“बहू चाहे कितना भी कर ले.वह बेटी नहीं बन सकती।” – पूजा शर्मा : Moral Stories in Hindi

तुम तो रहने ही दो राघव मुझसे बात मत करो, मम्मी जी की गलती तुम्हें दिखाई ही कहां देती है हर बात पर मुझे ही समझाते रहते हो। जिस दिन से तुम्हारे घर में आई हूं समझौते ही तो करती आई हूं। तुम्हारे जैसे मातृभक्त बेटों की तो शादी ही नहीं होनी चाहिए। मेरी हैसियत तो यहां एक नौकरानी जैसी है बस सुबह से उठकर सब की जी हजूरी में लगी रहूं।

लेकिन सिया मां ने ऐसा भी क्या कह दिया तुम्हें जो इतना घर सर पर उठा लिया? प्लीज राघव इस समय मुझसे कोई बात मत करो मेरा दिमाग खराब हो रहा है मुंह से कुछ उल्टा सीधा निकल जाएगा बिना मतलब बात बढ जाएगी और हमारे बीच में फिर मम्मी जी की वजह से झगड़ा हो जाएगा। अरे सिया जब तक तुम बात नहीं बताओगी मुझे पता कैसे चलेगा आखिर हुआ क्या है?

 मैं मानता हूं सिया मेरी मां कुछ पुराने विचारों की है लेकिन मेरी मां तुमसे बहुत प्यार करती है। कपड़ों पर सिलाई कर करके मेरी मां ने मुझे और दीदी को पाला है। मेरे पिता हवलदार ही तो थे जिनकी पेंशन थोड़ी बहुत ही आती थी। मां की दिन रात की मेहनत की वजह से ही मैं आज इंजीनियर बन पाया ओफ्फो फिर तुम्हारा वही माँ पुराण शुरू हो गया मुझे नहीं सुननी कोई बात, आपकी कमाई पर मेरा भी पूरा हक है क्या मैं अपनी मर्जी से पैसे नहीं खर्च कर सकती? मम्मी जी को उससे कोई मतलब नहीं होना चाहिए। मैंने आज पिज़्ज़ा ऑर्डर करके मंगाया था मेरा पिज़्ज़ा खाने का बहुत मन था। मुझे लौकी के कोफ्ते नहीं खाने थे।

 कल भी वही हुआ था मेरा मन दाल रोटी खाने का नहीं था इसीलिए चाऊमीन मंगाई थी। लेकिन उन्हें तो मेरे खाने पीने से भी परेशानी है हर चीज पर पाबंदी लगाती रहती हैं। अभी छुट्टियों में ही दीदी रहने आई थी तो उन्हें बेसन के लड्डू खस्ता कचोरी चिप्स पापड़ बनाकर दिए थे तो उसमें खर्चा नहीं होता क्या?

 1 किलो घी का पैकेट यूं ही खत्म हो गया और जितने दिन और यहां पर रहती है ं अलग-अलग तरह के पकवान बनाए जाते हैं। बनाना क्या बस आर्डर दिए जाते हैं बनाने वाली तो है ना घर में ,अपनी बेटी आ जाए तो पैसा पानी की तरह बहाया जाएगा। उनके बच्चों पर और उन पर जो खर्च करती हैं अभी क्या फालतू के नहीं होते? दुनिया भर में दिखाने के लिए यूं तो मेरी तारीफ करती रहेगी। मेरी बहू लाखों में एक है। 

लेकिन मैं जानती हूं कितना प्यार करती है वो मुझे सब दिखावा है बस। बहु कितना भी कर ले कभी बेटी नहीं हो सकती।बस करो सिया कितना बोले जा रही हो तुम।

इस कहानी को भी पढ़ें:

गॉठ – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral Stories in Hindi

 मां तुम्हें बाहर की चीज खाने के लिए इसलिए मना करती है क्योंकि तुम्हारे पेट में पिछले महीने इंफेक्शन हो गया था? तुम्हें याद नहीं डॉक्टर ने भी तुम्हें मना किया थाृ, माना बाहर का खाना खाने का मन करता है लेकिन यह सब चीज कभी-कभी ही अच्छी लगती हैं घर में बना हुआ पौष्टिक खाना ही खाना चाहिए।

 मेरी मां ने एक-एक पैसा करके जोड़ा है तब जाकर हमें पढ़ाया है इसलिए वह पैसे की कीमत पहचानती हैं हां वह कंजूस है थोड़ी सी क्योंकि पापा के न रहने पर हमने बहुत बुरे दिन भी देखे हैं। तुम खाना बाहर से मंगाती हो तो जो घर का खाना बना हुआ है सब वेस्ट ही तो जाता है। और रही दीदी की बात तुम क्यों भूल जाती हो,,

दीदी इस घर की बेटी हैं उनका भी यहां पूरा हक है और फिर ससुराल में खाली हाथ तो नहीं भेजा जाता लड़कियों को यह तो पुरानी रीत है। तुम्हारी मम्मी भी तो तुम्हें तुम्हारी पसंद की।हर चीज देती हैं। और दीदी हमारे ऊपर कम खर्च नहीं करती मेरे लाख मना करने के बाद भी तुम्हें कितनी सुंदर साड़ी दिलवाई थी और मेरे लिए भी रेडीमेड कपड़े लेकर आती हैं। यह सब बातें क्यों भूल जाती हो तुम?

 इतनी बड़ी बहस से माहौल तो खराब हो ही चुका था दोनों मुंह फेर कर लेट जाते हैं। आधी रात के समय

सिया के पेट में बहुत तेज दर्द उठ जाता है। और उसे अस्पताल में ले जाना पड़ जाता है। पेट में इंफेक्शन बढ़ जो गया था। पेट के इन्फेक्शन की वजह से ही बुखार भी उतरने का नाम नहीं ले रहा था। नौबत यहां तक आ गई थी कि सिया तीन दिन तक अस्पताल में एडमिट रही थी। इस शहर में मायका होने की वजह से  सिया के मम्मी पापा्भी उसके पास वही आ गए थे।

 रो-रो कर बुरा हाल हो गया था राघव की मां का अपनी बहू के लिए, वे सिया के पास से 1 मिनट के लिए भी हटना नहीं चाहती थी।  उसकी तबीयत 3 दिन में बहुत संभाल चुकी थी और अगले दिन डॉक्टर ने छुट्टी देने को बोल भी दिया था। तभी राघव के सामने सिया की मम्मी ने सििया को डांटते हुए कहा तुम्हें इस तरह पिज़्ज़ा मंगाना नहीं चाहिए था

तुम्हें पता है तुम्हारा ट्रीटमेंट चल रहा था फिर भी तुमने लापरवाही की जिन चीजों को डॉक्टर ने मना किया हुआ है तुम उन्हें क्यों खाती हो? अब तुम छोटी बच्ची नहीं हो। समधन जी तुम्हारी वजह से कितनी परेशान है। कितना प्यार करती हैं तुमसे, अपने बच्चों के सिवा उन्हें दिखता ही क्या है? अगले दिन ही सिया को अस्पताल से छुट्टी मिल गई थी और वह घर आ गई थी। कितना ध्यान रखा था राघव की मम्मी ने उसका।

 तब राघव ने हीं सिया से कहा, तुम्हारी मम्मी ने भी तो तुम्हे बाहर के खाने के लिए डांटकर मना किया था।

 तुम्हें उनकी बातों का तो बुरा नहीं लगा। वही सब तो मेरी मां ने कहा था तुम्हें। जिसका तुम इतना बुरा मान गई थी।, अब भी तो तुम्हारा ध्यान वही रख रही हैं।

 तुम कहती हो बहू कितना भी कर ले बेटी नहीं बन सकती। फिर यही बात तो सास भी कह सकती है कि सास कितना भी कर ले कभी माँ नहीं बन सकती।

इस कहानी को भी पढ़ें:

गुदगुदी – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

 क्या सास को केवल प्यार करने का अधिकार है वह मां की तरह डांट नहीं सकती मेरी मां मुझे डांटती है तो तुम्हें भी तो डांट सकती है? तुम ही बताओ अगर माँ

 को पता चलेगा कि तुम उनके बारे में क्या सोचती हो उन्हें कैसा लगेगा?

 तुम सही कह रहे हो राघव मेरी ही गलती थी मैं ही गलत दिशा में सोच रही थी। पता नहीं गुस्से में तुमसे क्या-क्या बोल गई? मुझे माफ कर दो पतिदेव।

 तभी अपनी बहू के लिए मालती जी सूप लेकर आ गई और सिया से बोली, देखो बहू अगर अब तुमने बाहर से चाऊमीन या पिज़्ज़ा मंगाया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा पहले तुम अपने पेट को ठीक कर लो उसके बाद जो मर्जी खाना। ठीक है मम्मी जी अब मैं बाहर से कुछ दिन तक खाना नहीं मंगाऊंगी। मेरी बहू भी ना बिल्कुल पागल है बच्चों की तरह ध्यान रखना पड़ता है इसका कहकर मालती जी ने उसे गले लगा लिया।

 सच ही तो है थोड़ी सी समझदारी से रिश्तों में मिठास और प्यार बना रह सकता है।

 पूजा शर्मा स्वरचित।

 दोस्तों कमेंट करके बताइए मेरी रचना आपको कैसी लगी आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!