हमारे पड़ोस में शर्मा परिवार रहता था। मि आनंद, उनकी पत्नी शीला, बेटा राहुल और बेटी पायल। आनंद इंजीनियर था और शीला टीचर। दोनों सर्विस करते थे ओर काफी अच्छा कमा लेते थे। राहुल जब 4 साल का था तब शर्मा जी की पहली पत्नी का स्वर्गवास हो गया था। उसके 2 साल बाद उन्होंने दूसरी शादी कर ली थी। पायल शीला की बेटी थी। शर्मा जी स्वभाव से काफ़ी गंभीर व्यक्ति थे और शीला तेज स्वभाव की थी।
राहुल पढ़ने में बहुत तेज था और अपनी उम्र से अधिक समझदर। पायल पढ़ने में ठीक ठाक थी। दोनो भाई बहन मे बहुत प्यार था पर राहुल माता पिता से ज्यादा बात नही करता था। शीला पायल से जितना प्यार करती थी उतना ही राहुल से नफरत। समय बीतता गया और राहुल का पहले ही एटेम्पट में आई आई टी मुम्बई में सिलेक्शन हो गया।
मुम्बई में राहुल के चाचा चाची भी रहते थे। चाचा उम्र में राहुल से 7-8 साल बड़े थे और दोनों काफी फ़्रेंडली थे। राहुल होस्टल से ज्यादा चाचा चाची के पास रहता था। उसकी रेखभाल अब चाचा चाची पर थी और वो बखुबी निभा रहे थे। मि. आनंद अब बेटे की तरफ से निषचिन्त थे। राहुल साल में एक बार 8-10 दिन के लिऐ माता पिता के पास आता और अधिकतर समय क़िताबों में ही खोया रहता। राहुल जितने दिन घर आता, पायल अपने भाई के साथ बहुत खुश रहती ओर दोनो खूब मस्ती करते परन्तु उनकी मां का मूड उतना ही ज्यादा खराब रहता। उसे राहुल फूटी आँख नहीं भाता था।
दिन बीतते गऐ ओर राहुल का फाइनल एग्जाम से पहले ही कैम्पस प्लेसमेंट हो गया। एग्जाम खत्म होते ही राहुल ने नोकरी जॉइन कर ली क्योंकि पोस्टिंग मुम्बई में ही थीं और इसलिए वो घर नहीं गया। पहली तनख्वाह मिलने पर उसने चाचा चाची के साथ बाजार जाकर उनको कपड़े दिलाए, ओर ममी पापा व बहन के लिए भी कपड़े लिए। कुछ दिन बाद वो एक हफ्ते की छुट्टी लेकर ममी पापा के पास गया।
घर आकर राहुल ने सबके किए लाये हुए गिफ्ट दिये, सब खुश थे सिवाय राहुल की माँ के। दोनोँ भाई बहन काफी मस्ती कर रहे थे कि अचानक राहुल की माँ तमतमाते हुई आई और दोनों को उल्टा सीधा बहुत कुछ बोल गई। दोनो भाई बहन अपने अपने रूम में चले गए। अगली सुबह राहुल ने सबसे विदा ली और मुंबई की गाड़ी पकड़ ली।
राहुल के चाचा का अपने भाईसाब को फोन किया और सबका हालचाल पूछा। राहुल के जाने का सुनकर चाचा जी चोंक गए और बोले कि राहुल तो एक हफ्ते की छुट्टी पर था और इतवार का रिटर्न टिकट था। कहीं भाभी ने तो कुछ नहीं कहा।? शर्मा जी ने राहुल को फोन लगाया, पर नॉट रीचेबल था, शायद ट्रेन में सिग्नल नहीं मिला। मि शर्मा बेटी पायल के रूम में गए तो देखा वो रो रही है और दुपट्टे का फंदा बना रही थी। अगर ओर थोड़ी देर हो जाती तो शायद बहुत देर हो जाती। पापा ने प्यार से गले लगाया औऱ बार बार पूछने पर उसने बताया, कि कल शाम मां ने सारी हदें पार कर दी।
भईया को थप्पड़ भी मारा और उसे मेरा यार तक कह दिया। भईया 1 हफ्ते के लिए आया था पर मॉ की बजह से 1 दिन में चला गया। जाते जाते बोला अब अभी मां के पास नही आएगा। राखी पर तुम पापा के साथ मुंबई आ जाना, टिकट भेज दूँगा। जब मां ही बेटियो पर शक करेगी ओर लांछन लगायेगाी, तो दुनिया वाले उसे छोड़ेगे क्या ? ऐसी बेटी को अपमान के साथ जीने से अच्छा है मर जाना। पापा, क्या सब माँ ऐसी ही होती हैं?
उस दिन मि शर्मा की आवाज पहली बार घर में गूंजी। वो शीला से बोले ,”क्या बेटे से नफरत इतनी बढ़ गई कि बेटी की जिंदगी दाव पर लगा दी” ? अगर राहुल भी हाथ उठा देता तो क्या होता? इतना सब होने के बाद भी राहुल ने एक शब्द नहीं कहा और चुपचाप चला गया।
शीला रोती हुए बेटी से लिपट गई और माफी मांगने लगी। क्या राहुल से नफरत की आग इतनी बढ़ गई कि बेटी की जिंदगी ही जलने लगी? अगर आज पायल को कुछ हो जाता तो क्या शीला खुद को माफ कर पाती ?
आज घर का माहौल नोरमल लग रहा है पर शीला अपराध बोध में जी रही है क्योंकि उसने भाई बहन के रिश्ते का अपमान किया ओर मि शर्मा कुछ हद तक खुद को गुनेगार मानते हैं। बिना किसी गलती के राहुल ओर पायल खुद को अपमानित महसूस कर रहै है।
रिस्ता प्यार और भरोसे का दूसरा नाम है। माँ ममता की मूरत होती हैं, सौतेली हो तो भी मां ही कहलाती है। कर्मा कहता है कि जो आप किसी को दोगे वही वापिस लौट कर आपके पास आएगा। फिर नजरत क्यों?
फिर भी कभी मन में ऐसे विचार आये तो माँ देवकी – यशोदा को बस याद कर लेना, मन शांत हो जायेगा।
लेखक
एम. पी. सिंह
(Mohindra Singh)
स्व रचित, अप्रकाशित