अपने आत्मसम्मान को हर रिश्ते से ऊपर रखना। – पूजा शर्मा : Moral Stories in Hindi

सुधा ने अपने छोटे-से घर में कदम रखा। उसकी सासु मां, मीना देवी, चाय का कप लेकर उसके लिए इंतजार कर रही थीं। सुधा के चेहरे पर चिंता और थकान साफ झलक रही थी। मीना देवी ने ध्यान से देखा और पूछा, “क्या हुआ बेटा, इतना परेशान क्यों दिख रही हो?”

सुधा ने गहरी सांस ली और बताया, “मांजी, आज गौरव ने मुझ पर हाथ उठा दिया। वह गुस्से में था, लेकिन…”

मीना देवी की आंखों में क्रोध और पीड़ा एक साथ उभरी। उन्होंने चाय का कप मेज पर रखा और कड़े स्वर में कहा, “खबरदार अगर अब एक शब्द और बोला तू! तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी बहू पर हाथ उठाने की?”

गौरव, जो दरवाजे के पास खड़ा था, अपनी मां का यह स्वर सुनकर आश्चर्यचकित रह गया। उसने कभी अपनी मां को इस तरह गुस्से में नहीं देखा था।

“गौरव,” मीना देवी ने कड़े शब्दों में कहा, “तू भी अपने बाप के नक्शे-कदम पर चल पड़ा। लेकिन याद रख, जो मेरे साथ हुआ था, मैं अपनी बहू के साथ हरगिज नहीं होने दूंगी।”

गौरव ने सर झुका लिया। वह जानता था कि उसकी मां ने अपने जीवन में बहुत कुछ सहा था। उनके पिता का स्वभाव कठोर और अनुशासनप्रिय था। मीना देवी ने हमेशा सब सहा और कभी कोई शिकायत नहीं की। लेकिन आज वह अपने बेटे को उसी राह पर चलते देखकर चुप नहीं रह सकीं।

मीना देवी ने सुधा के पास आकर उसका हाथ थाम लिया। उनकी आवाज में दृढ़ता और स्नेह का मेल था। “सुधा, तू कभी अपने आत्मसम्मान को मिटाकर किसी के साथ समझौता मत करना, चाहे वह तेरा पति ही क्यों न हो। अपने आत्मसम्मान को हर रिश्ते से ऊपर रखना।”

सुधा की आंखों में आंसू भर आए। उसने कहा, “लेकिन मांजी, यह मेरा फर्ज है कि मैं अपने परिवार को एकजुट रखूं। अगर मैंने विरोध किया तो…”

मीना देवी ने उसे बीच में रोकते हुए कहा, “बेटा, परिवार तभी मजबूत होता है जब उसमें हर सदस्य का सम्मान किया जाए। तू जुल्म सहकर इस परिवार को नहीं बचा सकती। तुझे जुल्म के खिलाफ आवाज उठाना सीखना पड़ेगा। मैं हर कदम पर तेरे साथ हूं।”

गौरव के मन में कई विचार उठ रहे थे। वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या कहे। उसकी मां ने अपने जीवन में कभी अपनी आवाज नहीं उठाई थी। उन्होंने सब कुछ सहा था, तो आज वह यह बदलाव क्यों दिखा रही थीं?

मीना देवी ने गौरव की ओर देखा और कहा, “गौरव, मैंने अपनी जिंदगी में बहुत कुछ सहा, लेकिन मेरी चुप्पी ने मुझे कमजोर बना दिया। मैंने सोचा था कि सहनशीलता सबसे बड़ी ताकत है, लेकिन आज समझ में आया कि आत्मसम्मान को बचाना उससे भी बड़ा गुण है। अगर मैंने तेरे पिता के खिलाफ आवाज उठाई होती, तो शायद तू आज यह सब न कर रहा होता।”

गौरव को अपनी गलती का अहसास हुआ। उसने अपनी मां और पत्नी के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा, “मां, सुधा, मुझे माफ कर दो। मैं गुस्से में था और मैंने जो किया, वह गलत था। मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है।”

सुधा ने गौरव की ओर देखा। उसकी आंखों में सच्चाई और पश्चाताप साफ झलक रहा था। उसने धीमे स्वर में कहा, “गौरव, मैं तुम्हें माफ कर दूंगी, लेकिन एक शर्त पर। हमें अपने रिश्ते में सम्मान और बराबरी की भावना लानी होगी। मैं चाहती हूं कि हम दोनों एक-दूसरे के साथ ईमानदारी और समझदारी से पेश आएं।”

गौरव ने सहमति में सिर हिलाया।

मीना देवी ने दोनों को गले लगाते हुए कहा, “यही सही तरीका है। रिश्ते तभी मजबूत होते हैं, जब उनमें सम्मान और समझदारी हो।”

इस घटना के बाद, घर का माहौल बदलने लगा। सुधा और गौरव ने अपने रिश्ते को नई दिशा देने की कोशिश की। मीना देवी ने अपनी बहू के आत्मसम्मान की रक्षा करने का वचन निभाया। उन्होंने अपनी गलतियों से सबक लिया और अपनी बहू को वही सलाह दी, जो वह खुद अपनी जवानी में चाहती थीं।

इस घटना ने गौरव को बदल दिया। उसने अपनी मां और पत्नी के संघर्षों को समझा और अपने व्यवहार में सुधार किया। सुधा ने भी अपनी सास से सीखकर अपने आत्मसम्मान को बनाए रखना सीखा।

मूल रचना 

पूजा शर्मा

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