गॉठ – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral Stories in Hindi

मधुरिमा की शादी के तीसरे दिन ही उसकी सास रुक्मिणी बाथरूम में गिर गईं तो उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। कमर से नीचे तक पूरा प्लास्टर चढ़ा होने के कारण उन्हें कम से कम तीन महीने का बेड रेस्ट कह दिया गया।

इतना सुनते ही सभी मेहमान जल्दी से जल्दी घर से जाने की तैयारी करने लगे। यहॉ तक सबसे पहले देव की बहन ने जाने की तैयारी कर ली।

देव ने बहन की बहुत मिन्नत की – ” दीदी, आप तो रुक जाइये। मम्मी की ऐसी स्थिति में आप भी चली जायेंगी तो मैं क्या करूॅगा? मधु को अभी कुछ पता नहीं है, अभी उसके पगफेरे की रश्म भी नहीं हुई है।”

” मैं कैसे रुक सकती हूॅ? वैसे तो मैं रिसेप्शन तक रुक जाती लेकिन अब रिसेप्शन तो होगा नहीं , इसलिये रुकने से क्या फायदा? अब मम्मी की जिम्मेदारी तुम लोगों की है, तुम लोग खुद समझ लो कि तुम्हें कैसे क्या करना है?”

देव ने शादी में आई बुआ, मौसी, मामी सबसे रुकने को कहा लेकिन कोई भी एक दिन के लिये भी रुकने को तैयार नहीं हुआ।

देव बहुत परेशान हो गया। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? मधुरिमा ने उसके कंधे पर हाथ रख दिया – ” जब मैं तुम्हारे साथ हूॅ तो तुम किसी बात की चिन्ता मत करो। मम्मी जी के दिन भर के कामों के लिये हम एक मेड रख लेंगे, जो उनके सारे काम कर दिया करेगी।”

” लेकिन एक मेड के भरोसे मम्मी को अकेले कैसे छोड़ सकते हैं?”

” मम्मी जी को अकेले छोड़ने का तो सवाल ही नहीं उठता। मैं और तुम बारी बारी से छुट्टी लेकर मम्मी जी के साथ रहेंगे। अपने अपने ऑफिस में बात कर लेंगे तो कुछ दिन घर से भी काम कर लिया करेंगे।”

” और तुम्हारे पगफेरे की रश्म का क्या होगा?”

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” कोई भी रश्म व्यक्ति से बड़ी नहीं होती। पगफेरे की रश्म मम्मी के ठीक होने के बाद हो जायेगी।”

नई नवेली पत्नी की इस बात ने देव को मुग्ध कर दिया। मधुरिमा ने ही देव से कहा – ” हम दोनों ने शादी के लिये जो छुट्टियॉ ली थीं उसे ऐसे ही घर बैठकर बरबाद मत कीजिये। आप कल से ऑफिस चले जाइये। मैं घर और मम्मी जी को मैं देख लूॅगी।”

मधुरिमा के कामों में कुशलता की कमी अवश्य थी लेकिन प्यार और सम्मान की कोई कमी नहीं थी। वह अधिक से अधिक रुक्मिणी के पास बैठकर उनका मन बहलाने का प्रयत्न करती और उनके खाने पीने का बहुत ख्याल रखती लेकिन जब भी कोई रुक्मिणी से मिलने आता तो वह कहतीं –

” आजकल की लड़कियॉ सेवा करना तो जानती ही नहीं हैं। मेरे ही घर में देखो, सेवा न करनी पड़ी इसलिये मेड रख दी गई। अभी मेरी बेटी आ जाये तो घर भी अच्छी तरह सम्हाल लेगी और मेरी देखभाल भी कर लेगी। मैंने कई बार कहा भी ‌लेकिन देव हर बार मेरी बात टाल देता है। कहता है कि बेटी को अपने घर की जिम्मेदारी सम्हालने दो, आपके लिये हम दोनों पर्याप्त हैं। उसे क्या पता कि बहू कभी बेटी नहीं बन सकती।”

मधुरिमा को सुनकर बहुत बुरा लगता और दुख भी बहुत होता लेकिन उसने यह बात देव को कभी नहीं बताई क्योंकि अभी वह इस घर के लोगों या देव के विषय में अधिक नहीं जानती थी। हो सकता है कि देव उसे ही गलत समझ ले। साथ ही वह इस सच्चाई से भी भली प्रकार से परिचित थी कि ” बहू चाहे कितना भी कर ले.वह बेटी नहीं बन सकती।” वह चुपचाप अपना कर्तव्य करती रही।

पन्द्रह दिन बाद देव ने उससे कहा – ” मधु, तुम सुबह सिर्फ नाश्ता बना दिया करना। मुझे छुट्टी तो नहीं मिली है लेकिन पन्द्रह दिन तक घर से कार्य करने की इजाजत मिल गई है। अब पन्द्रह दिन मैं माॅ की सेवा करूॅगा। इतने दिन के लिये तुम ऑफिस जा सकती हो।”

दूसरे दिन से मधुरिमा ऑफिस जाने लगी। एक हफ्ते बाद दोपहर को मेड ने दरवाजा खोला तो मुहल्ले की शालू आंटी थीं। रुक्मिणी को यह तो मालूम था कि देव घर में है लेकिन उन्हें यह भी पता था कि  वह हेडफोन लगाकर काम करता है। इसलिये उनकी और शालू की बातें सुनने का तो प्रश्न ही नहीं उठता।

वह निश्चिंत होकर आपस में बात करने लगीं। उन्हें पता नहीं था कि देव इस समय खाना खा रहा है और उसे इन दोनों की बातें स्पष्ट सुनाई दे रही हैं। उसे आश्चर्य हुआ कि इस बुरे समय में जब सबने उनकी सेवा से इंकार कर दिया। एक नई बहू ने पूरा घर सम्हाल कर उनकी सेवा की है, यहॉ तक पगफेरे के लिये भी नहीं गई, उस मधुरिमा के लिये मम्मी कह रही हैं – ” अरे, सास की तकलीफ बहुओं को कैसे समझ में आ सकती है? बेटी होती तो उसे प्यार होता, यहॉ तो दिखावे के लिये उल्टा सीधा करके बला टाल दी जाती है।  मैंने कहा भी कि मेरी बिटिया को बुला दो, वह सब कर लेगी लेकिन जानती तो हो कि शादी बाद मॉ की बात सुनी ही नहीं जाती है।”

” जब तुम इतनी तकलीफ में हो तो  खुद फोन करके बिटिया या अपनी बहन को बुला लो। “

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” पता नहीं कि मेरे फ़ोन में क्या हो गया है कि किसी भी रिश्तेदार का फोन लगता ही नहीं। जाने कितने बार देव और बहू से ठीक कराने को कह चुकी हूॅ लेकिन कोई सुनता ही नहीं है। मुझे तो लगता है कि इन लोगों ने जानबूझकर मेरा फोन खराब कर दिया है ताकि मैं किसी से बात न कर सकूॅ।”

” अब ज्यादा मत सोंचो, जैसे तैसे अपने दिन काट लो।” 

देव को कुछ पता नहीं था।‌ उसने मेड को बुलाकर पूॅछा तो उसने बता दिया कि रुक्मिणी हर आने जाने वाले से मधुरिमा के सामने ऐसी बातें करती हैं। 

यह सब सुनने के बाद उसका काम में मन नहीं लगा। इसका मतलब मधुरिमा को सब पता है, उसे कितनी तकलीफ़ होती होगी जब इतना सब करने के बाद भी उसे यह सब सुनना पड़ता होगा।

एक निश्चय करके देव शालू आंटी के जाने के बाद रुक्मिणी के पास आकर बैठ गया – ” मॉ, आप दीदी को बुलाना चाहती हो ना। मैं अभी तुम्हारे सामने ही फोन करता हूॅ।‌ फोन का स्पीकर खुला रहेगा आप सिर्फ चुपचाप सुनती रहना।”

देव ने अपनी बहन को फोन किया और फोन उठाते ही उधर से बहन ने कहा – ” देव, मम्मी मुझे बार बार फोन करके परेशान करती हैं, इसीलिये मैंने उन्हें ब्लॉक कर दिया है। मैंने तुमसे पहले ही कहा था कि मॉ की समस्या तुम लोगों की है, उससे मेरा कोई लेना देना नहीं है।”

” लेकिन दीदी, मम्मी आपको बहुत याद करती हैं। कुछ दिन के लिये आकर उन्हें देख तो जाइये।”

” मुझे आकर गुलामी नहीं करनी है।‌ मैं मायके आती हूॅ तो सिर्फ आराम करने के लिये। यदि वहॉ आकर मुझे ही काम करना पड़े तो मैं अपने घर में ही ठीक हूॅ।” कहकर उसने बिना देव की बात सुने फोन काट दिया।

देव ने रुक्मिणी की ओर देखा और कहा – ” मम्मी सुन लिया ना कि आपकी अपनी बेटी क्या कह रही है? इसी तरह आपके फोन मामी, मौसी , बुआ सबने ब्लाक‌ कर दिया है। यदि विश्वास न हो तो सबको फोन करके आपको सच्चाई सुनवा दूॅ? आपको दुख न हो इसलिये मैंने और मधु ने आपको कुछ नहीं बताया था। यहॉ तक कि आपकी बहन और भाभी भी रुकने को तैयार नहीं हुई थीं। मधु ने सहर्ष आपकी सेवा की लेकिन उसका फल आपने ऐसा दिया उसे। सच ही कहा गया है – “बहू चाहे कितना भी कर ले.वह बेटी नहीं बन सकती।”

कहकर देव तो उठकर अपने कमरे में चला गया लेकिन हतप्रभ बैठी रुक्मिणी समझ गईं कि उन्होंने अपनी मूर्खता से अपने बेटे के मन में ऐसी गॉठ डाल दी है जिसे वह कुछ भी कर ले आसानी से मिटा पाना संभव नहीं है।

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बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर 

#”बहू चाहे कितना भी कर ले.वह बेटी नहीं बन सकती।”

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