ने चुपचाप हाथ सेनीटाइज किये ..
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जल्दी से हाथ मुंह पोंछकर दोनों लोग उत्सुकता से बहू के कमरे के अंदर जाने लगे…
कहां जा रहे हैं ..??
अभी बिटिया और उसका लाला सो रहा है..
सुधा जी बोली…
तो आप क्या कर रही है इतनी देर से अंदर…
अगर हम नहीं जा सकते तो …
मनोज जी रोष से बोले …
समधी जी…
मैं थोड़ा उनके पास बैठी रहूंगी…
बाबू उठ गया तो देख तो भी लूँगी …
तो जैसे आप बैठेगी वैसे ही उसकी अम्मा भी बैठ सकती है …
वह तो बस इसलिए आप लोग थककर आयें हैं …
थोड़ा आराम कर लीजिए…
बहू की मां का अपने ही बेटे के घर में इतनी ज्यादा दखलअंदाजी देखकर राखी मनोज जी अंदर ही अंदर बहुत ही व्यथित हो रहे थे …
उन्हें ऐसे लग रहा था कि यहां बुलाकर उनका अपमान किया जा रहा है…
सभी ने खाना पीना खाया…
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दोनों असहाय से बने बस यही देखते रहते थे कि कैसे बहू के कमरे में ही खाना लेकर उसकी मां चली गई …
और उसको खिला करके आ गई…
और अभी तक मुझे जाने की इजाजत तक नहीं दी…
उन पर नहीं रहा गया तो दोनों बेशरम बनकर बहू के कमरे में चल ही गए…
हमें आए 4 घंटे होने को आये …
अभी तक हम अपने पोते की शक्ल भी नहीं देख पाए हैं…
आखिर हम भी तो उसके बाबा अम्मा है…
कब से राह देख रहे थे…
इस पल की …
राखी जी अंदर आते ही बड़बड़ायी….
सामने से आते अपने साथ ससुर को देखकर बहू सांवी उठ गई..
और दोनों को नमस्ते किया …
नमस्ते मम्मीजी ..
नमस्ते पापा जी…
नमस्ते बेटा…
आप लोग कब आयें …??
बेटा जैसे ही खबर मिली तुरंत आ गए…
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अरे रोहन इन्हें क्यों परेशान किया …
अगले महीने तो हम जाने ही वाले थे …
तभी वहां पर रहते…
कुछ दिन बिताते …
यार मम्मी थी ही यहां…
वैसे भी ज्यादा लोग होंगे…
इतनी परेशानी होगी मम्मी को ….
नहीं री मैं सब काम करवा लूंगी…
अपने लाल की मालिश भी कर दिया करूंगी….
तेरे लिए लड्डू भी तो बनाने हैं …
थोड़े तो लड्डू बना लाई हूं …
लेकिन इतने रख नहीं पाती …
इसलिए बाकी यहां बना दूंगी …
नहीं नहीं मम्मी जी…
मेरी मां ने बना दिए हैं…
आप रहने दीजिए…
आपको जितने दिन रहना आराम से रह सकती हैं …
और मालिश वाली भी लगा दी है…
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अभी तो …
क्या ही आप कुछ करेंगे…
जैसी तेरी मर्जी बहू…
ला अपनी गोद में लेकर देख तो लूं बिटवा को …
हाय रे …
यह तो बिल्कुल अपने बाबा पर गया है….
राखी जी बोली…
किसने कहा बाबा पर गया है …
यह तो बिल्कुल मेरी बेटी पर गया है…
देखो मेरी बेटी की शक्ल भी मुझ पर ही है …
सुधा जी तपाक से बोली….
राखीजी पोते को मनोज जी के हाथों में दे रही थी …
कि तभी उनके हाथ से समधन सुधाजी ने बेटे को ले लिया….
ला इसको दूध पिला देती हूं…
क्यों बहू अपना दूध नहीं पिला रही …??
राखीजी बोली…
मैं कह रही थी रोहन ,,मम्मी पापा को मत बुलाओ….
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यह आएंगे तो हर चीज में कुछ ना कुछ नुक्श निकालेंगे…
यह मत करो…
ऐसा क्यों नहीं किया …
वैसा क्यों नहीं किया …
अभी मेरी डिलीवरी हुई है…
मुझे शांति चाहिए …
झल्लाते हुए बहू सांवी बोली….
अभी उतरना शुरू नहीं हुआ है बिटिया को…
वैसे भी आजकल सभी डब्बे वाला पिला रहे हैं…
कौन अपना पिलाता है…
वह जमाने चले गए…
सुधा जी बोली…
बेचारे मनोज जी अपना हाथ आगे करके ही रह गए ….
दो-तीन दिन गुजर गए…
शायद उन्होंने एक या दो बार ही पोते को खिलाया हो…
एक एक पल काटने को दौड़ रहा था उन्हे …
मेहमानों की तरह खाना दे दिया जाता…
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खा लेते…
वह तो अपना घर समझ कर बच्चों पर प्यार लुटाने , बहू की सेवा करने आई थी…
यहां पर तो दोनों पति-पत्नी को ऐसा लग रहा था…
जैसे उनका अपमान किया जा रहा है…
वह बार-बार रोहन की तरफ देखते …
कि शायद रोहन कुछ कहे…
लेकिन रोहन भी उनको देखकर के अपनी आंखें नीचे कर लेता….
उन्हे महसूस हो गया था कि यहां पर अब उनका कोई हक नहीं रहा …
पांचवें दिन दोनों खुद ही बोले…
अच्छा बेटा…
हम लोग चलते हैं…
बहुत रह लिए…
तुम लोग परेशान ही हो रहे ….
मेहमानों की तरह खा रहे हैं , पी रहे हैं ,,और सो रहे हैं…
इससे अच्छे तो अपने घर पर थे …
कम से कम अपने हाथ-पांव चलाते थे…
ठीक है बेटा चलते हैं…
लाल का ख्याल रखना…
बहू तो चहक उठी ….
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और वो मुस्करा दी-डॉक्टर संगीता अग्रवाल । Moral stories in hindi
खुशी बढ़ गई …
पर अगले ही पल सुधा जी बोली…
बेटा मैंने गलती कर दी …
मैं भी बहुत दिन रह ली…
अच्छा चलती हूं …
अपने बेटे का ख्याल रखना बिटिया…
सुधा जी के मुंह से ऐसा सुनकर राखी जी एक पल को तो विश्वास नहीं कर पाई …
मन ही मन वो दुखी भी हो रही थी…
कि हम भी चले जाएंगे …
इसकी मां भी चली जाएगी…
तो कैसे बिचारी अकेले रहेगी बहू…
लेकिन मनोज जी का फैसला अटल था …
सुधा जी अपना बैग लेकर चलने लगी …
अरे मां …
कहां जा रही हो …??
सांवी बोली….
आप ही के सहारे तो मैं रह रही थी…
अब मैं बेटा तेरा सहारा नहीं हूं…
तेरा सहारा वह सामने …
है तेरे साथ ससुर …
बहुत अपमान कर लिया तूने इतने दिन इनका…
इतने दिन से मैं देख रही हूं…
मैं बस यही देखना चाहती थी….
कि तू अपने आप ,अपने मुंह से बोले ….
अपने घर को संभाल …
अपने साथ ससुर की सेवा कर …
असली घर तेरा यही है…
गलती कर दी मैंने …
यहां आ गई ……
जरूरत हो तो जरूर मुझे बता…
लेकिन अभी मैं देख रही हूं…
तेरा पूरा परिवार तेरे साथ है..
सांवी तो आश्चर्यचकित रह गई…
कि मां ऐसा क्यों बोल रही है …
अच्छा मम्मी जी….
मैं भी आपके साथ गांव चलती हूं…
हां …
हां..
तुमने ठीक कहा …
वहां चल के अपने बेटे का नामकरण संस्कार भी तो करवाना है….
और अपने गांव से अच्छा और क्या हो सकता है…
रोहन बोला …
यह बात सही रही…
मनोज जी के चेहरे की खुशी बढ़ गई…
अब तो बहुत बड़ी दावत दूंगा …
आखिर मेरा पोता आया है…
राखी जी की आंखों में भी आंसू भर आए थे …
उन्होंने नहीं सोचा था …
कि जाते-जाते वह इतनी खुशियां अपने साथ लेकर जाएंगे …
देर से ही सही सब की आंखें खुल गई थी…
मौलिक अप्रकाशित स्वरचित
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा