सबका समय एक सा नहीं होता – मनीषा सिंह : Moral Stories in Hindi

“ऐ—- तुम जानते नहीं— मैं किसका बेटा हूं”! अगर उन्हें पता चला कि तू बड़ा इस क्लास में इतराते फिरता है— तो फिर तेरी खैर नहीं•••••• ! विकास सारांश को धमकाते हुए बोला  ।

 “मैं तुम्हारे पापा को नहीं जानता••• वैसे वह जो कोई भी हो मैंने कुछ किया ही नहीं तो फिर मुझे क्यों सजा देंगे•••••? “बहुत चलने लगी है तेरी जुबान लगता है कुछ करना पड़ेगा”•••••! विकास सारांश के कॉलर को पकड़ते हुए बोला । सारांश के दोस्तों में से कोई एक जल्दी से जाकर मास्टर जी को बुलाता है ।

“अरे छोड़ो क्यों मारपीट कर रहे हो तुम दोनों—? मास्टर जी को देखते ही विकास “मास्टर जी आप बगल हो जाइए•••• आज इसकी गर्मी हटा देता हूं•••• ‘ चुप करो विकास—-! तुम्हें पता है ना स्कूल में लड़ाई करने की सजा क्या होती है—-?  सजा के बारे में ना बताएं तो बेहतर होगा दिन-रात मेरे पापा सजा देने का काम करते हैं यह आप भी भली-भांति जानते हैं मास्टर साहब—-!

 विकास•••! “बदतमीजी की हद होती है लंच तक तुम बाहर ही खड़े रहोगे—-! विकास अपनी बेज्जती सहन नहीं कर पा रहा था कि तभी स्कूल के प्रधानाचार्य जी का आगमन हुआ— और सभी बातों से अवगत हो, उन्होंने विकास को वापस अपनी सीट पर ये कहकर बैठ जाने को कहा कि— जाने दीजिए मास्टर साहब बच्चों के बीच ये सब होते रहता है•••• “मास्टर साहब आप जरा मेरे कार्यालय में आइएगा•••••! कहते हुए प्रधानाचार्य जी सारांश को घूरते हुए निकल पड़े और मास्टर साहब भी उनके पीछे-पीछे चल लिए । 

आपको पता है ना विकास किन का बेटा है—-?

“जी सर—!

 फिर आपने उसके लिए सजा क्यों निर्धारित की—–? प्रधानाचार्य जी मास्टर साहब से पूछे ।

 विकास सारांश पर हावी हो रहा था जबकि उस बेचारे की  गलती ये थी कि वह इस स्कूल का मेधावी छात्र है जिसकी वजह से हमारे स्कूल की इज्जत बची है— वरना विकास जैसे बच्चे तो इस स्कूल का नाम ही डूबाएंगे—!मास्टर जी—-! स्कूल की इज्जत तो विकास के पापा से भी बची है— विकास के पापा और जो यहां के नेताजी हैं

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वे दोनों जिगरी दोस्त हैं•••• अगर आप उसके पापा को नाराज करते हैं तो नेताजी नाराज होंगे, और अगर नेताजी नाराज हुए तो समझिए स्कूल मिट्टी में मिल जायेगा••••••! विकास के पापा इस एरिया के  इंस्पेक्टर हैं जिनसे हमें भी आए दिन जरूरत पड़ती रहती है—–!

“ठीक है प्रधानाचार्य— जी आगे से ध्यान रखूंगा••••! कहते हुए मास्टर जी वहां से चले गए ।

 “पिताजी•••• उस दो कौड़ी पुजारी के बेटे की  हिम्मत देखिए— की— मास्टर जी से मुझे सजा दिलवाने की हिम्मत  करी– और मास्टर जी—

 मास्टर जी क्या••••?

” मास्टर जी ने तो मुझे सजा दे ही दी थी वो तो धन्यवाद हो प्रधानाचार्य जी का••• जिन्होंने मुझे बैठ जाने को कहा और मास्टर जी को अपने कार्यालय में आने को ।

” बस इतनी सी बात पर गुस्सा है मेरा शेर बच्चा•••••देख अब सब ठीक है ना••• फिर क्यों गुस्सा•••? हंसते हुए इंस्पेक्टर मनोहर विकास को बाहर खेलने को भेज  मूंछों को लपेटते हुए कुछ सोचने लगा••••।

 “साहेब मेरी रिपोर्ट दर्ज करे—–! सुबह से दोपहर होने को आई परंतु आप रिपोर्ट क्यों नहीं लिख रहे—-? 

“साहब नहीं है•••आएंगे तभी हो पाएगा•••  ।जा– चुपचाप बाहर बैठ जब आएंगे तब हम तुझे बुला लेंगे सिपाही नाथूराम फुलवा को डांटते हुए बाहर भिजवा दिया–। फुलवा एक किसान था जो अपनी गुमशुदा बेटी की रिपोर्ट दर्ज कराने पुलिस स्टेशन आया  ।

  बाहर बैठ  का इंतजार करने लगा कि तभी मनोहर का आना होता है जिसको देख फुलवा उसके पीछे-पीछे आने लगा कि तभी नाथूराम दंडे को आगे रखते हुए बोला—-‘अब  इतनी जल्दी क्या है— बे– साहब चाय-वाय लेंगे। तब तक यहीं बैठा रह जब तक हम तुझे बुला न ले•••!

 ठीक है जी—!

 इतनी देर तो लगा ही दी थोड़ी देर और सही सोचते हुए फुलवा वही बेंच पर बैठकर अंदर बुलाने का इंतजार करने लगा ।

 2 घंटे बाद

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 “साहब तुझे अंदर बुला रहे हैं तेरी किस्मत अच्छी है जो उन्होंने तुझे बुलाया— वरना दो-चार दिन और पुलिस स्टेशन के चक्कर काटने होते । नाथूराम मुछे घूमाते हुए बोला । 

” साहब—  बेटी की गुमशुदगी का रपट लिखाने आया हूं— मेरे साथ ये पुजारी जी हैं । पुजारी जी के तरफ इशारा करते हुए फुलवा बोला। आंख फाड़ के मनोहर पुजारी जी को घूरता है फिर

” क्या हुआ•••? थोड़ा विस्तार पूर्वक बताओ ।

 साहब कल मेरी बच्ची झुमकी खेत पर से काम करके आ रही थी की तभी नेताजी के गुंडे झुमकी को उठा ले गए ।

कब की बात है•••?

 जी सरकार कल—

 तो कल क्यों नहीं रिपोर्ट लिखवाई—?

 मुझे पता नहीं था— हम तो उसे यहां-वहां ढूंढ रहे थे– कि हमें आज पुजारी जी ने सारी बात बताई–!

वो अब तक घर नहीं लौटी सरकार रोते हुए पता नहीं किस हाल में होगी मेरी बच्ची••• ।

सरकार मैं साक्षी हूं इस बात का–! पुजारी जी जल्दी से बोल पड़े । कल नहीं बताया आज क्यों–? वो साहब मैं डर गया था– मेरा भी एक छोटा बच्चा है परंतु आज मुझे फुलवा की हालत देखी नहीं गई सो मैंने सच्चाई बता दी । पंडित मोती मिश्रा जी ने बोला। 

आपका बेटा  शांतिनिकेतन में पढता है उसी के पिता तो नहीं–? आंखें बड़ी कर कर मनोहर बोला जी-जी— मैं सारांश का पीता हूं। पुजारी जी बोले तभी एक कांस्टेबल कुछ कपड़े और जेवर लेकर आता है और मनोहर को दिखाता है ।

 अरे ये कपड़े और जेवर तो मेरी झुमकी के हैं साहब—! 

तुम्हें कहां से मिली ये चीजें—? मनोहर कांस्टेबल से पूछा ।

 इस पुजारी के घर से साहब—! 

पर तुम्हें इस पर कैसे शक हुआ•••?” साहब आज जब मैं ड्यूटी पर आ रहा था तो किसी ने मुझे बताया कि पुजारी के घर देर रात तक खुदाई का काम चल रहा था ,तो मुझे शक हुआ फिर मैं सीधे दो-तीन कांस्टेबल को लेकर उसके घर पर पहुंचा जहां खुदाई हुई थी वहीं पर से कपड़े और गहने पड़े थे•••• तो मैं सीधा आपके पास ही आया हूं—!   मेरे घर से••••?  मैं कुछ समझा नहीं । पुजारी जी बोले।

 चल कर देखते हैं ना—नाथू  गाड़ी निकाल पुजारी के घर चलना है  ।

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पर मेरे घर क्यों—? पुजारी जी घबराते हुए बोले ।

वो अभी पता चल जाएगा—! नाथू पुजारी को धक्के से जीप पर बैठाते हुए बोला ।

सभी पुजारी जी के घर पहुंचे मनोहर घर के आंगन में घुसा।

” अरे नाथू चल कुदाली ला—!

 मिट्टी हटाकर देखा तो झुमकी की लाश पड़ी हुई थी। अब तो पूरे गांव की भीड़ जुट गईं ।

और फुलवा कलेजा पीट-पीट कर रोने लगा ।

पर यह सब कैसे ये लाश मेरे आंगन में कैसे—-? पुजारी जी बेतहाशा होकर बोलने लगे ।

 वही तो हम तुमसे पूछते हैं कि झुमकी की लाश और इसके कपड़े तुम्हारे घर से कैसे मिली—? सरकार मुझे नहीं पता यह सब यहां कैसे—? लगता है ये किसी की साजिश है मुझे फसाने की•••••! फुलवा तु कुछ कहता क्यों नहीं••• पुजारी जी रोने लगे । यह क्या बोलेगा—मैं बताता हूं अब मुझे बात पल्ले पड़ रही है  झुमकी को नेताजी के गुंडों ने उठाया इस बात को कल तुमने फुलवा को क्यों नहीं बताई—? कल तूने झुमकी के साथ दुष्कर्म किया होगा और रात में इसकी लाश अपने आंगन में छुपाई और सुबह तू अपने आपको निर्दोष होने का सबूत पी रहा है कि—-  नेताजी के गुंडे ने झुमकी को उठाया है••••!

नहीं-नहीं सरकार ये झूठ है—! रोते-रोते पुजारी जी की पत्नी लक्ष्मी बोली और उनके साथ सारांश भी था पिताजी ऐसा नहीं कर सकते साहब किसी ने हमें फसाया है–!” अच्छा ये इतने सारे सबूत जो हमें मिलीं  क्या सब के सब झूठे हैं—? मनोहर चिल्लाते हुए बोला ।

  नाथू••• हथकड़ी डाल••• और ले चल साले को थाने वहीं पर घंटी बजाकर पूजा करेगा । फैसला  कोर्ट करेगी—।

कई  दिनों के मशक्कत के बाद कोर्ट ने पुजारी जी को मुजरिम करार देते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई ।

 वाह सरकार—!  क्या योजना बनाई आपने—? 

शशशशश— कोई सुन लेगा— धीरे बोल!

सरकार नेताजी भी बच गए— और विकास के “अपमान” का बदला भी पूरा हो गया—! इसे कहते हैं एक तीर से दो निशाने•••!  नाथूराम और मनोहर दोनों ठहाके लगा हंसने लगे– ।  पर तुझे बड़ी मेहनत करनी पड़ी•• पहले नेताजी के यहां से लाश लाया फिर दफनाया, कपड़े गहने रखें—!हा हा हा हा हा— फिर दोनों हंसने लगे । तुझे तेरे काम के लिए इनाम तो बनता है–!

” सब आपकी कृपा दृष्टि है” सरकार पर एक बात समझ नहीं आई यह झुमकी कैसे मरी—? अरे नेताजी का बेटा शराब के नशे में जब उसके साथ जबरन कर रहा था तब इस खींचातानी में— टेबल पर पड़ी मूर्ति झुमकी के सर पर  गिरी– और  तभी मौत हो गई। हमें सब कुछ पता था और नेताजी के गुंडे ने पुजारी जी को झुमकी को उठते वक्त देख लिया था—यह बात भी हमें पता थी और यह भी पता था की पुजारी जरूर आएगा अपने दोस्त को साथ—!  हमने सारे प्लान करके रखे थे  । और उसे दौरान जब ये लोग यहां घंटों बैठ मेरा इंतजार कर रहे थे तब हम अपने काम को अंजाम दे रहे थे– उस वक्त पुजारी की पत्नी लक्ष्मी फुलवा की पत्नी को संभालने गई थी और बेटा स्कूल में—!

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कहते हुए पुनः ठहाके की गूंज हुई।

 इधर जेल में जब लक्ष्मी पुजारी जी से मिलने आई तो—

 सारांश को बड़ा “पुलिस अधिकारी” बनाना—  तुम सब अब यह गांव छोड़कर अपने भाई के घर चली जाओ ।”मैं निर्दोष हूं” मुझे जरूर न्याय दिलवाना—!कहते हुए पुजारी जी एक ओर लुढ़क गए ।उनका हार्ट अटैक हो चुका था। लक्ष्मी का रोते-रोते बुरा हाल था— ।अंतिम संस्कार कर लक्ष्मी सारांश को लेकर अपने भाई के शहर रहने चली आई ।भाई ने लक्ष्मी की नौकरी किसी कार्यालय में लगा दी जिसमें वह दिन भर पानी पिलाने का काम करती तथा बेटे की पढ़ाई का खर्च स्वयं उठा लिया पति के वचन को निभाने के लिए वह सारांश को प्रोत्साहित करते रहती।

 देखते-देखते 10 साल बीत गए:- भगवान की महिमा या चमत्कार कहिए सारांश यूपीएससी की परीक्षा पास कर अपने ही जिला का जिला कलेक्टर बन गया ।  ज्वाइन करते ही सबसे पहले पंडित मोती मिश्रा का फाइल निकलवाया तथा बहुत ही बारीकी से जांच पड़ताल शुरू हुई।  कांस्टेबल नाथूराम जो कि अब सब इंस्पेक्टर हो चुका था, से सख्ती के साथ पूछताछ के बाद सारी सच्चाई खुलकर सामने आई।  मनोहर जो अब किसी दूसरे शहर में डीएसपी के पद पर कार्यरत था ,सारांश से अपनी गलती के लिए माफी मांगनी चाहि परंतु मनोहर को दोषी करार देकर नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया तथा उम्र कैद की सजा सुनाई गईं। इधर नेताजी के बेटे को झुमकी के मौत के लिए उम्र कैद की सजा दी गई । 

दोस्तों कभी-कभी # अपमान या जिल्लत को इतनी तूल नहीं देनी चाहिए— जिनसे बात बिगड़ जाए। 

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 धन्यवाद ।

 मनीषा सिंह

#अपमान

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