वह मेरी भाभी थी।जबसे भैया उन्हे ब्याह कर के लाए, तब से वह परिवार के लिए समर्पित ही रही।मै चंडीगढ़ में नौकरी कर रहा था एक साल से ।सबकुछ ठीक चल रहा था कि आज भैया ने फोन किया ” तुम्हारी भाभी नहीं रही “।मेरी पत्नी निशा ने तुरंत चलने की तैयारी करने के लिए कहा ।आखिर कैसे नहीं जाता ।वह मेरी भाभी से बढ़कर माँ के समान थी।बचपन में हमने अपने माता-पिता को एक दुर्घटना में खो दिया था ।तब मामा मामी ने हमें अपनाया था।मामा तो फिर भी बहुत अच्छे थे।
लेकिन मामी कभी कभी उग्र हो उठती थी ।यह बात हम दोनों भाई अच्छी तरह समझ रहे थे ।खैर, किसी तरह भैया ने टयूशन करके अपनी शिक्षा पूरी की।और फिर नौकरी के तलाश में लग गये ।मै भैया से दस साल छोटा था।बीच में एक बहन थी जो माता पिता के साथ ही चली गई दुनिया से ।फिर भैया की नौकरी लग गई एक अच्छी कम्पनी में ।दिल्ली में ।मै भैया के साथ ही रहा।नौकरी लग जाने के बाद कन्या पक्ष दौड़ लगाने लगे।और फिर एक अच्छी, सुन्दर, सुशील कन्या से उनका विवाह हो गया ।
मामा ही सबकुछ निभाते रहे ।दहेज न लेने के कारण मामी थोड़ा नाराज हो गई ।लेकिन मामा जी ने दिलासा दिया था कि तुम परवाह मत करो ।शादी निबट गयी।भैया ने भाभी को कहा ” यह राजू मेरा भाई नहीं बल्कि बेटा है, और तुम इसकी माँ हो”इस बात का खयाल रखना ।और फिर भाभी मेरी माँ ही बन गई थी ।सुबह मुझे उठाकर नाशता देना, नहाने का प्रबंध करना, मेरे कपड़े धोना, इस्तरी करना, भोजन की तैयारी, और मेरे पढ़ाई के दौरान समय समय पर काफी बना कर देते रहना उनकी रोज की ड्यूटी हो गई थी ।
भैया ने एक और शर्त रख दी थी कि हमारी कोई संतान नहीं होगी ।यह राजू ही हमारा बेटा है ।कितनी कड़ी सजा दी थी भाभी को मेरे भैया ने ।अभी भी सोचता था ” क्या उनका मन नहीं करता होगा अपने संतान का।वह तो बगैर जन्म दिए ही माँ बन गई थी ।फिर पढ़ाई खत्म हुई तो मेरी भी नौकरी लग गयी ।भाभी ने ही अपनी चचेरी बहन का विवाह मुझसे करा दिया ।मेरी पत्नी निशा भी बहुत अच्छे स्वभाव की थी।वह जानती थी कि भाभी ने एक माँ का फर्ज निभाया है हमारे साथ ।और मैंने भी समझा दिया था
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कि तुम कभी उनका अनादर नहीं करोगी ।भाभी का त्याग, और उनका हमारे प्रति फर्ज, इसकी कीमत हम कभी नहीं चुका सकते हैं ।लेकिन आदर सम्मान में कमी नहीं होने देंगे ।भैया को कोई बाल बच्चा नहीं हुआ ।मै दो बच्चों का पिता बन गया था ।दोनों बच्चों के समय भाभी ही आकर निशा की देखभाल की थी।बच्चा साल भर का हो गया तब भाभी लौटी थी ।तबतक भैया अपने लिए खुद ही बनाते ,खाते ।फिर भैया रिटायर हो गये थे तो मैंने बहुत कहा कि हमारे साथ आकर रहें ।लेकिन उनहोंने साफ मना कर दिया ”
नहीं छोटे,अभी तो मेरे हाथ पांव चल रहें हैं, गांव में ही थोड़ी सी जमीन ले रखी है, दो कमरे डाल देंगे ।बस अपना गुजारा हो जायेगा ।पैन्शन के पैसे आते रहेंगे ।खाने को दो आदमी के लिए बहुत है।”जब हाथ पांव नहीं चलेंगे तब सोचेगें ।मै निरूत्तर हो गया ।जाकर एक बार देख आया भैया की गृहस्थी ।दोनों ठीक ठाक और खुश थे।मुझे संतुष्टि हो गई ।मै फिर अपनी दिन चर्या, और बच्चों की पढ़ाई में लग गया ।दिन सरपट भाग रहा था ।रोज भैया, भाभी से फोन पर बात हो जाती ।लगता चलो ठीक है ।जिसमें उन्हे खुशी मिलती रहे ।
फिर मै अपने आफिस के काम में इतना व्यस्त हो गया कि एक महीने तक ठीक से बात नहीं कर पाया उनसे ।एकदिन सब्जी लाने बाजार गया तो रामदीन काका मिल गये ।वे भैया के पास ही रहते थे ।कभी कुछ घरेलू मदद कर दिया करते और उनही के बरामदे में सो जाते ।उनके भी कोई परिवार नहीं था ।अकेले थे।तो भैया भाभी उनका खयाल रखते थे ।राम दीन काका ने ही बताया कि भाभी आजकल बीमार रहने लगी है।रोज रात को बुखार लग जाता है ।सुबह ठीक होकर घर का काम काज निबटाया करती है ।
मै दूसरे ही दिन निशा के साथ वहां पहुंचा ।भाभी बिस्तर पर लेटी हुई थी ।भैया खाना बना रहे थे ।फिर निशा ने भोजन की तैयारी कर ली ।जबरदस्ती दो दिन के बाद भैया, भाभी को लेकर शहर आ गया ।मै और निशा दौड़ धूप करके उनको अस्पताल में भर्ती कराया ।डाक्टर ने फेफड़े के कैंसर के बारे मे बताया ।मेरा तो दिमाग ही सुन्न हो गया ।पंद्रह दिन अस्पताल में रही भाभी।फिर उनकी छुट्टी हो गई ।उनको घर ले आये ।निशा ने भी खूब सेवा की।फिर भाभी रटने लगी गांव लौट जाने के लिए ।
मैंने बहुत हाँथ पाँव जोड़े ” गांव में कौन आपको देखेगा, अब मै जाने नहीं दूंगा आपको” लेकिन भाभी जिद पर आ गई ।” अभी मै बिलकुल ठीक हो गई हूँ, गांव की हवा पानी मुझे बहुत अच्छी लगती है ।फिर आपलोग तो हैं ही ।जब मन करेगा आ जायेंगे ।” भैया भाभी को लेकर वापस चले गए ।मै बहुत उदास हो गया ।भाभी सेवा नहीं लेना चाहती थी किसी की।यह उनका स्वभाव में ही था।पन्द्रह दिन बीत गए ।और आज अचानक भैया का फोन आया ” भाभी नहीं रही ” मै और निशा बच्चों के साथ पहुँचे ।
भैया सिर पकड़ कर बैठे हुए थे ।भाभी को सजाया जा रहा था।गांव की औरतें उनसे बहुत स्नेह करतीं थी।वह थी ही ऐसी ।सब पर अपना प्यार लुटाने वाली, सबके काम आने वाली ।सारी तैयारी हो गई ।बहुत सुन्दर लग रहीं थी वह।सुन्दरता तो चेहरे के साथ उनके हृदय में भी भरी हुई थी ।अपना जीवन उनहोंने हमपर न्योछावर कर दिया था ।जिसे हम कभी नहीं चुका सकते थे ।मेरे देखभाल के चलते कभी माँ नहीं बनी।हमें ही बेटा समझ कर ममता लुटाती रही ।मै भैया के सीने से लगकर बहुत रोया ।
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कैसे उनको सन्तोष देता।भैया ने ही बताया था कि कैन्सर का आखिरी स्टेज था।भाभी इसलिए गांव चली गई थी ।अपना अंतिम समय शान्ति पूर्वक बिताना चाहती थी ।वह जानती थी कि मुझे उनकी मौत बर्दाश्त नहीं होगी ।कितनी अच्छी थी मेरी प्यारी भाभी ।अग्नी के हवाले उनको समर्पित कर दिया गया ।अब गांव में कौन था अपना।मै भैया को लेकर लौट आया ।मैंने और निशा ने सोच लिया है भैया को किसी बात की दिक्कत नहीं होने दूँगा ।गाड़ी अपनी रफ्तार से भाग रही है, अपनी राह पर।बहुत याद आओगी भाभी ।जब तक जान है तबतक ।—।
उमा वर्मा, नोएडा ।स्वरचित, मौलिक ।