मुफ्त की रोटियां खाने सब आ जाते हैं तेरे मायके से क्या धर्मशाला खुला है क्या यहां ।जब देखो तब कोई न कोई आया ही रहता है तेरे घर से शकुन्तला देवी अपनी बहू साधना पर चिल्ला रही थी।घर के ऊपर के हिस्से में शकुन्तला जी की देवरानी रहती है उनकी बेटी नयना सब सुन रही थी
अक्सर घर में शकुन्तला जी ऐसे ही बिना बात के बतंगड़ बनाते रहती थी ।धीरे से ऊपर से आकर साधना से कहने लगी क्या भाभी आप कैसे बर्दाश्त करती हो ताई जी की मनमानियां,आप कुछ जवाब क्यों नहीं देती है । साधना बोली क्या जवाब दूं नयना दी, जवाब दे दो तो सब जगह बहू को बदनाम करती फिरेंगी कि बहू लड़ाका है, बदतमीज है, मुंह चलाती है । फिर भी कुछ तो बोलना चाहिए न ,नयना बोली।
शकुन्तला जी और उनके पति भुवनेश्वर जी की शहर में बड़ी धाक थी । अच्छा पैसा था , रूतबा था । तीन बेटे थे , बड़े बेटे विपुल का विवाह करना था उसके लिए लड़की की तलाश की जा रही थी अभी समय था ।थोड़े गरीब परिवार से लड़की लाना चाहते थे जिससे इनके रूतबे और पैसे से लड़की दबी रहे ।नाम की बड़ी चिंता थी कि बस मेरा नाम हो जाए । इसलिए लोगों से कह रखा था कि हम तो भी बिना दहेज के शादी करेंगे हमारे पास क्या कमी है बस लड़की अच्छी हो ।
अक्सर भुवनेश्वर जी को किसी सामाजिक फंक्शन में या स्कूल के सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि बनाया जाता था ।ऐसे ही किसी स्कूल के सांस्कृतिक प्रोग्राम में भुवनेश्वर जी को सम्मान पत्र देने के लिए मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया । जिसमें स्कूल के दसवीं और बारहवीं कक्षा के विदाई समारोह में फंक्शन था ।उस स्कूल की बारहवीं की छात्रा साधना ने एक नृत्य नाटिका से भुवनेश्वर जी का मन मोह लिया ।और उसको प्रथम स्थान प्राप्त हुआ । भुवनेश्वर जी ने उसे अपने हाथों से सम्मान पत्र और उपहार दिया ।
साधना पहली नजर में ही भुवनेश्वर जी को भा गई। घर में आकर उसका जिक्र शकुन्तला जी से किया तो उन्होंने पता लगाने को कहा किसकी लड़की है कहां रहती है परिवार कैसा है वगैरह-वगैरह। भुवनेश्वर जी के फर्म में काम करने वाले एक बंदे को उस लड़की कि पता लगाने को कहा । पता लगाने पर पता चला कि वो पास के ही एक गांव की है और वहां से शहर में पढ़ने आती है ।दो बहन और एक भाई है । साधना के पिता जी किसी फैक्ट्री में काम करते हैं ।
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भुवनेश्वर जी ने जब साधना के पिता जी से अपने बेटे की शादी के लिए साधना की बात की तो उन्होंने कहा अभी तो बेटी पढ़ रही है जबतक उसकी पढ़ाई पूरी नहीं होगी तब-तब हम शादी नहीं करेंगे भुवनेश्वर जी ने कहा ठीक है इस बेटी ने इंटर कर लिया है ग्रेजुएशन कर लेने दे तब तक हम इंतजार कर लेंगे हमें आपकी बेटी पसंद है ।
ग्रेजुएशन करने के बाद भुवनेश्वर जी ने साधना के पापा से बात की की बेटी ने ग्रेजुएशन कर लिया है और हमारे घर में किसी चीज की कमी नहीं है और अब पढ़ा कर क्या करना है अब शादी के लिए हां कर दें।और शादी हो गई । भुवनेश्वर जी तो ठीक थे लेकिन वो घर से बाहर के कामों में व्यस्त रहते थे
घर की पूरी जिम्मेदारी शकुन्तला जी पर रहती थी ।वो थोड़ी कंजूस और मुंहफट औरत थी , पैसे का बड़ा घमंड था उनको ।घर में सबकुछ था लेकिन उनके हाथ से किसी को कुछ देने के लिए नहीं निकलता था ।वो बेटे की शादी बिना दहेज के बिल्कुल भी नहीं करना चाहती थी । लेकिन भुवनेश्वर जी के आगे उनकी एक न चली क्यों कि भुवनेश्वर जी को समाज में दिखाना था कि वो कितने बड़े परोपकारी है । वैसे भी पैसे वालों के पास किसी की मदद करने का दिल कम ही होता है ।
चूंकि साधना एक छोटे से गांव से थी और देखने सुनने में अच्छी थी तो शकुन्तला जी ने बेटे का विवाह कर लिया था। लेकिन साधना को घर में कोई इज्जत नहीं देता था खास तौर से शकुन्तला जी क्योंकि वो ही दिनभर घर में रहती थी वो बात बात पर साधना को नीचा दिखाती थी आ जो साधना सेव कांट कर खाने बैठी तो शकुन्तला जी चिल्ला पड़ी अरे ये क्या रोज एक सेव लेकर बैठ जाती है खाने को अपने घर में देखा है कभी सेव । साधना शकुन्तला जी की बात सुनकर तिलमिला कर रह जाती लेकिन कुछ बोलती न ।
इसी तरह बात बात पर साधना को ताने देती शकुन्तला जी।आज साधना के छोटे भाई का इंटर का इम्तिहान था और उसका सेंटर शहर में पड़ा था उसने सोचा क्यों न साधना दीदी के घर पर रहकर पेपर दे दूं।आज जब साधना का भाई एक पेपर देकर दूसरे पेपर देने के लिए एक दिन को साधना के घर रूकने आया तो साधना उसको खाना परसकर खिलाने लगी तो शकुन्तला जी ने देख लिया और चिल्लाने लगी ये क्यों आया है भाई तेरा क्या मेरा घर धर्मशाला है क्या चाहे जो चला आता है और सबको खाना खिलाने लगती है ।
वो मांजी भाई है मेरा पेपर है उसका कल उसे लेकर चला जाएगा । अच्छा अच्छा मुंह न चला भिखारी कहीं के । साधना मन मसोस कर रह गई। दूसरे दिन भाई पेपर देकर चला गया। चाची की बेटी नयना सब देखती रहती थी उसे जब भी मौक़ा लगता वो साधना को कहती भाभी आप जवाब क्यों नहीं देती है ।
क्यों सहती है इतना सबकुछ अब मैं क्या बोलूं नयना दी , नहीं बोलना पड़ेगा और अपने हक के लिए बोलना चाहिए।ताऊ जी ने एक गरीब घर की लड़की पसंद की थी और कहा था कि दहेज नहीं चाहिए लेकिन यहां तो मुझे हर समय दहेज का ताना दिया जाता है कि कुछ लेकर नहीं आई । भिखारियों के घर से है ,ऐसी ही है ताई जी भाभी अंदर से कुछ और बाहर से कुछ और ।
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कुछ दिनों बाद साधना के पिता जी की अचानक से तबियत खराब हो गई । उनको शहर के अस्पताल लाना पड़ा ।शहर आकर पिताजी को अस्पताल में भर्ती कराकर साधना की मम्मी बेटी से मिलने आ गई । बाजार से थोड़ी मिठाई खरीदी और आ गई साधना के घर ।उस समय शकुन्तला जी घर पर नहीं थी ।
साधना ने मम्मी को बैठाया और चाय नाश्ता लेकर आईं तभी शकुन्तला जी वापस आ गई और देखा कि साधना अपनी मम्मी को चाय नाश्ता करा रही है तो बस बिफर पड़ी ये क्या हैं तेरे घर वाले रोज रोज यहां क्यों चले आते हैं खाने। इतना सुनना था कि साधना आपे से बाहर हो गई और जाकर शकुन्तला जी से बोली सुनिए
मम्मी आप रोज़ रोज़ इस तरह से हमारे घर वालों की बेइज्जती ंनहींकर सकतीं।और ये क्या भिखारी भिखारी लगा रखा है ।हम भिखारी नहीं है और सुनिए ससुर जी ने मांगकर शादी की थी हमारे पापा नहीं आए थे आपके पास। आगे से अगर आपने हमारे घर वालों का इस तरह तिरस्कार किया
तो मैं घरेलू हिंसा का केस लगा दूंगी पुलिस थाने में।समझी आप । साधना की ऐसी बातें सुनकर शकुन्तला जी हतप्रभ रह गई अरे ये तो इतना बोल रही है । अभी तक तो ऐसा जवाब नहीं दिया था।
साधना की मम्मी साधना को समझा रही थी नहीं बेटा ऐसे नहीं बोलते वो तुम्हारी सासु मां है ।सास है तो क्या हो गया जब देखो तब सुनाती रहती है ।अब मैं इनका इस तरह का अपमान बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करूंगी । अच्छा बेटा मैं चलती हूं तेरे पापा को देखूं जाकर।तुम देखने आ सकती है तो आना ।
हां मैं आऊंगी मां ।और साधना की मम्मी चली गई।नयना पीछे से आई और भाभी को पकड़कर घुमा दिया वाह भाभी वाह आज तो मजा ही गया ।ताई जी को ऐसे ही सुनाने वाला कोई चाहिए था। बहुत बढ़िया क्यों सुनते रहो किसी की जली कटी दिनभर आपको बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं करना चाहिए न अभी और न कभी ।और दोनों हंस पड़ी ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
11 दिसंबर