मम्मा, आप भी गंवार हो – शनाया अहम : Moral Stories in Hindi

निराली के जीवन में आज का दिन एक ऐसा मोड़ ले आया, जिसने उसे भीतर तक झकझोर दिया। उसकी पांच साल की बेटी निशि का जन्मदिन था। घर मेहमानों से भरा हुआ था। हर तरफ हंसी-खुशी का माहौल था। जन्मदिन के केक को काटने का समय आया और सबकी नजरें निशि पर टिकी थीं।

निशि ने जैसे ही केक का टुकड़ा अपनी मां निराली के हाथ से खाना शुरू किया, उसने मासूमियत से एक ऐसा वाक्य कह दिया जिसने पूरे माहौल को ठहरने पर मजबूर कर दिया। “मम्मा, आप भी गंवार हो।”

भरी महफिल में यह सुनकर निराली को ऐसा लगा जैसे उसके पैरों तले जमीन खिसक गई हो। उसकी हंसी और खुशी अचानक एक झटके में गायब हो गई।

“निशि!” निराली ने उसे घूरते हुए देखा और आवेश में उसे एक चांटा जड़ दिया। निशि अपनी मां की इस प्रतिक्रिया से डर गई और रोने लगी।

लेकिन निशि ने जो कहा, वह निराली के लिए और भी अधिक दर्दनाक था। “लेकिन मम्मा, आप भी तो दादी को गंवार कहती हो। जब दादी हाथ से खाना खाती हैं, या चावल खाती हैं, या जब दादी सुर्र करके चाय प्लेट में पीती हैं। जब मैंने आपसे पूछा था कि गंवार क्या होता है तो आपने कहा था, ‘तेरी दादी जैसे होते हैं।’ मम्मा, आपने भी तो मुझे आज अपने हाथ से केक खिलाया, तो आप भी गंवार हुईं न?”

निशि की मासूमियत भरी बातों ने निराली को जैसे आईना दिखा दिया। तभी उसके पति विशाल, जो यह सब देख और सुन रहे थे, ने धीरे से कहा, “सुन लिया निराली? यह तुम्हारे ही सिखाए हुए शब्द हैं, जो आज तुम्हें ही सुनने पड़ रहे हैं। मेरी मां तो फिर भी अपने बेटे की बहू के मुंह से यह सब सुनने की आदी हो गई हैं। लेकिन अब तुम्हें अपनी बेटी के मुंह से यह सुनना पड़ा।”

निराली की आंखों में आंसू भर आए। वह निशब्द खड़ी रही। उसे समझ में आ गया था कि उसने अनजाने में अपनी बेटी को ऐसे शब्द और आदतें सिखाई हैं, जो आज उसके अपने लिए शर्मिंदगी का कारण बन गईं।

विशाल ने निराली की ओर देखते हुए कहा, “निराली, रिश्ते सम्मान और आदर से चलते हैं। मेरी मां ने कभी तुम्हारे साथ बुरा नहीं किया, लेकिन तुमने उनकी सादगी और आदतों को गंवार कहकर उपहास बनाया। अब वही शब्द तुम्हारी बेटी ने तुमसे कह दिए।”

निराली ने खुद को दोषी महसूस किया। उसे याद आया कि कैसे उसने अक्सर अपनी सास के व्यवहार पर तंज कसा था। जब सासू मां चावल को हाथ से खाती थीं, तब निराली ने उनके सामने ही उन्हें गंवार कहा था। जब सासू मां चाय को सुर्र-सुर्र करके पीती थीं, तब उसने उनका मजाक उड़ाया था। वह कभी यह सोच भी नहीं पाई थी कि उसकी बेटी यह सब देख और सुन रही है और उससे सीख रही है।

उस रात निराली सो नहीं पाई। उसे बार-बार निशि की बातें और विशाल के शब्द याद आ रहे थे। उसने अपने व्यवहार पर गहराई से विचार किया। उसे यह एहसास हुआ कि उसने न केवल अपनी सास का अपमान किया, बल्कि अपनी बेटी को भी यह सिखाया कि दूसरों को कैसे नीचा दिखाना है।

अगली सुबह, निराली ने निशि और विशाल को साथ बिठाया। उसने सासू मां को भी बुलाया और कहा, “मांजी, मैं आपसे माफी मांगना चाहती हूं। मैंने हमेशा आपके साधारण जीवन और आदतों का मजाक उड़ाया, जबकि मैं खुद नहीं जानती थी कि सादगी और अनुभव कितने मूल्यवान होते हैं। मैंने अपनी बेटी को गलत आदतें सिखाईं। मैं अब इसे सुधारना चाहती हूं।”

सासू मां, जो अब तक शांत थीं, ने निराली की बात सुनी और कहा, “बेटा, मैं जानती थी कि तुम्हारे शब्दों में गुस्सा और आक्रोश है, लेकिन मैंने कभी इसे दिल पर नहीं लिया। तुम्हारी यह बात सुनकर अच्छा लगा कि तुमने अपनी गलती को पहचाना।”

विशाल ने निराली के इस कदम की सराहना की और कहा, “निराली, हर इंसान गलती करता है। लेकिन उसे सुधारने का साहस कम लोगों में होता है।”

उस दिन के बाद, निराली ने अपने व्यवहार में बदलाव लाना शुरू किया। उसने अपनी सासू मां के प्रति आदर और सम्मान दिखाना शुरू किया और अपनी बेटी निशि को भी सिखाया कि हर व्यक्ति की आदतों और सादगी की इज्जत करनी चाहिए।

निशि के मासूम सवाल और विशाल के सटीक शब्दों ने निराली के जीवन को एक नई दिशा दी। उसने सीखा कि शब्दों की ताकत बहुत बड़ी होती है और जो हम अपने बच्चों को सिखाते हैं, वही वे आगे अपनाते हैं। निराली अब अपनी बेटी को वह सिखाने की कोशिश कर रही थी, जो सच में सही और मूल्यवान था।

लेखिका : शनाया अहम

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