सरला जी बहुत गुस्से में घर आई।
वो अपनी बेटी के घर से आ रही थी। और बहुत गुस्से में लग रही थी। उनकी बहु शिखा ने उन्हे पानी दिया और उनसे पूछा क्या हुआ मम्मी जी आप इतना गुस्से मे क्यों है। सरला जी गुस्से मे ही बोली दिया के घर से आ रही हूँ। (दिया शिखा की ननद और सरला जी की बेटी) शिखा की सास और ननद दोनों हि एक साथ बाहर चली गई
वो भी तीन- चार दिनों के लिए। और दिया को अकेले छोड़ गई है इतना बड़ा घर, पूरे घर का काम और उसका छः माह का छोटा बच्चा भी है। कैसे संभालेगी वो अकेली ये सब । दिया की सास को थोड़ा तो सोचना चाहिए। कि कैसे संभालेगी वो ये सब। आने दो मै बात करूँगी उनसे ये बोल सरला जी अपने कमरे मे चली गई।
सरला जी की ये बाते सुन शिखा को पुराने दिन याद आ गये। जब उसकी शादी की वो दुसरी दीपावली थी। और शिखा की सास सरला जी दीपावली के ठीक पंद्रह दिन पहले बहुत बीमार हो गई थी और उन्हें भर्ती करने की नौबत आ गई थी। बेचारी शिखा उसने पुरा घर संभाल।
घर का काम , हॉस्पिटल जाना , हॉस्पिटल का टिफीन, दीपावली का काम और उस पर अपनी छोटी सी नौ माह की अपनी बेटी को भी संभलना । शिखा ने सब कुछ बहुत ही अच्छे से किया। वो यही सोच रही थी। की मम्मी जी जब घर आयेगी तो बड़ी खुश हो जायेगी। यही सोच कर वो काम के साथ ज्यादा से ज्यादा दीपावली की तैयारी भी करने लगी।
बस मिठाई ही बनाना बाकी रह गया था। और दीपावली के दो दिन पहले ही सरला जी की छुट्टी हुई। शिखा सरला जी के ठीक होकर घर आने से बहुत खुश थी। पर सरला जी जब घर आई । तो आते ही शिखा पर बरस पड़ी ये क्या है शिखा तुमने अब तक दीपावली की कोई मिठाई नही बनाई। हम तुम्हारे बराबर थे तो पूरा घर संभाल लेते थे
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और दीपावली पर इतनी मिठाई बनाते थे क घर मे तो खाते ही पूरे मोहल्ले मे भी बांटते थे और तुम आज के जमाने की लड़कियों से कुछ नहीं होता। शिखा ने सरला जी को बहुत समझाया। कि मम्मी जी आपकी तबियत ठीक नहीं थी। मै घर पर अकेली थी। घर की साफ़ सफाई, घर का काम और उस पर तन्वी (शिखा की बेटी) को भी संभलना था
इसलिए मैं दीपावली की कोई मिठाई नही बना पाई। पर सरला जी ने शिखा की एक नही सुनी और उसे बहुत कुछ सुना दिया। बेचारी शिखा को रोना आ गया था। और आज जब उनकी बेटी पर थोड़ा सा काम का बोझ पड़ा तो वो कितने गुस्से मे आ गई। ये सोच रही शिखा की आँखे भर आई। तभी शिखा को उसके पति नलिन ने पुकारा ।
नलिन ने शिखा से पूछा शिखा माँ को क्या हुआ हैं। शिखा ने पूरी बात बताई और उसने अपनी बात भी अपने पति को बताई। नलिन ने उसे समझाया शिखा वो उनकी बेटी है उन्हे उसके लिए बुरा तो लगेगा। और बेटी बेटी होती है और बहु कितना भी कर ले वो बहु नही बन सकती है
शिखा और नलिन की सारी बाते सरला जी ने भी सुन ली थी। उनकी ये बाते सुन सरला जी को अपनी गलती का एहसास हुआ। और आगे से बहु और बेटी को एक जैसा रखने का निर्णय लिया। उन्होंने जाकर शिखा को गले लगा लिया।
यह सिर्फ लेखक के विचार है। इसका किसी कि जिंदगी या विचारों से कोई लेना देना नही है और ये मेरी ओरिजिनल रचना है।
विकंज इन्दोरिया