मेरी सेवा कौन करेंगा……. – अर्चना खंडेलवाल : Moral Stories in Hindi

बाबूजी, आप तो बिस्तर पर हो जाने कितने दिनों के मेहमान हो, और सारी जायदाद इधर-उधर बिखरी हुई है, इन पेपर पर अंगूठा लगा दीजिए ताकि हम तीनों मिलकर उसके बराबर हिस्सों कर लेंगे, वैसे भी अब जायदाद आपकी किस काम की है! अम्मा तो है नहीं, आपको कितना सा खर्चा चाहिए, वो तो हम हर महीने भेज देंगे।

हरीश, पैसे तो मेरे पास भी बहुत है, तुम सब तो ये बताओं कि मेरी सेवा कौन करेगा? इन बूढ़ी हड्डियों को अब सहारा चाहिए, मै भी भरे-पूरे घर परिवार के साथ में रहना चाहता हूं, गांव में अकेला पड़ा हूं और अब तो मेरा यहां मन भी नहीं लगता है, ये खाली हवेली खाने को दौड़ती है, जब तुम तीनों भाई हामी भरोगे तब ही मै जायदाद पर अंगूंठा लगा दूंगा, रमाकांत जी बोले।

तभी मंझला बेटा भावेश बोलता है, बाबूजी आपको हम पर भरोसा नहीं है क्या? आपके जीते जी बंटवारा हो जायेगा तो अच्छा रहेगा, वरना हम सबको बाद में परेशानी होगी।

भाईसाहब, मुझे लगता है बाबूजी नहीं मानेंगे, हमें ही कोई दूसरा उपाय सोचना होगा, सबसे छोटे भाई रमेश ने कहा तो सबने हामी भर ली, पर कोई भी बेटा ये कहने की हिम्मत नहीं कर पाया कि बाबूजी को मै रखूंगा, उनकी देखभाल मै कर लूंगा, सबको बाबूजी की जायदाद में तो रूचि थी पर उनकी देखभाल और सेवा कोई भी नहीं करना चाहता था।

रमाकांत जी अपने तीनों बेटों की नस-नस पहचानते थे, उन्हें पता था अगर उन्होंने जायदाद जीते जी उनके नाम कर दी तो वो तीनों उन्हें एक-एक पैसे के लिए तरसा देंगे।

रमाकांत जी अब पचहत्तर साल के हो गये थे, पत्नी शांता का निधन पांच साल पहले हो गया था।

गांव में बड़ा सा घर और जमीनें थी, व्यापार करके घर को चला रहे थे।

शांता से जब विवाह हुआ था तो बस बीस साल के ही थे, उस जमाने में ब्याह भी जल्दी हो जाते थे, अठारह की थी शांता जी, व्यवहार से बड़ी सरल थी। किसी की बात जल्दी से मान लेती थी, सास-ससुर के हुकम पर खड़ी रहती थी, कभी किसी बात पर बहस नहीं करने वाली शांता घर में सबका काम करके चलती थी।

ऐसी पत्नी पाकर रमाकांत जी बहुत खुश थे, वो परिवार का व्यापार संभालते थे और शांता जी घर अच्छे से चलाती थी।

समय के साथ उन्होंने तीन बेटो हरीश, भावेश और रमेश को जन्म दिया, तीनों ही बेटे पढ़ने में होशियार थे, स्कूल की हर गतिविधि में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे, और अपने तीनों बेटों के कारण रमाकांत जी स्कूल में जाने जाते थे।

सबसे बड़ा बेटा पढ़ाई करने के बाद नौकरी की तलाश करने लगा तो उन्होंने टोक दिया, बेटा नौकरी करने की क्या जरूरत है? घर का इतना अच्छा व्यापार है, इसमें ही हाथ बंटा दें, पर हरीश नहीं माना और शहर चला गया वहां जाकर बैंक में नौकरी करने लगा, हरीश की तरह ही भावेश और रमेश भी नौकरी करने शहर चले गए, रमाकांत जी तीनों बेटों के होते हुए एकदम अकेले रह गये, क्योंकि बेटे साथ रहते तो घर का व्यापार अच्छे से संभालते, दूसरे पर तो नजर रखनी होती है, पैसों का हिसाब रखना होता है।

रमाकांत जी ने कई बार बोला पर वो नही माने और अपनी मर्जी से शादी करके शहर में ही रहने लग गये।

तीनों बेटे शहर में अपनी जिंदगी जी रहे थे, माता-पिता की उनको जरा भी फ्रिक नहीं थी वो अपने बच्चों और परिवार में ही व्यस्त हो गये थे। शांता जी इसी दुख में बीमार रहने लगी।

शांता जी की बीमारी की सूचना देने के बावजूद भी बेटे नहीं आये, जब उन्होंने अंतिम सांस ली तो उनके सामने एक भी बेटा नहीं था, और वो संसार से चली गई।

पांच साल तक रमाकांत जी अकेले रहे, बेटे कभी-कभी फोन पर बात कर लिया करते थे, उन्होंने खुश रहने की बहुत कोशिश की लेकिन वो टूटने लगे, मन ही मन घुटने लगे थे और आखिरकार उन्होंने भी बिस्तर पकड़ लिया।

अब वो ज्यादा दिन जीवित नहीं रह पायेंगे, ये सुनते ही बेटे जायदाद के लिए आ गये, क्योंकि उन्हें पता चल गया था कि बाबूजी अपनी सारी जायदाद दान देकर जाने वाले हैं।

रात को जब वो दवाई ले रहे थे तो हरीश ने दूध में  नींद की गोलियां मिला दी और धोखे से  बेटो ने उनके अंगूठे का निशान कागज  पर ले लिये।

सुबह उन्हें होश देर से आया लेकिन उसके बाद वो ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रह सकें और दुनिया से चले गए, तीनों बेटों ने राहत की सांस ली आखिर उन्होंने बिना सेवा किये, बाबूजी का सारा धन ले लिया और आपस में बराबर बांट लिया।

हरीश अपने परिवार के साथ किराये के मकान में रहता था, उसने धोखे से हड़पी जायदाद से मिले पैसों से एक फ्लैट बुक करवा लिया, जो एक  साल बाद बनकर मिल जायेगा।

भावेश ने हिस्सेदारी में मिले पैसों से एक नई कार बुक कराई जिसका सपना वो सालों से देख रहा था।

कार के लिए लंबी लाइन थी, छह महीने बाद कार मिलने वाली थी, और रमेश ने उन्हीं पैसो में से कुछ के पत्नी के लिए  मनपसंद सोने के गहने ले लिये, जो वो बरसों से लेना चाह रही थी, और एक दुकान भी खरीद ली।रमाकांत जी के जाने के बाद तीनों उनसे हड़पे पैसों पर राज करने लगे। तीनों भाई एक ही शहर में रहते थे, और कभी -कभी एक दूसरे के आया -जाया करते थे।

हरीश की बेटी का जन्मदिन था और उसने अपने दोनों छोटे भाइयों के परिवार को बुलाया था, घर में बहुत रौनक थी, तभी भावेश ने कहा, अब तो बिटिया का जन्मदिन अगले साल नये घर में होगा, भैया फ्लैट का पजेशन कब मिलने वाला है?

मैंने सुना है जहां आपने फ्लैट लिया है, वो बिल्डर लोगों के पैसे लूटकर भाग गया है, उसने दिखाने को कुछ काम करवाया था पर अब साइट पर काम रूक गया है, आपकी सोसायटी के बारे में बहुत आ रहा है, इतना हल्ला मचा हुआ है, और आपको पता ही नहीं है।

ये सुनते ही हरीश की आंखें फट गई, नहीं ऐसा नहीं हो सकता है, मैंने तो उसमें अपने जीवन की सारी पूंजी लगा दी है, बिल्डर ऐसा नहीं कर सकता है।

कब से चाह रहा था, एक घर ले लूं, किराया भरते-भरते थक गया हूं, सामान एक घर से दूसरे घर तक लाते ले जाते परेशान हो गया हूं। अब बच्चे भी बड़े हो गये है, बच्चों की जिम्मेदारी भी बढ़ गई है, खर्चे भी बढ़ गये है, सब कुछ इस तरह बर्बाद नहीं हो सकता।

हरीश की पत्नी भी जोर-जोर से रोने लगी, घर में जहां थोड़ी देर पहले खुशियां बिखरी थीं, वो मातम में बदल गई थी। अपने गांठ का पैसा इस तरह से चला जायेगा, मुझे यकीन नहीं हो रहा है, कितनी मेहनत से एक-एक पैसा जोड़ा था, हरीश जी बोले।

हां, और आपने बाबूजी का पैसा भी धोखे से हड़प लिया था, फ्लैट की बुकिंग में दिया था, वो चोरी का पैसा था, इसलिए वो पैसा हमें फलां नहीं और अपने साथ हमारा बाकी का पैसा भी डूब गया।

आपको कितना समझाया था, ऐसा मत करो, बाबूजी की सेवा करके उनका आशीर्वाद लेते तो आज हमें ये दुख नहीं देखना पड़ता, अपनी पत्नी की बात सुनकर हरीश ग्लानि से भर गया, वो तो घर का बड़ा बेटा था, उसने ही अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई, अपना कर्तव्य तो कभी पूरा नहीं किया और जबरदस्ती का अधिकार जताकर पैसा हड़प लिया।

बाबूजी, मुझे माफ कर दो….मुझे माफ कर दो….. कहकर हरीश रोने लगा, अपने बड़े भैया की ये हालत देखकर भावेश और रमेश भी डरने लगे, कहीं उनके साथ भी ये सब नहीं हो जायें।

इधर भावेश के घर पर वो भी डरा सहमा हुआ था, कुछ महीने बाद उसकी नई कार आ गई, जिसकी बुकिंग उसने बाबूजी से हड़पे हुए पैसों से की थी।

भावेश सपरिवार उस कार में बैठकर पहले मंदिर गया, ताकि किसी अनहोनी से बच सके। कार में भावेश अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ जा रहा था, रास्ते में अचानक एक ट्रक ने पीछे से टक्कर मार दी, भावेश की कार पेड़ से जाकर टकराई और उसमें बैठे हुए पत्नी और बच्चे घायल हो गये, किसी तरह से उन्हें अस्तपताल ले जाया गया, कार दुर्घटना में भावेश का बेटा कोमा में चला गया, बेटी के हाथों में चोट आई और पत्नी के पैरो में फ्रेक्चर हो गया, भावेश खुद भी बुरी तरह से घायल हो गया था।

अपने परिवार का ये हाल देखकर उसे भी महसूस हुआ कि उसने भी अपने बाबूजी से जबरदस्ती संपत्ति हड़प ली थी, शायद इसी वजह से ये कार हमें नहीं फली।

तभी हरीश और रमेश भी अपने भाई के समाचार लेने को आये, उसकी हालत देखकर दोनों सहम गये। अपने बेटे को कोमा में देखकर भावेश की पत्नी पागल सी हो गई थी, एक ही बेटा था और वो भी कोमा में चला गया।

वो अपने पति पर चिल्लाने लगी, समझाया था आपको बाबूजी की सेवा करो, उनका ध्यान रखो, पर आपने तो उन्हें मरने के लिए अकेला छोड़ दिया और धोखे से उनकी जायदाद ले ली, बुरा काम करके घर में पैसा लाओगे तो सुख शांति कैसे रहेगी।

अपने घर में माता-पिता को दुख दोगे तो आपके बच्चों को सुख कैसे मिलेगा? मैंने आपको कितना समझाया था कि बाबूजी के पास जाकर रहो या उनको कुछ दिनों के लिए यहां ले आओ, पर आपने मेरी बात नहीं मानी।

बुरे कर्म करोगे तो उसका फल भी बुरा ही मिलेगा, कर्मों का फल तो भुगतना ही पड़ता है। अपने भैया और भाभी की हालत देखकर अब रमेश को भी डर लगने लगा।

रमेश अपनी पत्नी के साथ घर आया तो उसे रात को नींद नहीं आई, जो हरीश भैया और भावेश भैया के साथ हुआ, कहीं वो मेरे साथ हो गया तो ? रमेश ने अपनी चिंता जताई तो उसकी पत्नी बोली, हमारे साथ ऐसा कुछ नहीं होगा, फिर हमने किया ही क्या है? अंगूठा तो आपके दोनों भाईयों ने लगाया था, आप तो सिर्फ सामने खड़े थे,आपने तो बाबूजी को छुआ तक नहीं था, ज्यादा मत सोचिए सब अच्छा होगा?

लेकिन मैंने भी उन हड़पे हुए पैसों से दुकान ली है और

तुम्हारे लिए जेवर लिये है, कहीं कुछ अनर्थ हो गया तो ?

देखो जी, दुकान अपनी जगह खड़ी है और अच्छी भली चल रही है, जेवर भी मैंने घर की खुफिया तिजोरी में छुपाकर रखे हैं, कोई भी इन्हें हाथ ना लगा पायेगा, अब ज्यादा बुरा मत सोचो, वरना बुरा हो ही जायेगा, ये कहकर रमेश की पत्नी तो सो गई, पर उसे बहुत देर तक नींद नहीं आई, उसे आज अपनी मां की भी याद आने लगी, वो घर में सबसे छोटा था, और किस तरह मां उसके लाड़ लड़ाया करती थी, उसके आगे-पीछे दौड़ा करती थी, उसकी हर इच्छा को पूरी करती थी।

बाबूजी भी उसे कंधे पर बिठाकर सैर करने को ले जाते थे, मेले से मनपसंद चीजे दिलाकर लाते थे, बाबूजी जब चाहें उसे खर्चे के पैसे दे देते थे, पता नहीं मै ही क्यों शहर की जिंदगी में खो गया?  अपनी मां और बाबूजी का प्यार दुलार ही भुल गया, अब रमेश को पछतावा होने लगा, क्यों उसने मां -बाबूजी की सेवा नहीं की ? क्यों उसने बाबूजी को अंतिम समय में अकेला छोड़ दिया? अपने भाईयों के पाप में बराबर साथ दिया, अपने कर्तव्य तो निभाएं नहीं और अधिकार लेने पहुंच गया।

रात को देर तक जागने की वजह से सुबह उसकी नींद देर से खुली, पास में पत्नी भी नहीं थी, वो हॉल में पहुंचा तो देखा, पत्नी बाहर सोफे पर बेहोश पड़ीं थी और बच्चे भी नहीं थे, उसके हाथ में एक कागज था कि अपने बच्चों को छुड़वाना चाहते हो तो सोने के गहने दे जाओं।

सोने के गहने….ओहहह लगता है घर के नौकरों ने ये बात सुन ली और बच्चों को छुपा दिया, रमेश दिये गये पते पर पत्नी के गहने लेकर चला गया, और बच्चों को ले आया। आखिरकार पत्नी के सारे गहने चले गए।

अपने बच्चों को पाने की खुशी पूरी भी नहीं हुई थी कि दुकान में काम करने वाले नौकर का फोन आया कि दुकान में शॉर्ट सर्किट से आग लग गई है, सारा माल जलकर खाक हो गया। ये सुनते ही रमेश का सिर चकरा गया, आखिर वो भी अपने बुरे कर्मों का फल भुगत रहा था, उसकी दुकान जलकर खाक हो गई और पत्नी के गहने भी चले गए।

तीनों भाई एक जगह इकट्ठे हुए और उन्होंने पंडित जी से कहा कि हमारे ऊपर किसी का बुरा साया है, आप कुछ उपाय कर दो।

पंडित जी बोले, ये सब बेटा तुम लोगों के बुरे कर्मों का फल है , फिर माता-पिता की आत्मा को दुख पहुंचाकर भला कौन सुखी रह पाया है?  जो धन बेईमानी से आता है वो जरूर निकलता है, तुम तीनों अपने मां -बाबूजी की आत्मा की शांति के लिए पाठ करा लो, मुझे पूरा विश्वास है वो तुम्हे माफ कर देंगे।

माता-पिता से कुछ हड़पने की जरूरत ही नहीं है वो तो वैसे ही बच्चों को सब देकर जाते हैं, बदले में जरा सा प्यार और सम्मान ही तो चाहते हैं, वो बचपन में बच्चों की जितनी देखभाल करते हैं, बच्चे बुढ़ापे में उनकी उतनी ही देखभाल कर ले तो उनकी आत्मा सुखी हो जाती है और वो बच्चों को आशीर्वाद देते हैं। माता-पिता का साया जिसके सिर पर हो वो तो सुखी और खुश रहता ही है।

तीनो बेटो को ये बात समझ में आ गई और उन्होंने यज्ञ करवाके माता-पिता की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की और मन ही मन उनसे माफी मांगी।

पाठकों,, ये तो सच है धोखे से कमाया गया धन हो या जायदाद हड़प ली हो वो इंसान उस पैसे को पाकर कभी सुखी नहीं रह सकता है, किसी का दिल दुखाकर प्राप्त धन जीवन में दुखों का कारण बनता है।

धन्यवाद

लेखिका

अर्चना खंडेलवाल

मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित

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